ऐपण (Aipan) का अर्थ होता है  लिपना या सजावट जो किसी धार्मिक अवसर पर की जाती है | उत्तराखंड में एपण का महत्व अत्यधिक है उत्तराखंड मे ये संस्कृति सभी शुभ कार्यों से पूर्व देहली में, देवताओं के स्थानों पर, मंदिरों और त्योहारों में पवित्र स्थानों पर बनाई जाती हे।

इन ऐपणो को बनाने के लिए सबसे पहले ऐपन वाले स्थान पर गेरू (लाल मिट्टी) से लिपाई की जाती है फिर सूख जाने पर चावल को भिगाकर एवं पीसकर उसमें पानी डालकर उसे पतला कर लिया जाता है फिर उंगलियों से बहुत शानदार कला-कृति का नमूना पेश करते हैं, जिन्हे बसन्त धारे कहते हैं किसी भी शुभ कार्य के लिए ये शुभ माने गए है । 

ऐपण बनाते वक्त महिलाएं चांद ,सूरज, स्वस्तिक, गणेश जी, फूल,पत्ते, बेल बूटे, लक्ष्मी पैर ,चोखाने ,चौपड़ ,शंख ,दिये ,धंटी आदि चित्र खूबसूरती से जमीन पर उकेरती हैं।जिस जगह पर ऐपण बनाने होते हैं उस जगह की पहले गेरू से पुताई की जाती हैं। उसके बाद उसमें बिस्वार से डिज़ायन बनाये जाते हैं ।

रंगोली बनाने की यह एक ऐसी विशिष्ट कला है, जिसमें घरों के दरवाजों पर फूलों की पत्तियों, रंगे हुए चावलों और आटे से खूबसूरत आकृतियां उकेरी जाती हैं। वैसे सबसे ज्यादा रंगोली लाल फर्श पर सफेद चावल के पेस्ट से बनाई जाती है। इस शैली में बनाई जाने वाली रंगोली के अधिकांश डिजाइंस प्रकृति से प्रेरित होते हैं, लेकिन ज्योमितिक आकृतियों का भी भरपूर इस्तेमाल किया जाता है। लगभग हर कुमाऊंनी महिला को यह कला विरासत में मिलती है।

यह रंगोली इतनी पवित्र मानी जाती है कि लोगों का विश्वास है कि जिन घरों के आगे इसे बनाया जाता है, वहां बुरी शक्तियां प्रवेश नहीं कर पातीं। इसीलिए अक्सर यहां के लोग अपने घरों के भीतर बने मंदिरों को भी एपण से सजाते हैं। 

देश के अन्य हिस्सों में भी ऐपण (Aipan) बनाई जाती हैं लेकिन अलग-अलग नामों से और अलग-अलग रंगों से। जैसे महाराष्ट्र में रंगोली,उत्तर प्रदेश में सांची, असम तथा बंगाल में अल्पना,बिहार में अरिपन ,राजस्थान में मांडला और उत्तराखंड में ऐपण के नाम से जाना जाता है।रंगोली में अनेक प्रकार के रंगों का प्रयोग किया जाता हैं।

Pic Credit : Lakhan Singh

Instagram : @lakhansingh_official07

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *