अनुच्छेद 343 : संघ की राजभाषा 

संविधान के अनुच्छेद 343 के अनुसार संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी । अंको का रूप भारतीय अंको का अंतरराष्ट्रीय रूप होगा ।

संविधान के  अनुच्छेद 343 (2) के अनुसार इस संविधान के प्रारम्भ से 15 वर्ष की अवधि तक (अर्थात 1965 तक ) उन सभी शासकीय प्रयोजनों के लिए अँग्रेजी भाषा का प्रयोग किया जाता रहेगा, जिनके के लिए पहले प्रयोग किया जा रहा था ।

संविधान के  अनुच्छेद 343 (3) के अनुसार संसद उक्त 15 वर्ष की अवधि के पश्चात, विधि द्वारा

(1) अँग्रेजी भाषा का या

(2) अंको के देवनागरी रूप का

एसे प्रयोजनों के लिए प्रयोग उपबंधित कर सकेगी जो एसी विधि मे स्पष्ट रूप से बताया जाए ।

अर्थात सरकार ने यह शक्ति प्राप्त कर ली कि वह इस 15 वर्ष कि अवधि के बाद भी अँग्रेजी का प्रयोग जारी रख सकती है ।

संविधान के  अनुच्छेद 344 : राजभाषा के संबंध मे आयोग (5 वर्ष के उपरांत राष्ट्रपति द्वारा) आर संसद की समिति (10 वर्ष के उपरांत)

अध्याय 2 : प्रादेशिक भाषाएँ

अनुच्छेद 345 : राज्य की राजभाषा या राजभाषाएँ (प्रादेशिक भाषा/भाषाएँ या हिन्दी एसी व्यवस्था होने तक अँग्रेजी का प्रयोग जारी)

अनुच्छेद 346 : एक राज्य और दूसरे राज्य के बीच या किसी राज्य और संघ के बीच पत्रादि की राजभाषा

अनुच्छेद 347 : किसी राज्य की जनसंख्या के किसी अनुभाग द्वारा बोली जाने भाषा के संबंध मे विशेष उपबंध

 

अध्याय 3 : SC, HC आदि की भाषा

अनुच्छेद 348 : SC और HC मे और संसद व राज्य विधानसभा मे विधेयक, अधिनियमो आदि के लिए प्रयोग की जाने वाली भाषा (उपबंध होने तक अँग्रेजी जारी )

अनुच्छेद 349 : भाषा से संबन्धित कुछ विधियाँ अधिनियमित करने के लिए विशेष प्रक्रिया [राजभाषा संबन्धित कोई भी विधेयक
राष्ट्रपति की पूर्व मंजूरी के बिना पेश नहीं की जा सकती और राष्ट्रपति भी आयोग की सिफ़ारिशों पर विचार करने के बाद ही मंजूरी दे सकेगा । ]

अध्याय 4 : विशेष निदेश

अनुच्छेद 350 : व्यथा के निवारंण के लिए अभ्यावेदन मे प्रयोग की जानेवाली भाषा (किसी भी भाषा मे )
(i) भाषाई अल्पसंख्यक वर्गों के लिए प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा मे शिक्षा की सुविधाएं
(ii) भाषाई अल्पसंख्यक वर्गों के लिए विशेष अधिकारी की नियुक्ति (राष्ट्रपति द्वारा )

अनुच्छेद 351 : हिन्दी के विकास के लिए विशेष

संघ का यह कर्तव्य होगा कि वह हिन्दी भाषा का प्रसार बढ़ाए, उसका विकास करे जिससे वह भारत की सामासिक संस्कृति के सभी तत्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके ।
शब्द भंडार के लिए मुख्यतः संस्कृत से और गौणतः अन्य भाषाओं से शब्द ग्रहण करते हुये उसकी समृद्धि सुनिश्चित करे ।

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