तारकेश्वर महादेव मंदिर

यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है।

‘गढ़वाल राइफल’ के मुख्यालय लांसडाउन से यह मंदिर 36 किलोमीटर दूर है।

देवदार और पाइन के घने जंगलों से घिरा यह स्थान उन लोगों के लिए आदर्श स्थान है, जो प्रकृति में सौंदर्य की तलाश करते हैं।

शिवरात्रि के दौरान यहाँ पैर एक विशेष पूजा की जाती है।

मंदिर समिति आवास के लिए एक धर्मशाला की सुविधा प्रदान करता है

श्री कोटेश्वर महादेव मंदिर

1428 मीटर की ऊंचाई पर स्थित यह मंदिर में बैऔलाद जोड़ों के बीच बहुत प्रसिद्ध है ।

मंदिर में एक शिवलिंग है जो पूर्व में हिमालय पर्वतमाला, पश्चिम में हरिद्वार और दक्षिण में सिद्ध पीठ मेदानपुरी देवी मंदिर से घिरा हुआ है।

किंवदंती यह है कि खुदाई करते समय एक गांव की महिला ने शिव लिंग पर अनजाने ने चोट कर दी थी

तब एक दिव्य आवाज सुनाई पड़ी और लोगों को शिव को समर्पित मंदिर बनाने का निर्देश प्राप्त हुआ ।

तदनुसार, कोटेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण किया गया ।

माँ धारी देवी मंदिर

देवी काली को समर्पित मंदिर यह मंदिर इस क्षेत्र में बहुत पूजनीये है।

लोगों का मानना है कि यहाँ धारी माता की मूर्ति एक दिन में तीन बार अपना रूप बदलती हैं

पहले एक लड़की फिर महिला और अंत में बूढ़ी महिला ।

एक पौराणिक कथन के अनुसार कि एक बार भीषण बाढ़ से एक मंदिर बह गया

और धारी देवी की मूर्ति धारो गांव के पास एक चट्टान के रुक गई थी।

गांव वालों ने मूर्ति से विलाप की आवाज सुनाई सुनी और पवित्र आवाज़ ने उन्हें मूर्ति स्थापित करने का निर्देश दिया।

नीलकंठ महादेव मंदिर

ऋषिकेश से 32 कि.मी. बैराज के माध्यम से और 22 किलोमीटर राम झूला के माध्यम से दूर स्थित यह जगह धार्मिक उत्साह, पौराणिक महत्व और खूबसूरत परिवेश मिला जुला संगम है।

एक पौराणिक कथा के अनुसार, इस जगह का नाम भगवान शिव से लिया गया है।

यह माना जाता है कि यहां भगवान शिव ने जहर का सेवन किया था, जो ‘समुद्र मंथन’ के दौरान उत्पन्न हुआ था।

इस वजह से भगवन शिव का गला रंग में नीला हो गया था, इसलिए भगवन शिव को नीलकंठ नाम दिया गया था।

माँ ज्वाल्पा देवी मंदिर

देवी दुर्गा को समर्पित इस क्षेत्र का प्रसिद्ध शक्तिपीठ माँ ज्वाल्पा देवी का मंदिर पौड़ी-कोटद्वार मोटर सड़क पर पौड़ी से लगभग 33 किमी दूरी पर स्थित है।

लोग दूर दूर से अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए नवरात्रों के दौरान एक विशेष पूजा के लिए आते हैं।

पर्यटक विश्रामगृह और धर्मशाला यहां उपलब्ध हैं।मंदिर नदी नायर नदी के उत्तरी किनारे पर स्थित है

तथा पास का स्टेशन सतपुली लगभग 17 किमी है।

नागदेव मंदिर

यह मंदिर पौड़ी-बुबाखाल रोड पाइन और रोडोडेंड्रन के घने जंगल के बीच में स्थित है।

मंदिर के रास्ते में एक वेधशाला स्थापित की गयी है जहां से चौखंबा, गंगोत्री समूह, बन्दर पूँछ , केदरडोम, केदारनाथ आदि जैसे शानदार हिमालय पर्वतमाला के विशाल और रोमांचकारी दृश्य देखे जा सकते हैं।

मंदिर बस स्टेशन से 5 किमी दूर स्थित है तथा यहाँ पर 1 और 1/2 किलोमीटर ट्रेक द्वारा भी पहुंचा जा सकता है।

