लेख मे अशोक ने घोषणा की है कि मैंने राज्य के हर स्थान पर मनुष्यों व पशुओं कि चिकित्सा व्यवस्था कर दी है तथा लोगों से हिंसा त्यागने व अहिंसा को अपनाने कि बात कही गयी है ।
यह शिलालेख देहरादून जनपद मुख्यालय से चकराता राजमार्ग पर लगभग 5० कि० मी० दूर यमुना नदी के तट पर कालसी प्रखण्ड में अवस्थित है तथा भारतीय पुरातत्वसर्वेक्षण विभाग द्वारा संरक्षित है |
कालसी शिलालेख मे यहाँ के निवासियों के लिए पुलिंद व इस क्षेत्र के लिए अपरान्त कहा गया है । यह लेख यमुना व टोंस नदी के संगम पर है ।
कालसी का प्राचीन नाम सुधनगर व कलकूट था । कलकूट कूणिन्दों कि राजधानी थी ।
कलिंग युद्ध के पश्चात् अशोक ने अपने जीवन में कोई दूसरा युद्ध नहीं किया । उसके ह्रदय में युद्ध के प्रति घृणा उत्पन्न हो गयी थी । कालांतर में वह बौद्ध धर्म का अनुयायी बन गया था । कालसी शिलालेख में उसने हाथी की आकृति उत्कीर्ण करवायी जिसके नीचे ‘गजतमे’ शब्द उत्कीर्ण है । उक्त हाथी को आकाश से उतरता दिखाया गया है जिसे इस रूप में माता के गर्भ में भगवान बुद्ध के आने का आभास होता है । अशोक के धौली [कलिंग ] शिलालेख में भी हाथी की आकृति उकेरी गयी है जो उसके बौद्ध धर्मानुयायी होने का द्योतक है ।
