रुड़की का विकास सन 1850 में हुआ, जब यहाँ से उत्तरी भारत में सिंचाई के लिए ब्रिटिश शासकों ने

गंगनहर निर्माण की अति महत्वपूर्ण योजना आरंभ की ।

इस नहर की परिकल्पना तत्कालीन गवर्नर थॉमसन ने की तथा इसका निर्माण कर्नल पी बी काटले के नेत्रत्व मे किया गया ।

सन 1847 में यहाँ एशिया के प्रथम इंजीनियरिंग कॉलेज की स्थापना की गई तथा

1854 मे इस कॉलेज को थॉमसन कॉलेज ऑफ सिविल इंजीनीयरिंग के रूप मे पुनर्निर्मित किया गया ।

सन 1948 मे सयुंक्त प्रांत मे इसे विश्वविधालय का दर्जा दिया गया और

1949 में स्वतंत्र भारत के प्रथम इंजीनियरिंग संस्थान के रूप में उन्नत करते हुये प्रधानमंत्री नेहरू ने चार्टर प्रदान किया ।

जो अब भारतीय प्रौधोगिकी संस्थान के रूप मे प्रतिष्ठित है ।

गंगनहर के निर्माण में इस संस्थान का महत्वपूर्ण योगदान रहा ।

इसी संस्थान के तकनीकी नेत्रत्व में भारत में पहली बार 22 सितम्बर, 1851 में रुड़की से पिरान कलियर के बीच

रेल इंजन दो मालवाहक डिब्बों के साथ रवाना हुआ ।

इन डिब्बों में मिट्टी भरी होती थी जिसे गंगनहर निर्माण के उपयोग में लाया जाता था ।

1847 में स्थापित एशिया के प्रथम इंजीनियरिंग कॉलेज के पश्चात रुड़की में भारत के रक्षा एवं तकनीकी कौशल का प्रमुख कार्यालय

बंगाल इंजीनियर ग्रुप एवं केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान, राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान,

भारतीय सिंचाई अनुसंधान संस्थान जैसे कई महत्वपूर्ण संस्थानो की स्थापना हुई ।

अब इसे नगर निगम का दर्जा दिया गया है ।

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