गढ़वाली लोकोक्तियाँ (पखाणा) | phrases of Gadhwali

छै गौकि छांछ नंदू का खावन, नंदू करौ माँ छाछि कु जावन । अभावग्रस्त व्यक्ति से सहायता मांगना जखि देखि तवा परात बखि बिताई सारी रात । अपनी सुविधानुसार स्वार्थ

कुमाऊँनी लोकोक्तियाँ | kumauni Lokoktiyan

कुमाऊँनी लोकोक्तियाँ | kumauni Lokoktiyan अकलक उमरक भेंट न हनू । बुद्धि और आयु एक साथ नहीं आते । आयु बीतने पर ही बात समझ में आती है । अदमरी

उत्तराखंड की लोकभाषाएं – गढ़वाली

कुमाऊँनी बोली के साथ-साथ गढ़वाली भी दरद/खस प्राकृत से प्रभावित है, किन्तु कतिपय भाषाशास्त्री इसकी मूल उत्पति शुद्ध शौरसेनी से मानते हैं । मैक्समूलर ने अपनी पुस्तक ‘साइंस ऑफ लेंगवेज़’

उत्तराखंड की लोकभाषाएं – कुमाऊँनी

उत्तराखंड की भाषा , जिसे प्रसिद्ध भाषाशास्त्री ,पाश्चात्य विद्वान सर जॉर्ज ग्रियर्सन ने ‘मध्य पहाड़ी भाषा’ नाम से संबोधित किया, आदि प्राकृत , वैदिक एवं संस्कृत के अति निकट है