जौनसारी
जौनसारी राज्य का दूसरा बड़ा जनजातीय समुदाय है । लेकिन गढ़वाल क्षेत्र का सबसे बड़ा जनजातीय समुदाय है । प्रजातीय दृष्टि से ये इंडो आर्यन परिवार के हैं , जो कि अपनी विशिष्ट वेषभूषा, परम्पराओं, सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्यों व अर्थव्यवस्थाओं के लिए जाने जाते हैं । इनका मुख्य निवास स्थल लघु-हिमालय के उतरी-पश्चिमी भाग का भावर क्षेत्र है । इस क्षेत्र के अंतर्गत देहारादून का चकराता, कालसी, त्यूनी, लाखामंडल आदि क्षेत्र, टिहरी का जौनपुर क्षेत्र तथा उत्तरकाशी का परग नेकाना क्षेत्र आता है ।
इनकी जाती मंगोल और डोमो प्रजातियों के मिश्रित लक्षण वाले होते हैं ।
जौनसारी लोग अपना घर लकड़ी का बनाते हैं जो तीन चार मंज़िला होता है ।
इस क्षेत्र मे कुछ विशेष प्रकार के मेले (मौण) भी लगते हैं जैसे – मछमौण व जतरीयाड़ों मौण ।
यहाँ मनाए जाने वाला बिस्सू मेला इस जौनसार बावर क्षेत्र का सबसे बड़ा मेला माना जाता है ।
थारु
उधमसिंहनगर जिले मे मुख्य रूप से खटीमा, किच्छा, नानकमता और सितारगंज के 141 गावों मे निवास करने वाला थारु समुदाय जनसंख्या कि दृष्टि से उत्तराखंड व कुमायूं का सबसे बड़ा जंजातीय समुदाय है ।
समान्यतः थारुओं को किरात वंश का माना जाता है । जो कई जातियों एवं उपजातियों मे विभाजित है ।
ये लोग अपने घरों को बनाने के लिए लकड़ी , पत्तों और नरकूल का प्रयोग करते हैं । दीवारों पर चित्रकारी होती है । इनका मुख्य भोजन चावल और मछ्ली है ।
बजहर नमक त्योहार ज्येष्ठ या बैसाख मे मनाया जाता है । दीपावली को ये शोक पर्व के रूप मे मनाते हैं ।
भोटिया
किरात वंशीय भोटिया एक अर्धघुमंतू जंजातीय है । ये अपने को खस राजपूत कहते हैं , कश्मीर मे इन्हे भोटा और हिमाचल प्रदेश के किनौर मे इन्हे भोट नाम से जाना जाता है जबकी राज्य के पिथौरागढ़ जिले के तिब्बत ब नेपाल से सटे सीमावर्ती क्षेत्र (भोट प्रदेश) मे इन्हे भोटिया कहा जाता है ।
ये हिमालय के तिब्बती बर्मी भाषा परिवार से संबन्धित 6 बोलिया (भोटिया, शौका आदि ) बोलते हैं ।
भोटिया शीतकाल के अलावा वर्ष भर 2,134 से 3,648 मीटर की ऊंचाई वाले स्थानो, जहां चरागाह की सुविधा हो पर अपना आवास (मैत) बनाकर रहते हैं
इनका आर्थिक जीवन कृषि, पशुपालन, व्यापार व ऊनी दस्तकारी पर आधारित है । ये पर्वतीय ढालों पर ग्रीष्मकाल मे सीढ़ीनुमा खेती करते हैं ।
बोक्सा
बोक्सा उत्तराखंड के तराई-भाबर क्षेत्र मे स्थित उधमसिंह नगर मे बाजपुर, गदरपुर एवं काशीपुर, नैनीताल के रामनगर, पौड़ी गढ़वाल के दुगड्डा तथा देहारादून के विकास नगर, डोईवाला , एवं सहसपुर विकासखंडों के लगभग 173 ग्रामो मे निवास करते हैं ।
काशीपुर की चौमुंडा देवी इस क्षेत्र के बोक्सा जनजतियों की सबसे बड़ी देवी मानी जाती है ।
इनमे जादू-टोने, टोटके, भूत-प्रेत व तंत्र-मंत्र देखने को मिलता है ।
पहले इनका आर्थिक जीवन जगली लकड़ी, शहद, फल-फूल-कंद, जंगली जानवर के शिकार व मछ्ली पर आधारित था, लेकिन अब कृषि, पशुपालन एवं दस्तकारी इनके आर्थिक जीवन का मुख्य आधार है ।
कहीं कहीं पर इनमे बिरादरी पंचायत होती है , जो कि न्याय एव कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए उत्तरदायी है । इस पंचायत के नीचे एक मुंसिफ़ , एक दारोगा , दो सिपाही होते हैं ।
राजी
राजी मुख्यतः पिथौरागढ़ जनपद के धारचूला कनाली छीना एवं डीडीहाट विकास खंडो के 7 गावों मे चंपावत के एक गाँव मे और नैनीताल मे कुछ संख्या मे निवास करते हैं ।
इनको बनरौत, बनराउत, जंगल के राजा आदि नामो से भी सम्बोंधित किया जाता है , लेकिन राजी नाम अधिक प्रचलित है ।
इनकी भाषा मे तिब्बती और संस्कृत शब्दों कि अधिकता पायी जाती है । किन्तु मुख्यतः मुंडा बोली के शब्दों की होती है । पहले ये जंगलों मे निवास करते थे लेकिन अब ये झोपड़ियों मे निवास करते हैं इनके निवास स्थल को रोत्यूड़ा कहा जाता है ।
ये काष्ठ कला मे निपुण होते हैं । कुछ समय पूर्व तक ये लकड़ी के घरेलू समान या लकड़ी के गट्ठर से आस पास के गांवो मे मूक या अदृश्य विनिमय द्वारा अपने आवश्यकता की सामग्री प्राप्त करते थे ।
इनकी कुछ परिवार अभी भी घुमक्कड़ी अवस्था मे जीवनयापन कर रहे हैं लेकिन ज़्यादातर लोग झूमकृषि से थोड़ी बहुत कृषि करने लगे हैं ।