क्यूंकालेश्वर मंदिर

आठवीं शताब्दी इस शिव मंदिर की स्थापना शंकराचार्य द्वारा पौड़ी की यात्रा के दौरान हिंदू धर्म के पुनरुत्थान के रूप में की गयी थी ।

मंदिर पौड़ी और आसपास के इलाकों में बहुत प्रसिद्ध है, लोगों का मंदिर के मुख्य देवताओं- भगवान शिव, पार्वती, गणेश, कार्तिकेय में बहुत अधिक आस्था और विश्वास है।

मुख्य मंदिर के एकदम पीछे अन्य देवताओं भगवान राम, लक्ष्मण और देवी सीता के मदिर हैं।

यहां से हिमालय पर्वतमाला के साथ-साथ अलकनंदा घाटी और पौड़ी शहर का एक मंत्रमुग्ध दृश्य दिखता है।

कंडोलिया मंदिर

एक और शिव मंदिर (कंडोलिया देवता) कंडोलिया पहाड़ियों पर ओक और पाइन के घने जंगल में स्थित है।

इस मंदिर के निकट एक खूबसूरत पार्क, खेल परिसर और कुछ मीटर आगे एशिया की सबसे ऊंची स्टेडियम रान्शी है ।

गर्मियों के दौरान कंडोलिया पार्क में स्थानीय लोगों को उत्साह से हँसते और खेलते देख सकते हैं।

पार्क के एक ओर से पौड़ी शहर का एक सुंदर दृश्य और उसके दूसरी तरफ गंगावार्सुई घाटी का एक सुंदर दृश्य दिखाई पड़ता है।

मंदिर बस स्टेशन से १ किमी पैदल और मोटर मार्ग द्वारा २ किमी की दूरी पैर स्थित है।

कालिंका मंदिर

कालिंका मंदिर का पहाड़ी मंदिर उत्तर भारत में उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले के बिरोंखाल ब्लॉक में स्थित है।

मंदिर परिसर अल्मोड़ा जिले की सीमा के करीब स्थित है और देवी काली को समर्पित है।

मंदिर सदियों से अस्तित्व में है लेकिन पिछले एक दशक में नई संरचना का नवीनीकरण किया गया है।

यह अक्सर बंचल कलिंका के साथ भ्रमित होता है, जो थालिसैन में राठ क्षेत्र के मालुंड गांव के पास है।

कोटमहादेव मंदिर (Kotmahadev Temple)

किसी नाम के आगे ईश्वर लगाकर उसको किसी देवी-देवता की उपाधि से विभूषित कर देना हिन्दू संस्कृति की पुरानी परंपरा है।

रामायण काल के मूक साक्षी सितोन्स्यूं क्षेत्र में जहां मनसार का मेला लगता है, से एक फर्लांग की दूरी पर तीन नदियों के संगम पर स्थित हैं।

कोटमहादेव जिसे आज भी बाल्मीकेश्वर के नाम से जाना जाता है।

सोम का मांडा

श्रीनगर से लगभग 25 किमी दूर एतिहासिक स्थल देवलगढ़ के ‘सोम का मांडा’ स्थित है ।

सोम का मांडा स्मारक को गढ़वाल के पूर्व नरेशों का न्यायालय का कहा जाता है।

इस पर लगे बड़े-बड़े शिलालेखों पर ऐसी लिपि अंकित है, जिसे आज तक पढ़ा नहीं जा सका।

कंश मर्दनी मंदिर (Kansha Mardani Temple)

यह मंदिर श्रीनगर मे अलकनंदा नदी के किनारे स्थित है ।

मान्यता है की कंस का वध करने के लिए भगवान विष्णु ने जब कृष्ण अवतार लेना चाहा तब कंस ने मृत्यु के भय से नारायण के अवतार स्वरुप कृष्ण का वध जन्म के तुरंत बाद करना चाहा

और उसने जब शिशु को जोर से जब धरती पर पटका तब वहाँ देवी प्रकट हुई

और हँसते हुए कंस से कहने लगी ऐ ! मुर्ख तू मेरा क्या अंत करेगा तेरा अंत तो वृदावन पहुँच चूका है , इतना कह कर देवी अंतर्ध्यान हो गयी ।

केशोराय मठ मंदिर (Keshorai Math Temple)

कहा जाता है कि संवत्‌ 1672 में इस मन्दिर का निर्माण महीपतिशाह के शासनकाल में केशोराय ने कराया था,

