बांज एक शीतोष्णकटिबंधीय वृक्ष है । जिसका रासायनिक नाम क्वारकस ल्यूकोटाइकोफोरा है । पूरे विश्व मे इसकी 40 प्रजातियाँ हैं , लेकिन उत्तराखंड मे केवल 5 प्रजातियाँ (सफ़ेद, हरा या मोरु, भूरा या खरस , फल्यांट तथा रियांज) पाई जाती है । 

इस आदि वृक्ष को राज्य मे शिव की जटा कहा जाता है जो कि राज्य कि नदियों को अपने मे समेटे हुये है । 

बांज, विशेषकर सफ़ेद बांज उत्तराखंड कि पर्यावरण सुरक्षा एवं जनमानस कि उपयोगिता के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण है । इस वृक्ष कि जड़ों मे असंख्य रोएँ होती हैं । जिसके जाल मे मिट्टी कि मोटी-मोटी परतों व पानी को संरक्षित करने कि अपार क्षमता होती है । 

एक अनुमान के अनुसार बांज के एक वयस्क वृक्ष कि जड़ों तथा उसमे सरंक्षित मिट्टी मे 3.5 घन मीटर पानी को रोके रखने कि क्षमता होती है । 

एक अन्य अनुमान के अनुसार एक बांज का वयस्क वृक्ष अपने जीवन काल मे 1,40,00,000 रुपए के मूल्य का पर्यावरणीय लाभ पहुंचाता है । यहा लाभ ऑक्सीज़न, पर्यावरण प्रदूषण का नियंत्रण , भूक्षरण की रोकथाम, उर्वरता का स्थायित्व, पानी का परिष्करण, आद्रता व जलवायु नियंत्रण, चिड़ियों तथा अन्य जंतुओं को आश्रय, प्रोटीन परिवर्तन आदि के रूप मे मिलता है । 

इसकी लकड़ी का उपयोग ईंधन, कृषि यंत्र के निर्माण आदि मे किया जाता है । 

बांज के पत्तों का उपयोग पशुओं की खिलाने तथा जैविक खाद बनाने मे किया जाता है ।  

बांज के पेड़ के फायदे-

1. गंज्याली (ओखली कुटनी) बांज की ही लकड़ी के बनते हैं, गंज्याली पहाड़ी जीवन से जुड़ा ऐक एसा हथियार है जिसके बिना धान की कुटाई नहीं की जा सकती यह चक्की का काम करती है ।

2. बांज की पत्तियों के लिऐ पहाड़ की नारियां दूर दूर जाकर इसे अपने पशुओं का चारा बनाती हैं घर के नजदीक का बांज बरसात ओर ठण्ड के दिनो में चारा के लिऐ प्रयोग किया जाता है।

3. इसके तने के गोले से हल का निसुड़ सब से अधिक पसंद किया जाता है। बांज के तने से बनाया गया नसुड़ बहुत मजबूत होता है इसलिऐ पहाड़ो मे इसका प्रयोग बहुत जादा मात्रा मे होता है।

4. इसकी सूखी पत्तियां पशुओं के बिछावन लिये उपयोग की जाती हैं, पशुओं के मल मूत्र में सन जाने से बाद में इससे अच्छी खाद बन जाती है.

5. ईंधन के रुप में बांज की लकडी़ सर्वोतम होती है, अन्य लकडी़ की तुलना में इससे ज्यादा ताप और ऊर्जा मिलती है इसकी बारीक कैडिंया जल्दी जलती हैं ओर बड़ी लकड़ी आराम से जलती है। इस बांज के तने से बना कोयला दांत मंजन के काम मे भी लाया जाता है

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