हाइपरलूप तकनीक की अवधारणा सबसे पहले जॉर्ज मेडहर्स्ट द्वारा 1799 में दी गयी थी ।

उस समय इस तकनीक को वायुमंडलीय रेलवे या वायवीय रेलवे के नाम से जाना गया ।

फिर एक अमेरिकन इंजीनियर रॉबर्ट गोडार्ड ने 1904 में इसी तकनीक पर आधारित वैक्ट्रेन को पेश किया ।

उसके बाद टेस्ला और स्पेस एक्स के सीईओ एलन मस्क ने कुछ सुधार के साथ इस तकनीक को हाइपरलूप तकनीक

के नाम से 2012 – 2013 में पूरी दुनिया के सामने रखा, उनके अनुसार एक निर्वात ट्यूब के माध्यम से

लगभग 1200 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से यात्रा किया जा सकता है ।

निर्वात ट्यूब के अंदर एक बोगी होती है, जिसको इस प्रकार से डिजाइन किया जाता है कि

उसे चुंबकिय ऊर्जा द्वारा चलाया जा सके, चुंबकिय ऊर्जा के कारण ही

बोगी निर्वात ट्यूब के अन्दर तैरते हुए चलती है । ट्यूब के अन्दर से हवा को बाहर निकाल कर उसमें निर्वात की स्थिति बनाई जाती है,

ताकि बोगी पर वायु का लगने वाला घर्षण लगभग शुन्य हो ।

भारत में हाइपरलूप परिवहन दुनिया के तमाम विकसित देशों

के साथ-साथ भारत भी हाइपरलूप की दौड़ में शामिल है, अन्य देशों के साथ-साथ भारत ने भी इस परियोजना

पर कार्य प्रारम्भ कर दिया है, भारत में इस परियोजना के अन्तर्गत

मुम्बई से पुणे के बीच में पहली हाइपरलूप ट्रेन चलाई जाएगी ।

इस ट्रेन की अधिकतम गति लगभग 500 किलोमीटर प्रति घंटे तक हो सकती है

तथा यह दोनों शहरों के बीच की दूरी को 23 से 25 मिनट में तय करने में सक्षम होगी ।

हाइपरलूप तकनीक की आवश्यकता

हाइपरलूप तकनीक की आवश्यकता सस्ते,  तेज कुशल एवं सुरक्षित यात्रा के लिए ,

परिवहन माध्यम के टर्मिनलों पर भीड़भाड़ एवं ट्रैफिक कम करने के उद्देश्य से ,

इस तकनीक में कार्बन का उत्सर्जन लगभग शून्य होता है । ऐसा अनुमान है कि इसके उपयोग से आने वाले

30 सालों में, ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन में लगभग 36000 टन की कमी आ सकती है ।

हाइपरलूप की उपयोगिता को देखते हुए विश्व के लगभग सभी देश अपनी-अपनी अर्थव्यवस्था में विस्तार के लिए,

इस तकनीक का इस्तेमाल करते नजर आ रहे हैं । लास वेगास में वर्जिन हाइपरलूप वन नामक कंपनी ने

अभी हाल में ही मानव सहित हाइपरलूप ट्रेन का परीक्षण किया था । अमेरिका के अलावा दुबई और अबू धाबी आदि

देशों में भी हाइपरलूप प्रोजेक्ट पर जोरो-शोरों से काम जारी है ।

हाइपरलूप तकनीक की कार्यप्रणाली

हाइपरलूप को एक विशेष मिश्रधातु (उच्च दाब एवं उच्च ताप सहन करने वाले) से बनाया जाता है ।

चालक रहित इन बोगीयों की गति लगभग 1000 किलोमीटर प्रति घंटा तक होगी ।

इन पोड (बोगी) की गति को रैखिक प्रेरण मोटरों द्वारा नियंत्रित किया जाता है ।

हाइपरलूप ट्रेन चुंबकीय ऊर्जा पर आधारित तकनीक है, जिसके फलस्वरूप इसमें विद्युत ऊर्जा की खपत कम होती है ।

यह तकनीक पर्यावरण के अनुकूल है । ट्यूब में वायु की अनुपस्थिति के कारण कैप्सूल (बोगी) पर,

हवा द्वारा लगाया गया घर्षण बल लगभग शून्य होता है, जिसके कारण इसकी गति

लगभग 1000 से 1300 किलोमीटर प्रति घंटा तक जा सकती है ।

हाइपरलूप तकनीक की चुनौती

इस परिवहन तकनीक की उच्च गति ही इसकी सबसे बड़ी चुनौती है, क्योंकि अगर 1000 किमी प्रति घंटा की गति से

चलायमान इस वाहन परजब अचानक से इमरजेंसी ब्रेक लगाने की नौबत आई तो

इसका वाहन एवं यात्रियों पर क्या प्रभाव पड़ेगा । इसका अनुमान लगाने तथा इस समस्या के समाधान को लेकर अभी भी

विशेषज्ञ असमंजस में पड़े हुए हैं । यह सत्य है कि हाइपरलूप तकनीक प्रारम्भिक परीक्षणों में सफल रहा है ।

फिर भी सुचारू रूप से मानव को यात्रा कराने में इसे वर्षों लग जाएगें । घुमावदार रास्ते शायद इसके संचालन में अवरोधक बन सकते हैं ।

यह परियोजना अत्यधिक खर्चीली है । हाइपरलूप तकनीक परिवहन के चारों साधनों

(जल परिवहन, थल परिवहन, वायु परिवहन तथा रेल परिवहन) से अलग, पाँचवा साधन है क्योंकि

इस तकनीक में ट्यूब के अंदर निर्वात होता है । चूंकि हाइपरलूप तकनीक में परिवहन की

गति, वायु परिवहन से भी लगभग दो गुणा तेज है, इसलिए यह पूरे विश्व के परिवहन प्रणाली को प्रभावित करने की क्षमता रखता है ।

परन्तु वर्तमान समय में इसके मार्ग में अनेक बाधाएं है, जिनको निरन्तर विशेषज्ञों द्वारा दूर करने का प्रयास किया जा रहा है ।