खुशी राम आर्य का जन्म 13 दिसम्बर, 1886 को दौलिया, हल्दूचौड़ जिला नैनीताल में हुआ ।
वे आर्यसमाजी विचारधारा के व्यक्ति थे ।
उन्होंने दलितों में व्याप्त कुप्रथाओं जैसे – बाल विवाह , मदिरापान , छुआछूत आदि की समाप्ति के लिए संपूर्ण कुमाऊं क्षेत्र में जागरूकता फैलाया ।
1894 में मिशन स्कूल हल्द्वानी में प्रवेश लिया तो उन्हें सवर्ण छात्रों द्वारा अपमानित किया गया। 1906 में दलितों को ‘शिल्पकार‘ नाम देने का उन्होंने प्रयास किया और 1921 की जनगणना में उन्हें शिल्पकार लिखा गया ।
सन 1933 में राष्ट्रवादी नेता खुशीराम द्वारा मजखाली अल्मोड़ा में एक सम्मेलन किया गया जिसमें शिल्पकारों के पक्ष में अनेक प्रस्ताव पारित किए गए । जनवरी 1941 में बागेश्वर उत्तरायणी मेले में शिल्पकार सम्मेलन हुआ, जिसमें नौकरी , सेना में भर्ती, जमीन के स्वामित्व, निःशुल्क शिक्षा तथा सामाजिक सुरक्षा की मांग की गई।गोविन्द वल्लभ पन्त और बद्रीदत्त पांडे ने उन्हें राष्ट्रीय राजनीति व आन्दोलन में सक्रिय भागीदारी के लिए सहयोगी बनाया। वे 1946 से 1967 तक उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य रहे।
इसी तरह के तमाम जन कल्याणकारी संघर्षों में चलते थकते हांफते यह महामानव 5 मई 1971 को हमेशा हमेशा के लिए इस पृथ्वी से चल बसा ।
वे आर्यसमाजी विचारधारा के व्यक्ति थे ।
उन्होंने दलितों में व्याप्त कुप्रथाओं जैसे – बाल विवाह , मदिरापान , छुआछूत आदि की समाप्ति के लिए संपूर्ण कुमाऊं क्षेत्र में जागरूकता फैलाया ।
1894 में मिशन स्कूल हल्द्वानी में प्रवेश लिया तो उन्हें सवर्ण छात्रों द्वारा अपमानित किया गया। 1906 में दलितों को ‘शिल्पकार‘ नाम देने का उन्होंने प्रयास किया और 1921 की जनगणना में उन्हें शिल्पकार लिखा गया ।
सन 1933 में राष्ट्रवादी नेता खुशीराम द्वारा मजखाली अल्मोड़ा में एक सम्मेलन किया गया जिसमें शिल्पकारों के पक्ष में अनेक प्रस्ताव पारित किए गए । जनवरी 1941 में बागेश्वर उत्तरायणी मेले में शिल्पकार सम्मेलन हुआ, जिसमें नौकरी , सेना में भर्ती, जमीन के स्वामित्व, निःशुल्क शिक्षा तथा सामाजिक सुरक्षा की मांग की गई।गोविन्द वल्लभ पन्त और बद्रीदत्त पांडे ने उन्हें राष्ट्रीय राजनीति व आन्दोलन में सक्रिय भागीदारी के लिए सहयोगी बनाया। वे 1946 से 1967 तक उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य रहे।
इसी तरह के तमाम जन कल्याणकारी संघर्षों में चलते थकते हांफते यह महामानव 5 मई 1971 को हमेशा हमेशा के लिए इस पृथ्वी से चल बसा ।