ब्रिटिश शासनकाल में दुगड्डा सयुंक्त गढ़वाल (अब पौड़ी, चमोली व रुद्रप्रयाग) का एक प्रमुख व्यापारिक और राजनीतिक केंद्र था ।

पंडित धनिराम मिश्र ने दुगड्डा नगर को 19वीं शताब्दी के नौवे दशक में अपने खेतों में बसाया ।

अनेक प्रतिष्ठित मारवाड़ी व्यापारिक परिवारों ने यहाँ आकर व्यापार को नई गति दी ।

यह बिजनौर, मुरादाबाद, देहरादून जनपदों के अलावा चीन की सीमा सा लगे नीति, माणा आदि के सीमांतवासियों का प्रमुख व्यापारिक केंद्र था ।

सांस्कृतिक और सामाजिक क्षेत्र में सम्पूर्ण गढ़वाल में पहली बार कुली बेगार प्रथा का अंत, डोला पालकी आंदोलन, आर्य समाज की स्थापना एवं

स्वराज प्राप्ति की भावना को जागृत करने का श्रेय भी इसी नगर को है ।

स्व. बैरिस्टर मुकुंदिलाल के गढ़वाल आने के बाद राजनैतिक क्षेत्र में भी यह नगर स्वतन्त्रता आंदोलन का प्रमुख केंद्र बना ।

सन 1936 मे पं. जवाहरलाल नेहरू पहली बार दुगड्डा पधारे थे ।

वह दूसरी बार 1945 मे आए ।

अमर शहीद चन्द्रशेखर आजाद भी नाथोपुर (दुगड्डा) निवासी भवानी सिंह रावत की प्रेरणा से युवा साथियों के साथ

सन 1930 में दुगड्डा में एक सप्ताह तक अज्ञातवास में रहे ।

यहाँ नगर पालिका परिषद गठित है ।

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