uttarakhand panwar shaasan

उत्तराखंड पँवार शासन

उत्तराखंड पँवार शासन

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9वीं शताब्दी मे चांदपुर का राजा था – भानुप्रताप
भानुप्रताप का दूसरा नाम था – सोनपाल
कनकपाल आया था – धारा नगरी से
कनकपाल ने परमार वंश की स्थापना की – 888 ईस्वी मे
धारसिल अभिलेख संबन्धित है – अनंतपाल से
दापा (तिब्बत) पर प्रथम असफल आक्रमण किस पँवार राजा ने किया था – विजयपाल ने
पहला पँवार वंश राजा जिसने सर्वप्रथम स्वर्ण मुद्राए चलवाई – लखनदेव
भिलंग घाटी का पहला स्वतंत्र शासक कौन था – लखन देव‘पुराना दरबार’ का उत्तराखण्ड मे निर्माण किया – सुदर्शन शाह ने सन् 1815 ई० मे
गढ़वाल विभाजन के पश्चात प्रथम राजप्रसाद – पुराना दरबार ।
गढ़वाल स्थित ‘आदि बद्री’ की रचनाशैली समांतर है – गुजरात एवं राजस्थान के सोलंकी मन्दिरों की शैली सेकवि भरत ने अपनी पुस्तक ‘‘मानोदय’’ (ज्ञानोदय) में ंकिसकी तुलना कृष्ण, युधिष्ठिर, भीम, कुबेर एवं इन्द्र से की है – अजयपाल की
अजयपाल ने 52 गढ़ो को जीता था – 1490 ई0 मे
‘अजयपाल’ ने देवलगढ़ में अपने लिए एक राज प्रासाद का निर्माण करवाया – 1512 ई0 मे
अजयपाल देवलगढ़ से राजधानी श्रीनगर लाया – 1517 मे
अजयपाल ने देवलगढ़ मे अपनी कुलदेवी की प्रतिष्ठा की जिन्हें कहा जाता है – राजराजेश्वरी
धूलिपाथा का प्रचलन किया – अजयपाल ने
अजयपाल के गुरु का नाम था – सत्यनाथComplete One Liner Questions पढ़ने के लिए आप Pdf download कर सकते हैं साथ ही Pariksha RanNiti Join कर सकते हैं ।

ग्रन्थ ‘‘गोरखनाथ एन्ड द कनफटा योगीज’’ लिखा है – जार्ज डब्ल्यू व्रिग्स ने
जार्ज डब्ल्यू व्रिग्स के अनुसार राजा अजयपाल किस पंथ का भी अनुयायी था – गोरखनाथ सम्प्रदाय

ठा० शूरबीरसिंह जी के संग्रह में एक हस्तलिखित तांत्रिक विद्या से सम्बन्धित ग्रन्थ ह ै – ‘साँवरी ग्रन्थ’
‘साँवरी ग्रन्थ’ में अजयपाल को क्या कहकर सम्बेधित किया गया है – ‘आदि नाथ’

देवलगढ़ में किस मन्दिर की दाहिनी ओर ठीक सामने की दीवार पर अजयपाल का एक पद्मासन की मुद्रा में चित्र बना है – विष्णु मन्दिर

अजयपाल का उत्तराधिकारी था – कालयाणशाह

देव प्रयाग में विक्रमी सन् 1548 ई० के क्षेत्रफल मन्दिर के द्वार पर एक शिलालेख किस राजा से संबन्धित है – सहजपाल
देव प्रयाग में रघुनाथ जी के मन्दिर में चढ़ी हुई एक घन्टी में सन् 1561 ई० की खुदी हुई कुछ पंक्तियाँ है इस घन्टी को किसने चढ़ाया
था- सहजपाल

सहजपाल समकालीन था – सम्राट अकबर का
सहजपाल के पश्चात गढ़वाल के सिंहासन पर आसीन ह ुए – ‘बलभद्र शाह’
पहले शासक थे जिन्होंने अपने नाम के आगे ‘शाह’ की उपाधि-धारण की – बलभद्र शाह

