चंद राजाओं ने छत्तीस रकम व बत्तीस कलम वाले अनेक कर लगाये। जिसका उन्मूलन गोरखों ने किया और नए कर लगाये। गोरखों ने ब्राह्मणों पर कुसही नाम का कर लगाया। गोरखा शासन काल में निम्न कर थे।
1. पुंगाड़ी कर – यह एक प्रकार का भूमि कर था। इससे लगभग डेढ़ लाख रूपया सालाना की आय होती थी। सैनिकों का वेतन इस कर से दिया जाता था।
2. सलामी कर – यह अफसरों को दिया जाने वाला कर। यह एक प्रकार का नजराना होता था।
3. टीका भेंट कर – शुभ अवसरों व शादी विवाहों के समय इसे लिया जाता था।
4. पगरी (पगड़ी) कर – यह संभवत: जमीन व जायदाद के हस्तांरण में जमीन प्राप्त करने वाले व्यक्ति को एकमुश्त
दना पड़ता था।
5. मांगा कर – यह प्रत्येक नौजवान से एक रूपया कर के रूप में लिया जाता था। यह युद्ध के समय भी तात्कालिक कर के रूप में इसे वसूला जाता था।
6. सोन्या फागुन कर – उत्सवों का खर्च में लिया जाता था। इसमें भैंसे व बकरे लिए जाते थे।
7. टान कर – इसे तान (कपड़ा) कर भी कहा जाता था। इसे हिन्दु व भोटिया बुनकरों से लिया जाता था।
8. मिझारी कर – शिल्पकर्मियों व जगरिया ब्राह्मणों से चर्म से वस्तुओं पर लिया जाता था।
9. मरो कर – यह कर पुत्रहीन व्यक्ति से लिया जाता था।
10. रहता कर – ग्राम छोड़कर भागे लोगों पर यह कर लगता था।
11. बहता कर – यह छिपाई गई संपत्ति पर लिया जाने वाला कर था।
12. घीकर कर- यह कर दुधारू पशुओं के मालिकों से लिया जाता था।
13. मौंकर कर- यह प्रति परिवार दो रूपया लिया जाता था।
14. जान्या सुन्या कर- यह राजकर्मचारियों से लगान के बाबत पूछने पर कर पड़ता था।
15. मेजबानी दस्तूर कर- यह प्रजा की सुरक्षा की खातिर लिया जाता था।
16. अथनी दफतरी कर- यह राजस्व का काम करने व कर्मचारियों के लिये खश जमींदारों से लिया जाता था।
17. दोनिया कर – यह कर भाबर व पहाड़ी पशुचारकों से वसूला जाता था।
गोरखों का प्रिय त्यौहार दशाई (दशहरा) है। गोरखों की सनदों में दुर्गा पूजा का उल्लेख मिलता है। चंपावत के बालेश्वर मन्दिर का जीर्णोद्धार सूबेदार महावीर थापा ने 1796 में किया। देहरादून में गुरू रामराय के महंत हरिसेवक को सदावर्त के लिए नियुक्त किया था। गोरखों की राजभाषा गोरख्याली थी।