1857 में ब्रिटिश शासन के विरूद्ध प्रथम विद्रोह में शामिल महान स्वतन्त्रता सेनानी ‘कालू मेहरा‘ (काल्मारज्यू) थे ।

1905 में गढ़वाल-यूनियन की ओर से देहरादून से ‘गढ़वाली‘ नाम से अखबार का प्रकाशन शुरू किया गया ।

इस अखबार ने गढ़वाल क्षेत्र में स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान सामाजिक चेतना फैलाने में अहम भूमिका निभायी ।

कुली बेगार आंदोलन

1916 में नैनीताल में स्थापित ‘कुमाऊँ परिषद‘ ने राष्ट्रीय आन्दोलन के दौरान कुली बेगार, कुली उतार, कुली बर्दायश व

जंगल सम्बन्धी समस्याओं, बन्दोबस्त आदि के विरोध में आवाज उठायी और आन्दोलन किये ।

कूर्मांचल केसरी बद्रीदत पाण्डे ने ‘अलमोड़ा अखबार‘ में डिप्टी कमिश्नर लोमस के कारनामों को प्रकाशित किया,

फलस्वरूप अखबार पर भारी जुर्माना लगाया गया ।

इस अखबार को बन्द करने के बाद 1918 में ‘शक्ति‘ नाम से दूसरा अखबार शुरू हुआ ।

1921 के मकर संक्राति के मेले के अवसर पर बागेश्वर में बद्रीदत पाण्डे, हरगोविन्द पंत व चिरंजीलाल की

अगुवाई में कुमाऊँ के 40,000 से अधिक लोगों ने कुली बेगार कुप्रथा का अन्त करने के उद्देश्य से कुली बेगार के

समस्त रजिस्टर व कागजात सरयू नदी की धारा में बहा दिए।

स्वतन्त्रता आन्दोलन के दौरान राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने भी उत्तराखण्ड की यात्रा की ।

हल्द्वानी, ताकुला, नैनीताल, भवाली, रानीखेत, अल्मोड़ा, कौसानी, बागेश्वर, हरिद्वार, देहरादून और

मसूरी की यात्रा कर उन्होंने कई स्थानों पर सभा और बैठके कीं ।

टिहरी राज्य आंदोलन

वर्ष 1929 में टिहरी राज्य में नया वन बंदोबस्त लागू हुआ,

इसमें जनता की जरूरतों एवं सुविधाओं का ध्यान नहीं रखा गया ।

टिहरी की जनता ने विरोध स्वरूप उग्र आन्दोलन किया । कई बार समझौते के भी प्रत्यन हुए, टिहरी राज्य के

दीवान चक्रधर जुयाल ने आन्दोलन कर रही जनता पर गोलियां चलवा दीं । इसमें कई लोग मारे गये।

इसे टिहरी का ‘जलियावाला बाग काण्ड‘ भी कहते हैं ।

चन्द्र शेखर आजाद

क्रांतिकारी चन्द्रशेखर आजाद अपने भवानी सिंह रावत जैसे साथियों के साथ गुपचुप

तरीके से दुगड्डा (गढ़वाल) आये थे ।

जहां उन्होने समीप के जंगल में क्रांतिकारी दल के सदस्यों को पिस्तौल चलाने की ट्रेंनिग दी थी ।

सल्ट आंदोलन

स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान अल्मोड़ा जनपद के देघाट, सालम और सल्ट खुमाड़ में भी लोगों द्वारा हड़ताल,

आन्दोलन और विरोध प्रकट करने पर ब्रिटिश सैनिकों द्वारा गोलियां चलायी गयी ।

जिनमें 6 लोग शहीद और कई लोग घायल हो गये थे।

1937 में महात्मा गांधी के परम शिष्य श्री शांतिलाल त्रिवेदी द्वारा अल्मोड़ा के चनौदा

नामक स्थान पर ‘गांधी आश्रम‘ की स्थापना की गयी ।

बाद में यह केन्द्र स्थानीय (क्षेत्रीय) राजनीतिक जागृति का प्रमुख केन्द्र बना ।

 भारत छोड़ो आन्दोलन

नैनीताल में ‘भारत छोड़ो आन्दोलन‘ का काफी उग्र रूप दिखायी दिया, मंगोली व भीमताल के डाक बंगले,

नैनीताल का जंगलात ऑफिस और भीमताल के अंग्रजी होटल में लोगों द्वारा आग लगा दी गयी ।

इस आरोप में कुछ युवकों को गिरफ्तार किया गया और उन पर मुकदमा चलाया गया ।

उनकी ओर से जब किसी वकील को पैरवी करने का साहस नहीं हुआ, तब इन्द्रसिंह नयाल ने निःशुल्क

पैरवी कर देशभक्ति की नई मिसाल पेश की । नेताजी सुभाष चन्द्रबोस की आजाद हिन्द फौज में उत्तराखण्ड के

महेन्द्र सिंह बागड़ी और ज्ञान सिंह बिष्ट ने अद्वितीय रण कौशल एवं साहस का परिचय देकर युद्ध में शहादत दी थी ।