बलभद्रशाह के तुरन्त बाद सन् 1591 में शासन की बागडोर थामी – मानशाह ने

सन् 1581 ई० में बलभद्र शाह ने किस कुमाऊँ के शासक से ग्वालदम नामक स्थान पर युद्ध किया – रुद्रचंद से
ग्वाल्दम युद्ध मे रुद्रचंद के हार के साथ किस सेनापति की मृत्यु हुई – पुरुषोतम पंत की

‘‘द अर्ली ट्रैवल्स इन इन्डिया’’ के लेखक हैं – श्री फोस्टर
द अर्ली ट्रैवल्स इन इन्डिया में किस यूरोपीय यात्री ने सन् 1608 से सन् 1611 तक की भारत यात्रा के दौरान गढ़राज्य एवं वहाँ के शासक महाराज मानशाह के नाम का उल्लेख किया है । – श्री विलियम

मानशाह ने लगभग गढ़वाल में शासन किया – सन् 1561 ई० से सन् 1611 ई० तक

श्री मानशाह के शासन काल में किस कुमाऊँ-नरेश ने सन् 1597 से सन् 1620 तक सात आक्रमण किए किन्तु उन्हें मुँह की खानी पड़ी – श्री लक्ष्मीचन्द
1605 मे आठवें आक्रमण मे किस गढ़वाल सेनानायक की मृत्यु हो गई – खतड़ सिंह
1605 मे आठवें आक्रमण मे लक्ष्मीचंद का सेनापति था – गेंडासिंह

मानशाह के सेनापति था – नन्दी
मानशाह के किस सेनापति कुमाऊँ की राजधानी पर भी अधिकार कर लिया था – ‘नन्दी’ ने
मानशाह का दरबारी कवि था जिसने मनोदय काव्य की रचना की – भरत कवि
मानोदय काव्य की रचना की गई है – संस्कृत भाषा मे
मानोदय काव्य मे किसे सूर्य के सम्मान तेजस्वी और राजा बलि के समान दानवीर बताया गया है – मानशाह को
किसे जहांगीर ने ज्योतिकराय की उपाधि से नवाजा – भरत कवि को
मानपुर नामक नगर की स्थापना की – मानशाह ने

तिब्बत पर सफलता पूर्वक आक्रमण किस पँवार राजा ने किया – मानशाह ने
मानशाह ने दापा से संधि के शर्तों के अनुसार क्या लेना स्वीकार किया – प्रतिवर्ष सवा सेर सोना तथा चार सींग वाला मेढ़ा

किसका नाम प्रसिद्ध ऐतिहासिक ग्रन्थ ‘जहाँगीर नामा’ में भी आया ह ै – श्याम शाह का
मुगल दरबार ने श्रीनगर के किस शासक को घोड़े तथा हाथी उपहार स्वरूप भेंट किए – श्याम शाह को

सन् 1615 ई० का एक ताम्रपत्र उपलब्ध है जिसमें श्री श्याम शाह ने किस ग्राम में भूमि का एक अंश शिवनाथ
जोगी को दान किया है – ‘सिलासारी’ नामक ग्राम को

श्याम शाह की शरण मे आने वाला चंद राजा था – त्रिमल चंद
श्यामशाही बाग बनवाया – श्याम शाह ने
जेसूएट पादरी किसके शासन काल मे श्रीनगर आए – श्याम शाह के
श्रीनगर पहुँचने वाला पहला पादरी था – अंतोनिया दे आंद्रोद
60 रानिया किस पँवार शासक की सती हुई थी – श्याम शाह की

श्यामशाह निःसन्तान थे इसलिए उनके परलोकवास के बाद कौन सिंहासन पर सन् 1622 के बाद आरूढ़ हुए – उसके चाचा श्री महीपत शाह

महीपत शाह ने गढ़वाल की किस उपाधि से प्रसिद्धि पाई – मही पर ‘‘गर्वभंजन’’ की
महीपत शाह ने भूल-वश तीन-चार निरपराध हत्या कर दी – नागा साधुओं की