इन्ही के नाम पर यह “केशोराय मठ” कहलाया।

अलकनन्दा तट पर खड़े इस मन्दिर का अनूठा ही इतिहास रहा है ।

१८९४ ईसवी में बिरही की बाढ़ में श्रीनगर शहर के डूब जाने के साथ-साथ यह मन्दिर भी पूरी तरह से रेत में दब गया था।

राजराजेश्वरी देवी मंदिर (Rajarajeshwari Devi Temple)

अपने १९ वर्षों के शासनकाल में राजा अजयपाल ने देवभूमि के ४८ गढ़ों को जीतकर अपने राज्य का विस्तार किया था।

राज राजेश्वरी गढ़वाल के राजवंश की कुलदेवी थी ।

राज राजेश्वरी मन्दिर देवलगढ़ का सबसे अधिक प्रसिद्ध ऐतिहासिक मन्दिर है।

इसका निर्माण १४वीं शताब्दी के राजा अजयपाल द्वारा ही करवाया गया था ।

गढ़वाली शैली में बने इस मन्दिर में तीन मंजिलें हैं ।

तीसरी मंजिल के दाहिने कक्ष में वास्तविक मंदिर है। यहां देवी की विभिन्न मुद्राओं में प्रतिमायें हैं।

इनमें राज-राजेश्वरी कि स्वर्ण प्रतिमा सबसे सुन्दर है।

भैरव गढ़ी मंदिर (Bhairav ​​Garhi Temple)

ये मंदिर देवभूमि उत्तराखंड में स्थित है।

भैरवगढ़ी लैंसडाउन से लगभग 17 किमी की दूरी पर कीर्तिखाल की पहाड़ी पर मौजूद है।

यहां कालनाथ भैरव की पूजा नियमित रूप से की जाती है

थापा नामक एक गोरखे ने लंगूरगढ़ में भैरव की महिमा को देखते हुये वहां ताम्रपत्र चढ़ाया था

इस ताम्रपत्र का वजन एक मन (४० किलो) का बताया जाता है ।

कालेश्वर मंदिर (Kaleshwar Temple)

उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले में लैंसडाउन एक छावनी शहर तथा  सुंदर,  सुदूर पहाड़ी स्टेशन है

जिसमें बहुत सारे हरियाली और लंबे पेड़ हैं ।

भारत लॉर्ड  लैंसडाउन के वाइसराय के बाद स्थापित  किया गया ।

(14 जनवरी 1845 – 3 जून 1927), पहाड़ी स्टेशन में शहर और आसपास के क्षेत्रों के भीतर कई पर्यटक स्थल हैं ।

इस क्षेत्र में कई  शिव मंदिर स्थापित  हैं ।

सिद्ध बलि मंदिर (Siddha Bali Temple)

गढ़वाल के प्रवेशद्वार कोटद्वार कस्बे से कोटद्वार-पौड़ी राजमार्ग पर

लगभग 3 कि०मी० आगे खोह नदी के किनारे बांयी तरफ़ एक लगभग 40 मीटर ऊंचे टीले पर स्थित है

गढ़वाल प्रसिद्ध देवस्थल सिद्धबली मन्दिर। यह एक पौराणिक मन्दिर है ।

कहा जाता है कि यहां तप साधना करने के बाद एक सिद्ध बाबा को हनुमान की सिद्धि प्राप्त हुई थी

कमलेश्वर मंदिर (Kamleshwar Temple)

मलेश्वर मंदिर पौड़ी Kamleswar mandir Pauri जिले के श्रीनगर शहर में बसा हुआ मंदिर है

कमलेश्वर मंदिर श्रीनगर गढ़वाल का सर्वाधिक पूजा जाने वाला मंदिर है मंदिर के लिए सड़क से एक छोटी रोड जाती है

जो मंदिर के गेट पर जाकर खत्म होती है मंदिर प्राचीन सुंदर सौन्दर्य से परिपूर्ण है यहाँ शिवरात्रि , मेले के दौरान और सोमवार को भक्तो की भीड़ लगी होती है

मंदिर से जुड़ी अनेक कथाएं है तथा कहा जाता है कि मंदिर का निर्माण आदि गुरु शंकराचार्य ( Shankaracharya ) ने करवाया था

तथा बाद में मंदिर परिसर की देखभाल राजवँश द्वारा की गई।

इनके अलावा भी पौड़ी जिल मे स्थित मंदिर हैं –

कैलाश निकेतन (Kailash Niketan)

स्वर्गाश्रम मंदिर (Swargashram Temple)

दुर्गादेवी मंदिर (Durgadevi Temple)

शंकरमठ (Shankaramath)

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