जन्म – वर्ष 1595 , मलेथा , टीहरी
माधो सिंह भंडारी के पिताजी का नाम ‘कालू भंडारी’ था, जो एक बड़े वीर योद्धा थे|
माधो सिंह भंडारी कम उम्र में ही श्रीनगर के शाही दरबार की सेना में भर्ती हो गये और अपनी वीरता व युद्ध कौशल से सेनाध्यक्ष के पद पर पहुंच गये। वह राजा महिपात शाह ( 1629 – 46 ) की सेना के सेनाध्यक्ष थे। जहां उन्होने कई नई क्षेत्रों में राजा के राज्य को बढ़ाया और कई किले बनवाने में मदद की।
महिपति शाह ने माधोbसिंह भंडारी को दापा एवं विशहर पर आक्रमण करने भेजा जिसमें माधो सिंह भंडारी ने असाधारण वीरता का परिचय दिया था ।
तिब्बत सीमा पर माधो सिंह द्वारा बनवाए हुए चबूतरे आज भी पाए जाते थे ।
गढ़वाल के इस महान सेनापति, योद्धा और कुशल इंजीनियर माधोसिंह भंडारी के बारे में गढ़वाल में यह छंद काफी प्रसिद्ध है –
एक सिंह रैंदो बण, एक सिंह गाय का।
एक सिंह माधोसिंह, और सिंह काहे का।।
(यानि एक सिंह वन में रहता है, एक सींग गाय का होता है। एक सिंह माधोसिंह है। इसके अलावा बाकी कोई सिंह नहीं है।)
मलेथा की कूल
युद्ध वीरता के साथ – साथ माधो सिंह भंडारी को पहाड़ काटकर 225 फीट लंबी सुरंग बनाकर मलेथा नहर के लिए भी जाना जाता है ।
जिसके लिए उन्होंने सामाजिक हित के लिए अपने एकमात्र पुत्र गजे सिंह की बलि तक दी थी ।
400 साल बाद भी मलेथा की कुल मलेथा के खेतों की प्यास बुझा रही है ।
मांझी द माउंटेन मैन्न की तरह ही कुछ वर्ष पूर्व माधो सिंह भंडारी पर भी “मलेथा की कूल ” नामक dvd फिल्म बनाई गई थी। जिसके निर्देशन बलराज नेगी जी है ।
संपूर्ण गढ़वाल आज भी माधो सिंह और गजे सिंह की वीरता और त्याग के अमर गाथा के पवाडे गाए जाते हैं ।
माधो सिंह भंडारी के पिताजी का नाम ‘कालू भंडारी’ था, जो एक बड़े वीर योद्धा थे|
माधो सिंह भंडारी कम उम्र में ही श्रीनगर के शाही दरबार की सेना में भर्ती हो गये और अपनी वीरता व युद्ध कौशल से सेनाध्यक्ष के पद पर पहुंच गये। वह राजा महिपात शाह ( 1629 – 46 ) की सेना के सेनाध्यक्ष थे। जहां उन्होने कई नई क्षेत्रों में राजा के राज्य को बढ़ाया और कई किले बनवाने में मदद की।
महिपति शाह ने माधोbसिंह भंडारी को दापा एवं विशहर पर आक्रमण करने भेजा जिसमें माधो सिंह भंडारी ने असाधारण वीरता का परिचय दिया था ।
तिब्बत सीमा पर माधो सिंह द्वारा बनवाए हुए चबूतरे आज भी पाए जाते थे ।
गढ़वाल के इस महान सेनापति, योद्धा और कुशल इंजीनियर माधोसिंह भंडारी के बारे में गढ़वाल में यह छंद काफी प्रसिद्ध है –
एक सिंह रैंदो बण, एक सिंह गाय का।
एक सिंह माधोसिंह, और सिंह काहे का।।
(यानि एक सिंह वन में रहता है, एक सींग गाय का होता है। एक सिंह माधोसिंह है। इसके अलावा बाकी कोई सिंह नहीं है।)
मलेथा की कूल
युद्ध वीरता के साथ – साथ माधो सिंह भंडारी को पहाड़ काटकर 225 फीट लंबी सुरंग बनाकर मलेथा नहर के लिए भी जाना जाता है ।
जिसके लिए उन्होंने सामाजिक हित के लिए अपने एकमात्र पुत्र गजे सिंह की बलि तक दी थी ।
400 साल बाद भी मलेथा की कुल मलेथा के खेतों की प्यास बुझा रही है ।
मांझी द माउंटेन मैन्न की तरह ही कुछ वर्ष पूर्व माधो सिंह भंडारी पर भी “मलेथा की कूल ” नामक dvd फिल्म बनाई गई थी। जिसके निर्देशन बलराज नेगी जी है ।
संपूर्ण गढ़वाल आज भी माधो सिंह और गजे सिंह की वीरता और त्याग के अमर गाथा के पवाडे गाए जाते हैं ।