महीपत शाह के तीन अद्वितीय सेनापतियों का नाम – माधोसिंह भन्डारी, रिखोला लोदी, बनवारीदास ।

‘छोटा चीनी’ का युद्ध हुआ – सन् 1640
मुगल लेखकों द्वारा अक्खड़ राजा कहा गया है – महीपत शाह को
महिपत शाह ने केशोराय मठ की स्थापना की – श्रीनगर मे 1625 मे

महिपत शाह ने अपने राज्य मे कौन सी प्रथा चलाई – रोटी शुचि

1640 ई० के ताम्रपत्र के अनुसार रानी कर्णवती ने किसे भूमिदान किया था – ‘हाट’ निवासी एक हटवाल ब्राह्मण को
रानी कर्णावती ने कौन सा नगर बसाया – करनपुर
रानी कर्णावती किस उपनाम से जाना जाता है – तारबाई और गोलकुंडा की दुर्गवती

सन् 1635 मे रानी कर्णावती के समय गढ़राज्य के शौर्य की पुष्टि मुगल दरबार के किस राजकीय विवरण ने भी किया है – ‘‘महासिरूल उमरा’’
सन् 1635 मे रानी कर्णावती के नेत्रत्व मे हारी अभागी मुगल सेना की कमान का सेनापति था – ‘‘नजाबत खाँ’’
पृथ्वीपति शाह का राज्याभिषेक हुआ – 1640 मे

सन् 1655 ई० में किसके नेतृत्व में दिल्ली की सेनाओं ने गढ़राज्य की सीमाओं को घेर लिया – खलीतुल्ला के ।
मुगलो ने किनकी सहायता से दून की घाटी पर विजय प्राप्त कर ली – सिरमौर के शासक मानधाता प्रकाश एवं कुमाऊँ के शासक बाज बहादुर चन्द की

पृथ्वीपति शाह ने किसे अपनी दूसरी राजधानी बनाया – राजगढ़ी को
राजगढ़ी मे राजा किसे बनाया गया – दिलीप शाह को
देहारादून मे पृथ्वीपुर शहर बसाया – पृथ्वीपति शाह ने
हाटकोटी की संधि किस किस के बीच हुई – पृथ्वीपति शाह और मंधाता प्रकाश के बीच

सन् 1659 में सामूगढ़ के युद्ध में जब दाराशिकोह औरंगजेब से पराजित हआ तो उसके किस पुत्र ने गढ़वाल नरेश के यहाँ शरण ली
– सुलेमान शिकोह ने

‘शिवाजी’ और गुरू ‘गोबिन्दसिंह’ की भाँति ही घोड़े पर बैठा ह ुआ एक चित्र मिलता ह ै – फतेहशाह का

फतेहशाह ने बिलासपुर के किस शासक के पुत्र से अपनी कन्या का विवाह किया – राजा भीमचन्द के पुत्र से

गुरू गोविंद सिंह जी की आत्मकथा – ‘विचित्र नाटक’
‘विचित्र नाटक के अनुसार 16 सितम्बर 1688 मे ‘भैंगणी’ का युद्ध हुआ – गढ़नरेश फतेशाह एवं सिख केसरी गुरू गोविंद सिंह के मध्य

‘‘मैमौयर्सं ऑफ देहरादून’’ पुस्तक के लेखक हैं – जी०आर०सी० विलियम्स
सहारनपुर पर आक्रमण किया तथा इरौरा परगने में ‘फतेहपुर’ नामक नगर बसाया – फतेहशाह ने

सम्राट अकबर तथा सम्राट चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य की भांति किसके दरबार में भी नौ रत्न थे – फतेहशाह के

