उनके दादा राघवानन्द पैन्यूली टिहरी रियासत के दीवान थे और पिता कृष्णानंद पैन्युली जूनियर इंजीनियर थे ।
उनकी माता एकादशी देवी के साथ ही पूरा परिवार समाज सेवा और स्वाधीनता आंदोलन के लिए समर्पित रहा ।
इन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई और 6 वर्षों तक बंदी जीवन व्यतीत किया ।
जेल से मुक्त होने के बाद यह “टिहरी राज्य प्रजामंडल” में सम्मिलित हुए ।
1946 में टिहरी में राजद्रोह के मामले में इन्हे 1 साल 6 महीने की कठोर कारावास की सजा हुई पर जेल से फरार हो गए और रामेश्वर शर्मा के नाम से दिल्ली में क्रांतिकारी गतिविधियों से जुड़े रहे ।
1949 में टिहरी रियासत के भारत संघ में विलीनीकरण के ऐतिहासिक दस्तावेज पर हस्ताक्षर करने वाले तीन प्रमुख प्रतिनिधियों में से एक थे ।
1977 में पूर्व नरेश मानवेंद्र शाह को पराजित कर सांसद निर्वाचित हुए । वे दर्जनभर पुस्तकों का लेखन कर चुके हैं ।
जिनमें से देशी राज्य और जन आंदोलन नेपाल का पुनर्जागरण और सांसद और संसदीय प्रक्रिया काफी चर्चित पुस्तकें हैं ।
उत्तर प्रदेश हरिजन सेवक संघ के सचिव के तौर पर इन्होंने 1950 के दशक में हरिजनों को श्री बद्रीनाथ , श्री केदारनाथ , गंगोत्री व यमुनोत्री धामों में स्वर्णों के भारी विरोध के बावजूद प्रवेश कराया ।
भारतीय दलित “साहित्य अकादमी” ने 1996 में डॉ. अंबेडकर अवॉर्ड से उन्हें नवाजा।