कुमाऊँनी बोली के साथ-साथ गढ़वाली भी दरद/खस प्राकृत से प्रभावित है, किन्तु कतिपय भाषाशास्त्री इसकी मूल उत्पति शुद्ध शौरसेनी से मानते हैं । मैक्समूलर ने अपनी पुस्तक ‘साइंस ऑफ लेंगवेज़’ मे गढ़वाली को प्राकृत भाषा का एक रूप माना है ।

बालकृष्ण शास्त्री की ‘कनकवंश‘ तथा हरीराम धसमाना की ‘वेदमाता’ नामक पुस्तकों से गढ़वाली बोली का संस्कृतनिष्ठ वैदिक शब्द प्रधान होने का निष्कर्ष निकलता है ।

पाणिनी कृत ‘अष्टाध्यायी‘ मे आए हुये शब्दों से यह भी अनुमान होता है कि पाणिनी व्याकरण की रचना भी उत्तरी गढ़वाल मे ही हुई ; जहां वैदिक आर्य भाषा की उत्पति इवान विकास हुआ था ।

अष्टाध्यायी का ‘गोष्ठ’ गढ़वाली भाषा का ‘गोठ’ है, जिससे गोठियारा शब्द निकला ।पाणिनी कृत अष्टाध्यायी का ‘लवनि’ शब्द ठीक उसी प्रकार से खेती की फसल काटने के लिए है, जैसा गढ़वाली भाषा मे फसल काटने का ‘लौण’ शब्द प्रयोग मे लाया जाता है ।

गढ़वाली मे प्रचलित बोलियाँ

ग्रियर्सन और सुनीति कुमार चटर्जी आदि विद्वान गढ़वाली को हिन्दी की ही बोली मानते हैं, क्योंकि यह हिन्दी के निकट है । गढ़वाली स्थान-स्थान पर बदलती गई है ।

हिन्दी मे – ‘किसी आदमी के दो लड़के थे ।’ (गढ़वाली बोली की उपबोलियों मे रूपांतर)

1. बधाणी : पिंडर और नंदाकिनी नदी के मध्य का क्षेत्र बधाण पट्टी कहलाती है । इस क्षेत्र के आसपास बधाणी बोली जाती है । ( कै आदमी का द्वि छियोडी छ्या । )

2. माँझ कुमैया : कुमाऊँ के संलंग्न क्षेत्र मे बोली जाने वाली इस बोली मे अनेक शब्द कुमाऊँ के मिश्रित हो गए हैं , इसलिए इसे ‘माँझ कुमैया’ नाम से पुकारा जाता है । (कै मैस का द्वि चेला छिया । )

3. श्रीनगरी : इस प्रकार की बोली गढ़वाल की प्राचीन राजधानी श्रीनगर के अतिरिक्त देवल तथा पौड़ी के आसपास के क्षेत्रों मे बोली जाती है । (कै आदिमा का द्वि नौनयाल छया ।)

4. सलाणी : सलाण क्षेत्र के अंतर्गत बोली जाने वाली बोली सलाणी कहलाती है । (कै झणा का द्वी नौना छया । )

5. नागपुरिया : चमोली जनपद मे नागपुर पट्टी तथा उसके सलंग्न क्षेत्रों मे बोली जाने वाली बोली नागपुरिया कहलाती है ।
(कै बैख का द्वी लौड़ा छया ।)

6. गंगपरिया : टिहरी गढ़वाल मे बोली जाने वाली बोली गंगपरिया कही जाती है ।
(एक झणा का द्वि नौन्याल थया ।)

7. लोहब्बा : राठ से सलग्न लोहाब पट्टी खनसर तथा गैरसेण आदि के आसपास लोहब्या बोली जाती है ।
(कै कजे का द्वि नॉन छाय । )

8. राठी : कुमाऊँ से संलग्न दूधातोली, बिनसर और थलीसैण आदि क्षेत्रों को राठ कहते हैं और उनकी बोली ‘राठी’ कहलाती है ।
(कै मनखि का द्वि लौड़ छाया ।)

9. दसौल्य : यह क्षेत्र नागपुर पट्टी से संलग्न है । दशोली पट्टी मे बोली जाने वाली बोली दसौल्य कहलाती है ।
(कई आदमी का दुई लड़िक छया ।)

कुमाऊँनी तथा गढ़वाली बोलियाँ वास्तव मे एक ही भाषा, मध्य पहाड़ी के दो स्वरूप है ।

मध्यकाल के राजतंत्र के युग मे उत्तराखंड दो प्रमुख राज्यों-गढ़वाल एवं कुमाऊँ मे विभक्त था । इससे मध्य-पहाड़ी की इन दो शाखाओं का नामकरण भी इसी प्रकार हुआ ।