दोस्तों सुंदरलाल बहुगुणा जी के जीवन के बारे मे जानकर आप उनसे प्रेरणा तो ले ही सकते हैं अपितु उनके द्वारा किए गए आंदोलन, उनके योगदान और उनसे जुड़ी मुख्य बातो को जानकर आप अपनी परीक्षाओं मे भी उनसे जुड़े प्रश्नो को हल कर सकते हैं । क्योंकि उत्तराखंड के व्यक्तित्व के अंतर्गत सुंदर लाल बहुगुणा जी का जीवन परिचय एक महत्वपूर्ण Topic है ।दोस्तो जैसे कि आपको पता ही है पूरे देश मे कोरोना वायरस की दूसरी लहर लगातार अपना कहर दिखा रही है । एक के बाद एक कई बुरी खबरें सामने आ रही हैं । उन्ही बुरी खबरों मे एक यह भी है कि शुक्रवार, 21 मई को हमारे मशहूर पर्यावरणविद, पदमविभूषण सुंदरलाल बहुगुणा का कोरोना के कारण निधन हो गया ।वह कोरोना पॉजिटिव थे और उनका और उनका इलाज ऋषिकेश एम्स में किया जा रहा था । उन्हे 8 मई को ही कोरोना संक्रमित होने के बाद एम्स में भर्ती कराया गया था । जहां शुक्रवार को उन्होंने 94 वर्ष की उम्र मे अंतिम सांस ली ।

सुंदर लाल बहुगुणा जी का जन्म 

दोस्तों, चिपको आन्दोलन के प्रणेता सुन्दरलाल बहुगुणा जी का जन्म 9 जनवरी सन 1927 को टिहरी रियासत के ‘मरोडा’ नामक गाँव मे , वन अधिकारी अम्बादत्त बहुगुणा के घर हुआ था ।

उनके पिता का नाम अम्बादत्त बहुगुणा और माता का नाम पूर्णादेवी था ।

सुंदर लाल बहुगुणा जी का बचपन 

उनके माता-पिता माँ गंगा के भक्त थे सो उन्होंने अपने सबसे छोटे बेटे का नाम रखा गंगा राम । इसलिए सुंदरलाल बहुगुणा जी के बचपन का नाम गंगा राम था ।

बचपन से ही सुन्दरलाल बहुगुणा को पढ़ने लिखने का खूब शौक था । जब वह पंद्रह वर्ष के थे , उनकी माता पूर्णादेवी गंगा की धारा में बह गयी और उनसे दूर चली गई ।

बचपन से ही क्रांतिकारी 

सुंदर लाल बहुगुणा जी बचपन से ही क्रांतिकारी रहे, टिहरी रियासत की स्वतन्त्रता के लिए अपनी छोटी सी उम्र मे उन्हे जो ज़िम्मेदारी सौंपी गई उन्होने पूरी की ।

जब टिहरी रियासत में श्रीदेव सुमन को गिरफ्तार किया गया तब टिहरी जेल से श्रीदेव सुमन का एक वक्तव्य राष्ट्रीय दैनिक हिन्दुस्तान और वीर अर्जुन में छपा ।  टिहरी की जेल से दिल्ली तक यह वक्तव्य पहुचाने में मुख्य भूमिका सुन्दरलाल बहुगुणा की भी थी ।  उन्हें इसके लिये जेल भी हुई ।  प्रधानाध्यापक के कहने पर पुलिस की निगरानी में ही उन्होंने उस वर्ष परीक्षा दी और माध्यमिक शिक्षा पूर्ण करने के बाद  उन्हें नरेन्द्रनगर जेल भेज दिया गया जहाँ उन्हें कठोर यातनाएं दी गयी  । इसके बाद वे यहाँ से गुप-चुप तरीके से वह लाहौर भाग गये.

