चंद राज्यवंश संथापक – सोमचंद
राज्य चिन्ह – गाय
अंतिम राजा – महेन्द्रचंद
राजा सोमचंद – चन्द राजवंश के मूल पुरुष सोमचन्द इलाहाबाद के निकट फूलपुर के निकट झूसी नामक स्थान से इस क्षेत्र में आए।
कत्यूरी राजवंश के अन्तिय शासक ब्रह्रमदेव ने अपनी पुत्री का विवाह सोमचन्द के साथ करवाया और सोमचन्द ने लगभग 1027 ई• मे चन्द राजवंश की स्थापना की। कत्यूरियों के पतन के साथ कुमाऊ में चंद वंश का उदय हुआ। सोमचन्द ने डोटी शासकों के अधीन उनकी कुलदेवी के नाम चम्पावत (चरमावती) नगर की स्थापना की तथा अपनी राजधानी बनायीं। प्रराभ्म में इस राज्य में केवल राजधानी चंपावत के आस पास का ही छेत्र सम्मिलित था, लेकिन बाद में अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, नैनीताल तथा नेपाल के भी कुछ छेत्र पर इनका अधिकार हुआ।
सोमचन्द ने प्रारंभ में चार किलेदारो की नियुक्ति की जो क्रमशः इस प्रकार है
1 – कार्की
2 – बोहरा
3 – तड़ागी
4 – चौधरी
इन्हें चार आल्य चराल कहा गया।
सोमचन्द गोरखा राजा जयदेव मल्ल को कर देते थे इन गोरखा राजाओं को रैका कहा जाता था। कुमाऊ में ऐपड़ कला तथा पंचायतीराज व्यवस्था की शुरुआत सोमचन्द द्वारा की गयी। सोमचन्द ने राजबुंगा किले का निर्माण किया।
Note-: 1191 ई• का गोपेश्वर त्रिशूल तथा 1223 ई• के बालेश्वर मन्दिर का लेख से कुमाऊ क्षेत्र में डोटी शासकों के शासन का उल्लेख मिलता है।
राजा इन्द्रचन्द –
इन्द्रचंद ने 20 वर्ष तक राज किया। “यह राजा बड़ा घमंडी बताया जाता है। अपने को इंद्र के समान समझता था”। इस राजा ने अपने यहाँ रेशम का कारोबार खोला। रेशम के कीड़ों के 7 वींसदी में तिब्बत-राज्य में स्त्रोंगजांग गांपो की रानी लाई, और उसकी नेपाली रानी ने इसका प्रचार नेपाल तक किया। वहाँ से यह कुमाऊ में लाया गया। यह कारोबार गोरख्याली राज्य तक बराबर चलता रहा। ‘गोर्ख्योल’ में यह उत्तम कारोबार नष्ट हो गया।
रेशम के कीड़ों के चारे के वास्ते शहतूत(कीमू) के पेड़ बहुत बोये गये।
राजा थोहर चन्द
थोहर चन्द लगभग 1261 ई• में गद्दी पर बैठा इसने चन्द वंश की पुनः स्थापना की।
ज्ञानचंद उर्फ़ गरुड़ ज्ञान चंद:-
राज्याधिकार पाने पर राजा ज्ञानचंद ने सबसे पहला काम जो किया, वह दिल्ली नरेश के पास जाने का था। राजा ज्ञानचंद ने दिल्ली के बादशाह फिरोज तुगलक के यहाँ चिट्टी भेजी कि तराई-भावर प्रान्त मुद्दत से कुमाऊ राज्य का हिस्सा रहा है। पहले कत्यूरियों के हाथ में था, अब चंद राजाओं के अधिकार में होना चहिये। 1365-1420 के मध्य यह पहला चन्द राजा था जिसने फिरोज तुगलक के दरवार में भेट चढाई बादशाह मुह्हमद फिरोज तुगलक उस समय शिकार पर थे। राजा ज्ञानचंद भी वहाँ चले गये। वहाँ उन्होंने तीर कमान से उड़ते हुए गरुड़ को मार डाला,जो एक सर्प को पकड़कर ले जा रहा था। बादशाह फिरोज तुगलक राजा ज्ञानचंद साहब के कौशल से खुश हो गये। साथ ही उनको ‘गरुड़’ की उपाधि से विभूषित किया। तब से यह राजा गरुड़ज्ञान चंद के नाम से प्रसिद्ध हुए।
उसी समय फरमान लिखा कि तराई-भावर का इलाका भागीरथी गंगा तक कुमाऊ के राजा के अधिकार में रहेगा। इनके शाशन काल में बहुत मार- काट हुई। नीलू कठायत नामक सेनापति राजा गरुड़ज्ञानचंद के दरबार में था । यह पहला चन्द शासक था जिसने सौर क्षेत्र पिथौरागढ में अधिकार किया सेरा खड़कोट ताम्रपत्र लेख नेपाली शासक विजय बम तथा इसके मध्य सन्धि का उल्लेख मिलता है।
राजा उद्यान चंद
उद्यानचंद ने चंपावत में बालेश्वर मंदिर का निर्माण कराया, यह गरुड़ज्ञानचंद के पौत्र थे। इनके राज्य का विस्तार इनकी मृत्यु के समय था – उत्तर में सरयू से लेकर, दक्षिण में तराई तक, पूर्व में काली से लेकर, पश्चिम में कोसी व सूँवाल तक। बालेश्वर मंदिर के वास्तुकार जगन्नाथ मिस्त्री थे । जगन्नाथ मिस्त्री ने ही एक हथिया नौले का निर्माण किया।
विक्रम चन्द
राजा विक्रम चन्द का बालेश्वर मंदिर ताम्र लेख से प्राप्त होता है जिसमें उनके लेखक गु्ंज शर्मा वर्णित है
भारती चन्द
यह पहला चन्द शासक था जिसने डोटी शासकों से निजात दिलायी। इसने सौर (पिथौरागढ) सिरा (डीडीहाट) तक चन्द का अधिकार स्थापित किया।
राजा रत्न चंद
चंदो में सबसे पहला भूमि बंदोबस्त राजा रत्नचंद ने ही कराया था। इन्होने 27 वर्ष तक शाशन किया और 1488 में स्वर्ग को सिधारे।
राजा भीष्मचंद
भीष्मचंद 1555 में गद्दी पर बैठे, इनकी कोई संतान न थी। इन्होने राजा ताराचंद के पुत्र कल्याणसिंह को गोद लिया था। उसने राजधानी चम्पावत से हटाकर किसी केंद्र के स्थान में रखने की सोची। तब राजा ने अल्मोड़ा खगमरा के किले का जीर्णोधार कर उसे राजधानी स्थापित करने का इरादा किया और वहाँ अल्मोड़ा में आलमनगर की नीव भी डाली और आलमनगर बसाया। इसने अल्मोड़ा स्थित खगमरा कोट के किले का (1555-1560) निर्माण कराया । खस जाति श्रीगजुवाठिंगा नामक एक सरदार ने सेना एकत्र कर, खगमरा कोट के किले पर चढाई कर दी। जब भीष्मचंद किले में सो रहे थे तो खस राजा ने चुपके से वहाँ जाकर राजा भीष्मचंद का सिर काट दिया और उसके बहुत से साथियों को मौत के घाट उतार दिया। श्रीगजुवाठिंगा ने खुद को बारामण्डल का राजा बना दिया पर उसकी यह स्वतंत्रा ज्यादा दिन न चली। ज्यों ही यह खबर कल्याणचंद तक पहुची उसने अपने पिता की मृत्यु का जोरदार बदला लिया और सबको क़त्ल किया।
