अगस्त 1942 में उत्तराखंड में जगह जगह हड़तालें व प्रदर्शन हुये थे ।
1942 के आंदोलन का सर्वप्रथम प्रभाव अल्मोंड़ा शहर पर पड़ा जहां विधार्थियों ने पुलिस पर पत्थरों से प्रहार किया। जिसमें कुमाऊं कमिश्नर एक्टन के सिर में चोट लगी। इस कारण अल्मोड़ा शहर पर 6 हजार रूपये का जुर्माना किया गया था।
अल्मोंड़ा जिले में सर्वप्रथम 19 अगस्त 1942 को देघाट नामक स्थान पर पुलिस ने जनता पर गोलियां चलाई थी। जिसमें हरिकृष्ण व हीरामणि नामक दो व्यक्ति शहीद हो गये। ये उत्तराखंड से शहीद होने वाले पहले व्यक्ति थे।
अल्मोड़ा के धामधों (सालम) में 25 अगस्त 1942 को सेना व जनता के बीच पत्थर व गोलियों का युद्ध हुआ इस संघर्ष में दो प्रमुख नेता टीका सिंह व नरसिंह धानक शहीद हो गये थे।
सालम का शेर राम सिंह आजाद को कहा जाता हैं। लंबे समय से फरार राम सिंह आजाद ने अपनी गिरफतारी बद्रीनाथ में दी। आजाद के पक्ष में गोपाल स्वरूप पाठक ने वकालत की थी।
जाट सेना ने मेहरबान सिंह के नेतृत्व में सालम में जनता पर गोली चलाई थी।
सालम की भांति सल्ट (खुमाड़) में भी 5 सितंबर 1942 को 5000 लोगों की जनसभा चल रही थी। जहां रानीखेत तहसील के एस डी एम जॉनसन ने
गोलियां चलाई जिसमें गंगाराम व खीमादेव नाम के दो सगे भाई घटनास्थल पर ही शहीद हो गये व बुरी तरह घायल चूड़ामणि व बहादुर सिंह चार दिन बाद शहीद हुये थे।
स्वतंत्रता आंदोलन में सल्ट की भूमिका के लिये इसे महात्मा गांधी ने कुमाऊ की बारदोली कहा। आज भी खुमाड़ में प्रत्येक वर्ष 5 सितंबर को शहीद स्मृति दिवस मनाया जाता है।
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान सिलांगी पौढ़ी में सदानंद कुकरेती ने राष्ट्रीय विधालय खोला था।
देवकी नंदन पांडे व भगीरथ पांडे ने ताड़ीखेत में प्रेम विधालय की स्थापना की थी।
डाडामंडी के अंतर्गत मिडिल स्कूल मटियाली के प्रधानाचार्य उमराव सिंह रावत का सरकारी कर्मचारी होने के बावजूद आंदोलन में सक्रिय सहयोग रहा था।
धूलिया के इन प्रयत्नों से उनकी लिखी पुस्तक ‘अंग्रजों को भारत से निकाल दो’ का उद्देश्य गढवाल में अगस्त आंदोलन को नई स्फूर्ति प्रदान करना था। इस पुस्तक का प्रकाशन सुरक्षा की दृष्टि से बम्बई में किया गया था।
19 सितंबर 1942 को छवाण सिंह नेगी ने एक हजार स्वयंसेवकों के साथ लैंसडाउन छावनी की ओर और छावनी पर आक्रमण किया था।
अगस्त आंदोलन पौढी के डाडामंडी में भी हुआ जहां 8 अक्टूबर 1942 को आदित्यराम दुड़पुड़ी तथा मायाराम बड़थ्वाल को गिरफतार किया गया था।
भारत छोड़ो आंदोलन के अंतर्गत एक घटना सियासैंण चमोली में घटी यहां आंदोलनकारी नेता नारायण सिंह सियासैंण के वन विभाग के विश्राम गृह में आग लगा दी थी। जिसमें नारायण सिंह ने एकला चलो रे की नीति के अनुरूप अकेले ही सियासैण अभियान के लिये कूच किया था।
देश के प्रमुख शैक्षिक केंद्र बनारस के प्राध्यापक डा कुशलानंद गैरोला के नेतृत्व में छात्रों ने बनारस में तोड़फो की बाद में चंद्र सिंह गढवाली ने भी इनका साथ दिया।