आगे की पढ़ाई 

लाहौर में सुन्दरलाल बहुगुणा ने सनातन धर्म कॉलेज से बी.ए. की पढ़ाई की ।

राजनीतिक जीवन

लाहौर में टिहरी गढ़वाल के रहने वाले लोगों ने ‘प्रजामंडल’ की एक शाखा बनाई थी जिसमें सुन्दरलाल बहुगुणा ने सक्रिय रूप से भागीदारी की ।

इस बीच टिहरी से भागे सुन्दरलाल बहुगुणा के लाहौर होने की खबर पुलिस तक पहुँच गयी और लाहौर में खोज शुरू हुई. इससे बचने के लिये सुंदरलाल बहुगुणा ने अपना पूरा हुलिया बदल लिया और लाहौर से दो सौ किमी की दूरी पर स्थित एक गाँव लायपुर में सरदार मान सिंह के नाम से रहने लगे ।

सुन्दरलाल बहुगुणा ने बहुत से वर्षों तक कांग्रेस मे सक्रिय कार्यकर्ता के रूप में कार्य भी किया ।

वैवाहिक जीवन 

23 साल की उम्र में उनकी शादी विमला देवी से हुई । बाद में अपनी पत्नी श्रीमती विमला नौटियाल की सलाह पर उन्होंने राजनीतिक जीवन पूरी तरह छोड़ दिया और पूरी तरह से अपना जीवन समाज सेवा में समर्पित कर दिया ।

सामाजिक आंदोलन 

अपने शुरूआती वर्षों में उन्होंने दलितों को मंदिर प्रवेश का अधिकार दिलाने के लिए आन्दोलन छेड़ा, शराब की दुकानों को खोलने से रोकने के लिए सुन्दरलाल बहुगुणा ने सोलह दिन तक अनशन किया ।

सुन्दरलाल बहुगुणा मीराबेन को अपना गुरु मानते हैं ।  1949 में उन्होंने दलित वर्ग के विद्यार्थियों के उत्थान के लिए टिहरी में ‘ठक्कर बाप्पा होस्टल’ की स्थापना की

उनकी पत्नी सरला बहन की सबसे प्रिय शिष्या थी और वह स्वयं मीराबेन के शिष्य थे ।  दोनों ने मिलकर बालगंगा नदी के किनारे सिल्यारा गांव में अपने लिये झोपड़ी बनाई और वहीँ बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया ।  सुन्दरलाल बहुगुणा लड़कों को पढ़ाते और विमला नौटियाल लड़कियों को पढ़ाती दोनों के प्रयास से यहीं ‘नवजीवन मंडल’ की नीव पड़ी.

बाद में सरला बहन की सलाह पर ही यह नवजीवन मंडल ‘नवजीवन आश्रम’ में बदला ।  जो स्थानीय लोगों को आत्मनिर्भर बनाता ।

भूदान आन्दोलन

स्वतंत्रता के बाद सुंदलाल बहुगुणा जी विनोवा भावे द्वारा 1951 मे शुरू किया गया भूदान आंदोलन मे सम्मिलित हुये  ।

चिपको आंदोलन

इसके बाद उन्हे उस आंदोलन मे कूदना पड़ा जिसके बाद उन्हे पूरी दुनिया मे जाना गया, जी हाँ हम बात कर रहे हैं चिपको आंदोलन की  ।  । इस आन्दोलन की शुरुवात 1973 में  सुन्दरलाल बहुगुणा, कामरेड गोविन्द सिंह रावत, चण्डीप्रसाद भट्ट तथा श्रीमती गौरादेवी के नेत्रत्व मे हुई थी।  चिपको आंदोलन वनों का अव्यावहारिक कटान रोकने और वनों पर आश्रित लोगों के वनाधिकारों की रक्षा का आंदोलन था रेणी में 24 सौ से अधिक पेड़ों को काटा जाना था, इसलिए इस पर वन विभाग और ठेकेदार जान लडाने को तैयार बैठे थे जिसे गौरा देवी जी के नेतृत्व में रेणी गांव की 27 महिलाओं ने प्राणों की बाजी लगाकर असफल कर दिया था।

