बद्रीदत्त पाण्डेय का मूल निवास एवं शिक्षा स्थल अल्मोड़ा था, लेकिन जन्म 15 फरवरी 1882 को ( कनखल ) हरिद्वार में हुआ था ।

  • पिता – विनायक पाण्डे ( बैध )
  • शिक्षा – अधूरी
  • बचपन में ही इनके माता-पिता का देहांत हो गया ।

सैनिक कार्यशाला देहरादून में कार्य किया ।

1908 में नौकरी से इस्तीफा ।

पत्रकारिता में विशेष रूचि ।

“लीडर“(समाचार पत्र इलाहबाद)

“कस्मोपोलीटन” ( देहरादून से) समाचार पत्र में कार्य किया ।

1913 मे अल्मोड़ा अखबार का संपादक कार्य किया ।

1918 की विजयादशमी से बद्रीदत्त जी ने ‘शक्ति’ नामक एक नया पत्र प्रारम्भ कर दिया ।

कुमाऊं के स्वाधीनता तथा समाज सुधार आंदोलनों में इस पत्र तथा बद्रीदत्त जी का बहुत बड़ा योगदान है ।

1916 में उन्होंने ‘कुमाऊं परिषद’ नामक संस्था बनाई, जिसे गांधी जी का आशीर्वाद भी प्राप्त हुआ ।

1920 में इसके काशीपुर अधिवेशन में पहाड़ में प्रचलित “कुली और बेगार” जैसी कुप्रथाओं को समाप्त करने के प्रस्ताव पारित किये गये ।

‘कुली बेगार प्रथा’ के विरोध में 1921 की मकर संक्रांति पर 40,000 लोग बागेश्वर में एकत्र हुए और सरयू नदी के तट पर कुली बेगार प्रथा का अंत किया।

कुली बेगार प्रथा के बाद कुमार केसरी की उपाधि मिली ।

स्वाधीनता आंदोलन में 5 बार जेल गए ।

1955 में सांसद बने ।

“बरेली” कारावास के दौरान कुमाऊ का इतिहास पुस्तक लिखी ।

13 जनवरी, 1965 को बद्रीदत्त जी का देहांत हुआ। उनका दाह संस्कार बागेश्वर में सरयू के तट पर किया गया।

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