पृथ्वी के धरातल का अचानक कंपन करना भू-कंप कहलाता है । अधिकांश भूकंप सूक्ष्म कंपन होते हैं ।

तीव्र भूकंप सूक्ष्म कंपन से प्रारंभ होकर उन कंपनों में बदल जाते हैं और विनाश कर देते हैं ।

भूकंप के झटके मात्र कुछ सेकण्ड के लिए आते हैं । भूकंप एक ऐसी अप्रत्याशित आकस्मिक घटना है

जो अचानक ही उत्पन्न हो जाती है । भूकंप विज्ञान या सिस्मोलॉजी विज्ञान की वह शाखा है

जिसके अंतर्गत जिसमें सिस्मोग्राफ द्वाराअंकित लहरों का अध्ययन किया जाता है ।

भूकंप का प्रभाव भू सतह के ऊपर होता है किंतु भूकंप की घटना भूसतह के नीचे होती है ।

भूकंप मूल

जिस स्थान पर भूकंप की घटना प्रारंभ होती है,

उस स्थान को भूकंप का उत्पत्ति केन्द्र या भूकंप मूल कहते हैं । यह भूगर्भ में स्थित वह स्थान होता है

जहाँ से भूकंप से उत्पन्न लहरें प्रसारित होती हैं। इस प्रकार की लहरों को भूकंपीय लहर कहते हैं ।

भूकम्प मूल के ठीक ऊपर धरातल पर भूकम्प का वह केन्द्र होता है, जहाँ पर भूकम्पीय लहरों का ज्ञान सर्वप्रथम होता है ।

इस स्थान को भूकम्प केन्द्र अथा ‘अभिकेन्द्र’ कहा जाता है।

भूकंप अभिकेन्द्र सदैव भूकंप मूल के ठीक ऊपर समकोण पर स्थित होता है तथा

भूकंप से प्रभावित क्षेत्रों में यह भाग भूकम्प मूल से सबसे नजदीक होता है ।

अभिकेन्द्र पर लगे यंत्र द्वारा भूकम्पीय लहरों का अंकन किया जाता है ।

इस यंत्र को भूकंप लेखन यंत्र या सिस्मोग्राफ कहते हैं । इसकी सहायता से भूकम्पीय लहरों की गति तथा

उनके उत्पत्ति स्थान एवं प्रभावित क्षेत्रों के विषय में जानकारी प्राप्त हो जाती है ।

भारत में पूना, मुम्बई, देहरादून, दिल्ली, कोलकाता आदि में भूकम्प लेखन यंत्रों की स्थापना की गई है ।

जब भूकंप मूल से भूकम्प प्रारंभ होता है, तो इस केन्द्र से भूकम्पीय लहरें उठने लगती हैं, तथा

सर्वप्रथम ये भूकम्प अभिकेन्द्र पर पहुँचती हैं। यहाँ पर सीस्मोग्राफ द्वारा इनका अंकन कर लिया जाता है।

भूकंपीय लहरें

प्राथमिक अथवा प्रधान – लहरें इन्हें अंग्रेजी के (P) से निरूपित किया जाता है । ये लहरें ध्वनि तरंगों के समान होती हैं, तथा

इनमें अणुओं की कंपन लहरों की दिशा में आगे या पीछे होती रहती है। चूंकि इन लहरों से दबाव पड़ता है, अतः

इन्हें दबाववाली लहरें कहते हैं। इन लहरों का उद्भव चट्टानों के कणों के सम्पीड़न से होता है।

अनुप्रस्थ लहरें – इन्हें अंग्रेजी के (S) से निरूपित किया जाता है। ये लहरें प्रकाश तरंग के समान होती हैं।

इनमें अणु की गति लहर क समकोण पर होती है। इन्हें द्वितीयक अथवा गौण लहरें भी कहते हैं,

क्योंकि ये प्राथमिक सीधी लहर के बाद प्रकट होती हैं। इनकी गति प्राथमिक लहर की अपेक्षा कम होती है।

इस लहर को विध्वंसक लहर भी कहते हैं।

धरातलीय लहरें – इन्हें अंग्रेजी के (L) से निरूपित किया जाता है ।

ये लहरें प्राथमिक तथा द्वितीयक लहरों की तुलना में कम वेगवान होती है

तथा इनका भ्रमण पथ पृथ्वी का धरातलीय भाग ही होता है ।

इन्हें दोनों लहरों की तुलना में अधिक लंबा पथ तय करना पड़ता है।

इस कारण ये तरंगे धरातल पर सबसे विलंब से पहुँचती है। इन तरंगों को लंबी अवधि वाली तरंगें भी कहते हैं।

ये लहरें जल से होकर गुजर सकती हैं इसलिए इनका प्रभाव जल तथा थल दोनों में होता है, और ये सर्वाधिक विनाशकारी होती हैं ।