प्लेटों के किनारे ही भूगर्भिक क्रियाओं के दृष्टिकोण से सर्वाधिक महत्वपूर्ण होते हैं क्योंकि इन्ही किनारों के सहारे
भूकंपीय, ज्वालामुखीय तथा विवर्तनिक घटनाएँ घटित होती हैं । सामान्य रूप से प्लेटों के किनारों (margins) को
तीन प्रकारों में विभक्त किया गया है –
- रचनात्मक किनारा (Constructive Margin)
ये तापीय संवहन तरंगों की उपरिमुखी स्तंभों के उपर अवस्थित होते हैं ।
इसके कारण दो प्लेटे एक दूसरे की विपरीत दिशा में गतिशील होते हैं एवं दोनों के मध्य भ्रंश दरार पड़ जाती है जिसके
सहारे एस्थेनोस्फेयर का मैग्मा ऊपर आता है और ठोस होकर नवीन भू-पर्पटी का निर्माण करता है ।
अतः इन प्लेट किनारों को रचनात्मक किनारा कहते हैं तथा इस तरह की प्लेटें अपसारी प्लेटें कहलाती हैं ।
एसी घटनाएँ मध्य महासागरीय कटकों के सहारे घटित होती है । मध्य अटलांटिक कटक इसका सर्वोत्तम उदाहरण है ।
विनाशात्मक किनारा (Destructive Margin)
ये तापीय संवहन तरंगों की अधोमुखी स्तंभो के उपर अवस्थित होते हैं । इससे दो प्लेटे अभिसरित होती हैं एवं आपस में टकराती हैं ।
इस प्रक्रिया में अधिक घनत्व की प्लेट कम घनत्व की प्लेट के नीचे क्षेपित हो जाती है ।
इस क्षेत्र को बेनी ऑफ मेखला या बेनी ऑफ जोन कहते हैं । चूंकि यहाँ प्लेट का विनाश होता है , अतः इसे विनाशात्मक किनारा कहते हैं ।
एसी प्लेटें अभिसारी (converging plates) कहलाती हैं ।
संरक्षी किनारा (Conservative Margin)
जब एक प्लेटें एक दूसरे के सामानांतर विस्थापित होती हैं तो उनमें कोई अन्तरक्रिया नहीं हो पाती है ,
अतः इसे संरक्षी किनारा कहते हैं । यहाँ रूपांतर भ्रंश (Transform Fault) का निर्माण होता है ।
उदाहरण के लिए कैलिफोर्निया के निकट निर्मित सान एंड्रियास भ्रंश ।