1857 की क्रांति – 1857 के आंदोलन का असर राज्य मे बहुत कम था , क्योंकि –

1) अन्याय पूर्ण गोरखा शासन की अपेक्षा लोगो को अंग्रेज़ शासन सुधारवादी लग रहा था

2) कुमाऊँ कमिश्नर रेमजे काफी कुशल और उदार शासक था ।

3) टिहरी नरेश की अंग्रेज़ो के प्रति भक्ति थी एवं

4 ) राज्य मे शिक्षा , संचार तथा यातायात के साधनो की कमी थी ।

उपरोक्त बातों के बावजूद राज्य मे कुछ छिट-पुट कुछ आंदोलन हुये थे ।

उत्तराखण्ड के पहले स्वतंत्रता सेनानी कालू सिंह महरा का जन्म लोहाघाट के पास बिसुड़ गांव थुआमहरा के सामान्य परिवार 1831 को हुआ. कालू सिंह महरा ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ विद्रोह युवावस्था से लामबंद करना शुरू कर दिया. वे आजादी के आन्दोलन को संगठित करने के लिए काली कुमाऊँ के इलाके में सक्रिय हुए. रूहेलखण्ड के नबाव खानबहादुर खान, टिहरी नरेश और अवध नरेश द्वारा अंग्रेजों के खिलाफ बगावत के लिए कालू महरा को सहयोग करने का वायदा किया गया था. उनकी सक्रियता को देखते हुए अवध के नवाब ने कालू महरा को इस आशय का पत्र लिखा कि यदि इस क्षेत्र को अंग्रेजी शासन से मुक्त करा लिया जाता है तो पहाड़ी इलाके का शासन कालू महरा को सौंप दिया जायेगा और तराई के इलाके को अवध राज्य द्वारा शासित किया जायेगा 

1870 ई. में अल्मोड़ा में डिबेटिंग क्लब (Debating Club) की स्थापना की और 1871 से अल्मोड़ा अखबार की शुरुआत हुई, 1903 ई. में पंडित गोविन्द बल्लभ पन्त ने हैप्पी क्लब की स्थापना की। राज्य में चल रहे आन्दोलन को संगठित करने के लिए 1912 में अल्मोड़ा कांग्रेस की स्थापना की ।

1886 मे कलकत्ता मे हुये काँग्रेस के दूसरे सममेलन मे कुमाऊँ क्षेत्र के ज्वाला दत्त जोशी सहित दो नेताओं ने भाग लिया

20 वी सती के प्रथम दशक मे उत्तराखंड के रंजनीतिक मंच पर पंडित गोविंद बल्लभ पंत का प्रवेश हुआ । राज्य मे राजनीतिक चेतना के विस्तार के लिए 1903 मे उन्होने हॅप्पी क्लब नाम से एक संस्था बनाया

राज्य की सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक तथा शैक्षणिक समस्याओं पर विचार करने के लिए गोविन्द बल्लभ पन्त, हरगोविंद पन्त, बद्रीदत्त पाण्डेय आदि नेताओं के द्वारा 1916 में कुमाऊ परिषद का गठन किया

गढ़वाल क्षेत्र में स्वतंत्रता आन्दोलन अपेक्षाकृत बाद में शुरू हुआ, 1918 में बैरिस्टर मुकुन्दी लाल और अनुसूया प्रसाद बहुगुणा के प्रयासों से गढ़वाल कांग्रेस कमेटी का गठन हुआ, 1920 में गांधीजी द्वारा शुरू किए गये असहयोग आन्दोलन में कई लोगो ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया

1921 मे बदरीदत्त पांडे , हरगोविंद पंत और चिरंजीलाल के नेत्रत्व मे कुमाऊँ मण्डल के 40 हजार स्वतंत्रता सेनानियों द्वारा बागेश्वर के सरयू नदी के तट पर कुली-बेगार न करने की शपथ ली और इससे संबन्धित रजिस्ट्री को नदी में बहा दिया।

1929 में गांधीजी और नेहरु ने हल्द्वानी, भवाली, अल्मोड़ा, बागेश्वर व कौसानी ने सभाएँ की इसी दौरान गाँधी ने अवाश्क्तियोग नाम से गीता पर टिप्पणी लिखी।

23 अप्रैल 1930 को पेशावर में 2/18 गढ़वाल रायफल के सैनिक वीर चन्द्रसिंह गढ़वाली के नेतृत्व में निहत्थे अफगान स्वतंत्रता सेनानियों पर गोली चलने से इंकार कर दिया था, यह घटना ‘पेशावर कांड’ के नाम से प्रसिद्ध है।

महात्मा गांधी की जन जाग्रति के कारण स्वतंत्रता आन्दोलन में अपनी सक्रिय भूमिका अदा करने वाली महिला स्वतंत्रता सेनानियों में एक प्रमुख नाम बिशनी देवी साह का भी है. इनका जन्म 12 अक्टूबर 1902 को बागेश्वर में हुआ था

नमक सत्याग्रह के समय ही अल्मोड़ा के नगरपालिका भवन पर बिशनी देवी साह के नेत्रत्व मे कुंती वर्मा , जीवंती, मंगला व रेवती आदि महिलाओं ने तिरंगा फहराया। 

1941 मे गाधीजी ने अपनी विदेशी शिष्या सरला बहन , जो कि इंग्लैंड मूल कि थी और जिंका पूर्व नाम हाइलामान था को अल्मोड़ा भेजा । उन्होने कौसानी मे लक्ष्मी आश्रम कि स्थापना की। 

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