कुमाऊँनी लोकोक्तियाँ | kumauni Lokoktiyan

अकलक उमरक भेंट न हनू ।
बुद्धि और आयु एक साथ नहीं आते । आयु बीतने पर ही बात समझ में आती है ।

अदमरी विधा जिया काल ।
अधूरी विधा जीवन के लिए दुखदायी होती है ।

अन्याला चोट कन्याला ।
अंधे के हाथ बटेर

अगास चैन ।
आकाश की ओर देखते रह जाना, निराश होना ।

अगासकि तारा लुछि ल्होन ।
आकाश के तारे नोच कर लाने का दम भरना, असंभव कार्य कर डालने का दम भरना ।

अफसरक आगि बटी, घ्वाड़ाक पाछि बटी नि जान ।
अधिकारियों के आगे तथा घोड़े के पीछे नहीं चलना चाहिए ।

इजा हाक्यूं, न बुबा डाक्यू ।
न तो माँ का समझाया हुआ और न पिता का डांटा हुआ ही अर्थात निरकुंश ।

उज्याड्क ल्यहालि बाड़ घालि, बाड्ले उजयाड़ खै ।
फसल की रक्षा के लिए घेरबाड़ किया, परंतु घेरबाड़ ही फसल खा गई, अर्थात रक्षक ही भक्षक ।

उज़डन बखतक किड़माल पांख ।
उजड़ते समय चींटी के पंख । विनाशकाले विपरीत बुद्धि ।

उठि सुखि, न बैठी सुखि
किसी प्रकार भी चैन नहीं ।

उतरायूं घट्ट ब्यू टोईछ ।
बहुत ही तेज घूमने पर चक्की का पाट अंत मे धुरी तोड़ डालता है । अति इतराने का परिणाम हानिकारक ।

उ द्यपताक आंखा फूटि, म्यर आँड़ ये ।
उस देवता की आँख फूटी, तब उसने मेरे शरीर मे प्रवेश किया । बिना सोचे-समझे किसी को परेशानी मे डालना ।

एक पूतक पुत्यौल , एक खुना उज्यौल ।
एक पुत्र का पुत्रवान, एक ही लकड़ी का मशाल, एक ही की भी क्या आशा ?

खुटाक तालु उड़न।
पाँव की तली उड़ जाना । बहुत दौड़-धूप करना ।

ख्वेनकि गाँठी , न उचौनकि जांठी ।
न तो खर्च करने के लिए गाँठी (पैसा) है और न उठाने के लिए (लाठी शक्ति) ही है । पास मे कुछ भी नहीं है । सभी तरह से असमर्थ ।

खै गे दाड़ि वाल, पकड़ी से जुंड़ वाल ।
खा गया दाड़ि वाला, पकड़ा गया मूंछों वाला, निर्दोष व्यक्ति का पकड़ा जाना ।

गट आपन मरि जौ, भल पर्याक रे जौ ।
बुरा अपना मर जाय, भला दूसरे का रह जाय, अपने बुरे पात्र से तो पराए का भला पात्र ही अच्छा

गरीबक बात बूस जस उड़ंछ।
गरीब की बातें भूसे की तरह उड़ती है । गरीब की बातों को कोई महत्व न देना ।

रुखाक त्वाप मैताप ठ्वास।
पेड़ से गिरि पानी की बूंदे एकदम भिगा देती है, वैसे ही शादी के बाद मायके वालों के ताने चुभने लगते हैं।

कुमिल फुस्योर नै हुन कै बुड़िन जिकि नै।
उम्र के अनुसार गुण नहीं आए तो क्या, उम्र तो चली गई ।

कौं मछयार।
तुक्का लग जाना ।

स्यों भौड़ें घट छिरी ग्यो ।
सब कुछ नष्ट हो जाना ।

मधुलिक जतार लागो मधुवाक कड़कड़ाक ।
व्यर्थ मे बातें करना ।

आपुणी मनै कि गुणि बौराण।
अपने मुंह मिया मिट्ठू बनना ।

हाथ पड़ी मुचाय, सान पड़ीं बुलाय ।
सामने होने पर ध्यान न देना। बाद मे प्रयत्न कर बुलाना ।

जाति लड़े शांति मुड़े लड़े झाँस ।
हकदार ही हक पा सकता है ।

ल्यट राकस हीं ल्यट राकस ।
जैसे को तैसा ।

म्यारे खड़ाई मूल्या मै कै छल्यूण बैठ ।
मेरे ही सरंक्षण पला, मुझे ही दीक्षा देने लगा ।

गहतैकि बड़ी तिमुलै कि लाकड़ि, तू ठुल म ठुल कै दुनि उजाड़ि।
शक्तिहीनों का आपसी बड़प्पन कि लड़ाई मे स्वयं को नष्ट कर देना ।

सरगौक छुट पातालौक फुट।
हर तरफ से असहाय ।

सासुक हातौक गुलमुल गास ।
असंभव बात ।

संग जाई हुन्युत संग जाण ऊन।
अनुभव शून्यता ।

काल गोरुक दूध पंछानण।
सूक्ष्म गुणों को भी पहचान लेना ।

सासुन लै घण बाजि मैं ले मायल ।
अत्यधिक बदनामी होना ।

काठक खुट लुवाक कपाल।
घोर परिश्रम ।

छनक छौलेक न छन क बौलेट ।
अधेर्य, उतावलापन ।

गोठ पान दगड़े करन ।
एक साथ सारे काम करना ।

हालन हालने अलूण हाथ ।
काम करते-करते भी फल न मिलना ।

ठाड़ि कै पकै उताणि कै खै ।
अकेलापन

हड़पियक ले मुख फरांड छ त ढडु शरम चै ।
दाता अति उदार हो तो याचक को तो शर्म होनी चाहिए ।

पैलि बाने भली छी फिर चू बुकै बैठि।
पहले मियां बावरे ता पर खाई भांग ।

कुकुराल ले बासि रवाट ।
असंभव बात ।

बाबुक घर मोत्यु चेलिक कान बुटे बुट ।
बाप कि संपति बेटी के किस काम की ।