यह गढ़वाल क्षेत्र का सबसे बड़ा जनजातीय समूह है .
यह जनजाति मुख्यतः लघु हिमालय के उत्तरी पश्चिमी भाग का भाबर क्षेत्र है .
इस क्षेत्र के अन्त्रर्गत कालसी, चकराता, त्यूनी, लाखामंडल आता है .
यह जनजाति मंगोल तथा डोमो प्रजाति के मिश्रित लक्षण वाले होते हैं .
इस जनजाति को हरिजन , खसास, कारीगर तीन वर्गों में विभाजित किया गया है .
खसास वर्ग में ब्राह्मण व राजपूत तथा कारीगर वर्ग में लोहार , सोनार, बगजी , हरिजन खसास में डोम, कोल्टा, मोची आदि जनजाति आती हैं .
जौनसारी लोग अपना आवास लकड़ी और पत्थर का बनाते हैं . मुख्या द्वार में विभिन्न प्रकार की सजावट की जाती है .
जौनसारी समाज में पितृसतात्मक संयुक्त परिवार की सामाजिक व्यवस्था पाई जाती है .
इनमे बेवीकी, बोई दोदिकी , बाजदिया आदि प्रकार के विवाह प्रचलित हैं .
सामाजिक सरंचना
इन तीन प्रकार के विवाहों में बाजदिया सबसे शान शौकात प्रकार का विवाह है .
जिसमे कन्या पक्ष से वर के घर गाजे बाजे के साथ बारात जाती है .
बेवाकि सबसे साधारण प्रकार का विवाह है .
पितृ गृह में लड़की ध्यान्ति को घर एवं कृषि कार्य का प्रशिक्षण दिया जाता है .
विवाहोपरांत लड़की रयान्ति का निवास अपने पति के घर होता है .
इनके रिश्ते संबंधो को कन्या पक्ष को उच्च माना जाता है .
समाज में महिलाओं को सामानीय स्थिति प्राप्त है .
सम्पूर्ण जौनसारी हिन्दू धर्म को मानते हैं .
ये महासू (बासक, पिबासक, भूतिया या बौठा, चलता या चलदा व देव्लाड़ी) पांडव व भारदाज आदि
देव देवताओं को अपना कुल देवता एवं सरंक्षक मानते हैं .
महासू देवता इनके सर्वमान्य देवता हैं .
देहरादून में रहने वाले जौनसारी अपने आप को पांडवों का वंशज बताते हैं .
ये लोग लकड़ी और पत्थरों के मंदिर बनाते हैं .
हनोल इनका प्रमुख देवालय है .
इसके अलावा लाखामंडल , कालसी, थैना में भी इनके मंदिर हैं .
इनके सांस्कृतिक त्यौहार बिसू (बैशाखी), पंचाई (दशहरा), दियाई (दीपावली), माघ त्यौहार,
नुणाई, जागड़ा, अठोई (जन्माष्टमी) आदि इनके त्यौहार , उत्सव व मेले हैं .
इनके प्रमुख नृत्य हारुल, रासों, घुमसू, झेला, छोड़ो, धीई , घुण्डचा, सामूहिक मंडवाना, रास रासौ,
तांदी मरोज , पत्तेबाजी आदि इनके नृत्य हैं .
आर्थिक गतिविधियां
कृषि एवं पशुपालन इनके प्रमुख व्यवसाय हैं.
खसास (ब्राह्मण एवं राजपूत) जौनसारी काफी संपन्न होते हैं . ये कृषि भूमि के मालिक होते हैं .
कारीगर वर्ग के जौनसारी मजदूरी और कारीगरी से अपना जीवन चलाते हैं .
ये प्रायः आत्मनिर्भर होते हैं .
तीसरा वर्ग (हरिजन खसास वर्ग) : आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से पहले काफी पिछड़ा हुआ था .
परन्तु सरकारी प्रयासों से इनके जीवन में काफी परिवर्तन हो रहा है .
राजनितिक संस्था
जौनसारी समाज पहले प्रत्येक गाँव में गाँव पंचायत की जगह खुमरी नामक संस्था होती थी .
गाँव का प्रत्येक परिवार का सदस्य खुमरी का सदस्य होता था .
खुमरी के मुखिया को ग्राम सयाणा कहा जाता था .
व्यक्तिगत मामलो का निपटारा खुमरी द्वारा किया जाता था .
जौनसारी समाज के प्रसिद्द व्यक्ति
वीर केसरीचंद – इनका जन्म चकराता के पास क्यावा गाँव में हुआ था . ये सेना में थे लेकिन बाद में बोस के
आजाद हिन्द फ़ौज में शामिल हो गए थे . अतः इन पर मुकदमा चलाया गया और 3 मई 1945 को फांसी की सजा दी गई .
इनके बलिदान दिवस पर चौलिताथ में 3 मई को मेला लगता है .
केदार सिंह – बिशोई ग्राम के निवासी जौनसार के प्रथम समाज सेवी हैं . इन्हें जौनसार भावर में जन जाग्रति का अग्रदूत माना जाता है .
पंडित शिवराम – कविता के क्षेत्र में प्रतिष्टा रखने वाले आशुकवि पंडित शिवराम जौनसार के प्रथम कवि हैं .
इनके प्रसिद्द रचना वीर केसरी जौनसार भावर में प्रसिद्द है .
भाव सिंह चौहान – ये फादर ऑफ़ जौनसार से समानित होंने वाले प्रथम जौनसारी हैं .
गुलाब सिंह – इन्हें जौनसार में राजनितिक जागरूकता का जनक माना जाता है .
रतन सिंह जौनसारी – जौनसार के आधुनिक कवि
देविका चौहान – महिला उत्थान के कार्य किये .
कृपाराम जोशी – समाज सेवा के विकास के लिए संगठन की स्काथापना की है .
नदलाल भारती – जौनसार के संगीत जनक जौनसार रत्न से सम्मानित हैं . जौनसारी संगीत एवं संस्कृति के विकास में बहुत बड़ा योगदान है .
