संयुक्त राष्ट्र संघ के विश्व कृषि संगठन और माउंटेन पार्टनरशिप की ओर से एक रेसिपी बुक प्रकाशित की गई, इसमें दुनिया भर के पर्वतीय इलाकों के 30 पारंपरिक और पौष्टिक व्यंजनों की रेसिपी को शामिल किया है। इस रेसिपी बुक में चौलाई के लड्डू को भी स्थान मिला है। बुक को प्रकाशित करने से पहले वर्ष 2019 में अंतरराष्ट्रीय माउंटेन दिवस के मौके पर फूड एग्रीकल्चर ऑर्गनाइजेशन और माउंटेन पार्टनरशिप ने एक प्रतियोगिता आयोजित की थी।
इसमें दुनिया के पर्वतीय इलाकों के पारंपरिक और पौष्टिक व्यंजन की रेसिपी आमंत्रित की गई थी। 27 देशों से 70 प्रविष्टियां शामिल हुईं। निर्णायकों ने 30 व्यंजनों की रेसिपी का चयन किया। प्रतियोगिता में अल्मोड़ा के चौखुटिया मासी क्षेत्र स्थित इनहेयर संस्था के चिन्मय शाह ने चौलाई के लड्डू की रेसिपी भेजी, जो निर्णायकों को खूब पसंद आई। 76 पेजों की इस बुक में प्रत्येक व्यंजन की रेसिपी के साथ उसके पौष्टिक तत्वों के बारे में बताया गया है। साथ ही रेसिपी भेजने वाले का नाम भी बुक में दर्ज है।
रामदाना भी है इसका नाम
इसका वानस्पतिक नाम ऐमारेंथस क्रुऐंटस है, इसे रामदाना भी कहा जाता है। नवरात्र में व्रत रखने वाले इसके लड्डू भी खाते हैं।
बेहद फायदेमंद है रामदाना
इसका सेवन शरीर के लिए फायदेमंद भी है। डॉक्टरों के मुताबिक चौलाई में आयरन और कैल्शियम भरपूर मात्रा में होता है। यह प्रोटीन का भी अच्छा स्रोत है।
ठठ्वाणी भी है रेसिपी बुक में शामिल
संयुक्त राष्ट्र संघ की रेसिपी बुक में उत्तराखंड के पारंपरिक व्यंजन ठठ्वाणी को भी स्थान मिल चुका है। ठठ्वाणी की रेसिपी नैनीताल के हिमालयी अनुसंधान और विकास संस्थान चिनार के अध्यक्ष डॉ. प्रदीप मेहता ने भेजी थी।
उत्तराखंड की कुछ पारंपरिक व्यंजन
उत्तराखंड का पारंपरिक खानपान देश ही नहीं विदेशों मे भी अपनी पहचान बना रहे हैं उत्तराखंड के व्यंजन गुणवत्ता और स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत लाभकारी है। विदेशों में भी पहाड़ के मंडुवा, झंगोरा, काले भट, गहथ, तिल आदि अपनी मार्केट बना रहे हैं।
आयुर्वेद के अनुसार मंडुवा मधुमेह की बीमारी में बेहद कारगर है। यह शरीर में शुगर की मात्रा नियंत्रित कर रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है। झंगोरा पेट संबधी बीमारियों को दूर करता है। काले भट में प्रोटीन की प्रचुर मात्रा होती है। गहथ की दाल की तासीर गर्म होने के कारण यह गुर्दे की पथरी में बेहद फायदेमंद है
उत्तराखंड के फायदेमंद पारंपरिक व्यंजन
- मंडवे की रोटी
- झंगुरे की खीर
- अरसा
- चैसोणी
- भांग की चटनी
- बाड़ी
- कंडाली का साग
- फाणु का साग
- गहत के परांठे
मंडवे की रोटी
मंडवे की रोटी गढ़वाल मे खाये जाने वाली सबसे मुख्य व्यंजन है यह स्वादिष्ट के साथ साथ पौष्टिक व्यंजन है , लोग मंडवे की रोटी पुदीने की चटनी , घी या तिल की चटनी के साथ खाते हैं । मंडवे के आटे जापान और अन्य देशों मे भी निर्यात किया जाता है ।
झंगुरे की खीर
झंगूरे की खीर को सामान्यता चावल के खीर जेसे ही पकाया जाता है लेकिन ये चावल की तुलना मे अधिक स्वादिष्ट और पौष्टिक होती है
अरसा
अरसा उत्तराखंड मे बहुत लोकप्रिय व्यंजन है इसे बनाने के लिए चावल को बारीक पीस कर उसे गुड मे मिलाया जाता है फिर उसके कूकीज़ बना कर तेल मे तल दिया जाता है । यह व्यंजन खासकर शादियों और शुभ कार्यों मे बनाया जाता है ।
चैसोणी
इसमें उड़द और भट्ट की दाल को पीसकर गाढ़ा पकाया जाता है. इसके स्वाद में इजाफे के लिए बारीक टमाटर, प्याज, अदरक का पेस्ट बनाकर खूब पकाया जाता है. यह दिन के खाने के तौर पर खूब पसंद किया जाता है.
भांग की चटनी
भांग की चटनी किसी भोजन के साथ खाने से भोजन को और स्वादिष्ट बनाती है. इसका खट्टा-नमकीन-तीखा फ्लेवर सभी तरह के परांठे और मंडवे की रोटी के साथ जबरदस्त स्वाद देता है.
बाड़ी
इसे बनाने के लिए मंडवे के आटे में नमक, लाल मिर्च पाउडर मिलकार हलवे की तरह गाढ़ा पकाया जाता है. गढ़वाल में अधिकतार पकवान और व्यंजन बनाने के लिए लोहे की कढ़ाई का इस्तेमाल होता है.
कंडाली का साग
कंडाली पहाड़ों मे पाई जाने वाली एक जंगली घास होती है जिसे बिच्छू घास भी कहा जाता है , इसका प्रयोग गढ़वाल मे सब्जी बनाने , साग बनाने मे किया जाता है , इसकी विशेष बात यह कि इसे छूने से ढंक जेसे लगने का अनुभव होता है अत: इसकी सब्जी बहुत सावधानी से बनाई जाती है
फाणु का साग
इसमें गहत की दाल को पीसकर गाढ़ा पकाया जाता है. इसके पानी का खास ख्याल रखा जाता है. यह जितनी गाढ़ी बने उतना बेहतर. जब पीसी हुई गहत अच्छे से गाढ़ी हो जाए तब उसमें बारीक टमाटर, प्याज, अदरक, लहसन आदि डालकर इसे अच्छी तरह पकाया जाता है.
गहत के परांठे
सुबह के नाश्ते के लिए गहत की दाल के परांठे गढ़वाल में ऑल टाइम फेवरेट हैं. तासीर से गर्म गहत पहाड़ी मौसम के लिहाज से भी लाभदायक है. भांग की चटनी के साथ इसका स्वाद और निखर जाता है. लोग गहत की दाल को भूनकर भी खाना पसंद करते हैं. आमतौर पर इसके लिए मंडवे के आटे का इस्तेमाल होता है.