इसके बाद सुन्दरलाल बहुगुणा ने पर्यावरण को लेकर उत्तराखण्ड में चल रहे चिपको आन्दोलन को वैश्विक स्तर पर पहुंचाया. ‘चिपको आन्दोलन’ के कारण वे विश्वभर में ‘वृक्षमित्र’ के नाम से प्रसिद्ध हो गए ।

बहुगुणा के ‘चिपको आन्दोलन’ का घोषवाक्य है ‘क्या हैं जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी और बयार. मिट्टी, पानी और बयार, जिंदा रहने के आधार’.

सुंदरलाल बहुगुणा ने 1981 से 1983 के बीच पर्यावरण को बचाने का संदेश लेकर, चंबा के लंगेरा गांव से हिमालयी क्षेत्र में करीब 5000 किलोमीटर की पदयात्रा की. यह यात्रा 1983 में विश्वस्तर पर सुर्खियों में रही ।  उन्होंने कई गाँवों के दौरे किए और गांव वालो को पर्यावरण सुरक्षा का महत्व समझाया । उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से भी मुलाकात की और पेड़ों के काटने पर रोक लगाने का अनुरोध किया ।

टिहरी बांध आंदोलन 

पर्यावरण को बचाने के लिए ही 1990 में सुंदर लाल बहुगुणा ने टिहरी बांध का विरोध किया था ।   उनका मानना था कि 100 मेगावाट से अधिक क्षमता का बांध नहीं बनना चाहिए । उन्होंने बांध के लिए डेढ़ महीने तक भूख हड़ताल की थी । उस समय प्रधानमंत्री पी.वी.नरसिम्हा राव थे । सालों के आंदोलन के बाद आखिरकार बांध बनाने का काम शुरू किया गया ।

सुंदरलाल का मानना था कि अगर बांध बना तो टिहरी के जंगल बर्बाद हो जाएंगे। बांध एक बार को भूकंप को सह सकता है लेकिन पहाड़ियां नहीं सह पाएंगी। पहाड़ियों में पहले से ही दरार पड़ी हुई है । अगर ये बांध टूट गया तो पूरा बुंदेलशहर तक का इलाका डुब जाएगा ।  इस तरह सुंदरलाल बहुगुणा ने अपना पूरा जीवन पर्यावरण सुरक्षा में लगा दिया ।

Award

बहुगुणा के कार्यों से प्रभावित होकर अमेरिका की फ्रेंड ऑफ नेचर नामक संस्था ने 1980 में इनको पुरस्कृत किया ।

अंतरराष्ट्रीय मान्यता के रूप में 1981 में स्टाकहोम का वैकल्पिक नोबेल पुरस्कार मिला ।

सुन्दरलाल बहुगुणा को सन 1981 में पद्मश्री पुरस्कार दिया गया ।  सुन्दरलाल बहुगुणा ने यह कह कर इस पुरुस्कार को स्वीकार नहीं किया कि “जब तक पेड़ों की कटाई जारी है, मैं अपने को इस सम्मान के योग्य नहीं समझता हूँ ।

पर्यावरण संरक्षण के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित करने वाले सुन्दरलाल बहुगुणा को 2009 मे पद्मविभूषण से  गया 

उन्हे और भी बहुत सी संस्थाओं ने पुरुसकृत किया है जैसे :-

सिंघवी ट्रस्ट द्वारा – राष्ट्रीय एकता पुरुसकार, 1984

बंबई की वृक्ष मित्र संस्था ने – वृक्ष मानव पुरुसकार, 1985

इन्हे जमनालाल बजाज पुरुसकार

तथा रुड़की वि वि द्वारा – डॉ ऑफ सोशियल साइसेज का मानद उपाधि भी प्रदान किया गया ।

पर्यावरण को स्थाई सम्पति मानने वाला इन्हे  ‘पर्यावरण गांधी’ नाम से जाना जाने लगा ।

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