हाल ही में जैव ऊर्जा रक्षा अनुसंधान संस्थान (डिबेर), हल्द्वानी के वैज्ञानिक डॉ. रंजीत सिंह ने बताया कि कीड़ा जड़ी (कार्डीसेप्सस साईनेसिस) के डिबेर लैब में उत्पादन संबंधी शोध में सफलता के बाद अब इसका व्यावसायिक उत्पादन उत्तराखंड, गुजरात एवं केरल स्थित तीन लैब में किया जाएगा।
प्रमुख बिंदु
यह जड़ी एक विशेष प्रकार के कीड़े के मरने पर उसमें निकले फफूँद से प्राप्त होता है । इसमें प्रोटीन अमीनो एसिड, विटामिन B-1, B-2 एवं B -12 जैसे पोषक तत्त्व पाए जाते हैं।
इसका प्रयोग निम्न रोगों के उपचार मे किया जाता है-
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- किडनी उपचार
- उच्च रत्तचाप नियंत्रण
- रक्त निर्माण
- अस्थमा, नपुंसकता, अस्थि जोड़ में दर्द आदि का उपचार
कीड़ा जड़ी उत्तराखंड के चमोली और पिथौरागढ़ के धारचूला व मुनस्यारी क्षेत्र में 3,500 मीटर से अधिक ऊँचाई वाले स्थानों में प्राकृतिक रूप से उगती है।
चीन और तिब्बत में इसे यारशागुंबा भी कहा जाता है ।
कीड़ाजड़ी की मांग भारत के साथ चीन, सिंगापुर और हांगकांग में खूब है।
वहां से व्यापारी कीड़ाजड़ी लेने काठमांडू और कभी-कभी धारचूला तक आ पहुंचते हैं।
एजेंट के माध्यम से विदेशी व्यापारियों को यह करीब 20 लाख रुपये प्रति किलो की दर से बिकती है।
जानकारों के मुताबिक एशिया में हर साल कीड़ाजड़ी का करीब 150 करोड़ का कारोबार होता है।