‘‘फतेहशाह कर्ण ग्रन्थ’’ की रचना की – ‘श्री जटाधर’ या ‘जटाशंकर’ द्वारा

फतेहशाह के दरबारी कवि थे – रतन कवि ।
रत्न कवि का हस्तलिखित ग्रंथ है – फतेशाह
फतेशाह का उत्तराधिकारी था – उपेन्द्रशाह
उपेन्द्रशाह को मोलाराम ने कहा है – प्रीतम शाह
मोलराम से चित्रकारी सीखने जाया करता था – प्रीतम शाह
किसने फतेशाह के शासन काल को गढ़वाल का स्वर्णकाल कहा है – कवि मतिराम
मोलाराम ने किस पँवार शासक का चित्र बनाया था – उपेन्द्रशाह का / प्रीतम शाह का

सन् 1717 ई० में किसने राजा दीपचन्द के जीवित रहते स्वयं को कुमाऊँ नरेश घोषित कर दिया – ‘मोहन सिंह रौतेला’

प्रदीप शाह का शासनकाल था – 1717 ई0 – 1757 तक
प्रदीप शाह की सरंक्षिका थी – कनक देई
प्रदीप शाह का सेनापति था – चन्द्रमनि डंगवाल
गणाई का युद्ध किसके मध्य हुआ – प्रदीपशाह व चंद सेना के विरुद्ध
कल्याणचंद पर रोहेला आक्रमण के समय किसने मदद की – प्रदीप शाह ने
प्रदीप शाह का दरबारी कवि था – मेधाकर शर्मा
मेधाकर शर्मा द्वारा रचित ग्रंथ – रामायण प्रदीप संस्कृत

हर्षदेव जोशी जी ने किसे कूर्मांचल विजय के लिये आमंत्रित किया – गढ़नरेश ललितशाह को
ललितशाह अपनी महती सेनाओं ने किसे कुमाऊँ के युद्ध में पराजित किया – मोहनसिंह या मोहनचन्द
श्री ललितशाह ने पंडित हर्षदेव जोशी की सहायता से अपने किस पुत्र को कुमाऊँ के राजसिंहासन पर आरूढ़ किया – कुँवर प्रद्युम्नशाह को
स्वयं को राजा दीपचन्द का दत्तक पुत्र घोषित किया – प्रद्युम्न शाह ने

राजा ललितशाह के चार पुत्र थे – जयकृतशाह, प्रद्युम्नशाह, पराक्रमशाह तथा प्रीतमशाह ।
ललितशाह और सिखों के बीच सिरमौर का युद्ध हुआ – 1779 ई0
किस पँवार शासक की मृत्यु मलेरिया से हुई – ललितशाह की

बगवाली पोखर का युद्ध हुआ – चंद सेना और पँवार सेना के बीच 1779 मे
सन् 1785 ई० में प्रद्युम्नशाह के प्रतिनिधि के रूप में कुमाऊँ पर शासन करना प्रारम्भ किया – हर्षदेव जोशी ने

मोहन चन्द ने अपने भाई लालसिंह की सहायता से किस युद्ध हर्षदेव जोशी को परास्त किया – 1786 ई० में पाली गाँव युद्ध मे
राखी नामक कर सिखों को देना किसने स्वीकार किया – जयकृत शाह ने

गोरखों ने किसके आमंत्रण पर कुमाऊँ पर अधिकार किया – हर्षदेव जोशी के , 1790 मे
गोरखों ने गढ़वाल पर आक्रमण किया – लंगूर गढ़ मे , 1791 मे

गढ़वाल में भयंकर दुर्भिक्ष पड़ा जो अभी तक इकावनी-बावनी के नाम से जाना जाता ह ै, – 1795 ई० में
गढ़राज्य में भूकम्प का प्रकोप हुआ जिसके फलस्वरूप श्री रतूड़ी के अनुसार केवल 20 प्रतिशत या 25 प्रतिशत लोग जीवित बचे – सन् 1803 ई० में

गोरखों ने किसके नेत्रत्व मे दूसरी बार गढ़वाल पर आक्रमण किया – हस्तीदल चौतरिया और अमर सिंह थापा
14 मई 1804 को कौन खुड्बुड़ा के मैदान मे वीरगति को प्राप्त हो गया – प्रदूम्न शाह

पँवार वंश का पहला शाक्ष्य किस प्राप्त हुआ है – जगतपाल का देवप्रयाग अभिलेख

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