गौरा पंत “शिवानी”

शिवानी हिन्दी की एक कहानीकार एवं उपन्यासकार थीं। शिवानी का वास्तविक नाम गौरा पंत था किन्तु ये शिवानी नाम से लेखन करती थीं। शिवानी का जन्म 17 अक्टूबर 1923  को विजयदशमी के दिन राजकोट गुजरात मे हुआ था।
वह अपनी कृतियों में उत्तर भारत के कुमायूँ क्षेत्र के आसपास की लोक संस्कृति की झलक दिखलाने और किरदारों के बेमिसाल चरित्र चित्रण करने के लिए जानी गई।  उनकी अधिकतर कहानियां और उपन्यास नारी प्रधान रहे। इसमें उन्होंने नायिका के सौंदर्य और उसके चरित्र का वर्णन बड़े दिलचस्प अंदाज में किया। शिवानी के पितामह संस्कृत के प्रकांड विद्वान पंडित हरिराम पाण्डे, जो बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में धर्मोपदेशक थे, वह परम्परानिष्ठ और कट्टर सनातनी थे ।

पुरस्कार

1982 में शिवानी जी को भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से अलंकृत किया गया।
उनकी अधिकतर कहानियां और उपन्यास नारी प्रधान रहे। उनकी लिखी कृतियों में कृष्णाकली, भैरवी, आमादेेर शान्तिनिकेतन , विषकन्या, चौदह फेेरे आदि प्रमुख है।

कहानी संग्रह

शिवानी की श्रेष्ठ कहानियाँ, शिवानी की मशहूर कहानियाँ, झरोखा, मृण्माला की हँसी अपराधिनी,पुष्पहार,विषकन्या । शिवानी का 21 मार्च, 2003 को दिल्ली में 79 वर्ष की आयु में निधन हुआ।

महादेवी वर्मा 

महादेवी वर्मा हिन्दी की सर्वाधिक प्रतिभावान कवयित्रियों में से थीं। महादेवी वर्मा का जन्म होली के दिन 26 मार्च, 1907 को फ़र्रुख़ाबाद, उत्तर प्रदेश में हुआ था। महादेवी वर्मा के पिता श्री गोविन्द प्रसाद वर्मा एक वकील थे और माता श्रीमती हेमरानी देवी थीं।
आधुनिक हिन्दी की सबसे सशक्त कवयित्रियों में से एक होने के कारण उन्हें आधुनिक मीरा के नाम से भी जाना जाता है। कवि निराला ने उन्हें “हिन्दी के विशाल मन्दिर की सरस्वती” भी कहा है  

पुरस्कार

1956 में भारत सरकार ने उनकी साहित्यिक सेवा के लिए ‘पद्म भूषण’ की उपाधि और 1969 में ‘विक्रम विश्वविद्यालय’ ने उन्हें डी.लिट. की उपाधि से अलंकृत किया। 1982 – ज्ञानपीठ पुरस्कार , 1988 – पद्म विभूषण

उनकी कृतियाँ :
नीहार (1930), रश्मि (1932), नीरजा (1934), सांध्यगीत (1936), दीपशिखा (1942),  अतीत के चलचित्र (१९४१) और स्मृति की रेखाएं (१९४३), पथ के साथी (1956), 2. मेरा परिवार (1972), 3. स्मृतिचित्र (1973) और 4. संस्मरण (1983)

महादेवी वर्मा का निधन 11 सितम्बर, 1987, को प्रयाग में हुआ था।

मन्नू भंडारी

मन्नू भंडारी (जन्म 3 अप्रैल 1931) हिन्दी की सुप्रसिद्ध कहानीकार हैं। मध्य प्रदेश में मंदसौर जिले के भानपुरा गाँव में जन्मी मन्नू का बचपन का नाम महेंद्र कुमारी था । लेखन के लिए उन्होंने मन्नू नाम का चुनाव किया ।

मन्नू भंडारी एक भारतीय लेखक है जो विशेषतः 1950 से 1960 के बीच अपने अपने कार्यो के लिए जानी जाती थी। सबसे ज्यादा वह अपने दो उपन्यासों के लिए प्रसिद्ध थी। पहला आपका बंटी और दूसरा महाभोज। धर्मयुग में धारावाहिक रूप से प्रकाशित उपन्यास आपका बंटी से मन्नू भंडारी ने लोकप्रियता प्राप्त की ।

के.के. बिरला फाउन्डेशन का वर्ष 2008  मे प्रतिष्ठित व्यास सम्मान लेखिका मन्नू भंडारी को दिया गया । 

उनकी प्रमुख कृतियाँ : एक प्लेट सैलाब (1962), मैं हार गई (1957), आंखों देखा झूठ,  तीन निगाहों की एक तस्वीर, नायक खलनायक विदूषक, आपका बंटी (1971) , एक इंच मुस्कान(1962)

पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल

पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल का जन्म 2 दिसम्बर सन 1901 में उत्तराखण्ड के गढ़वाल ज़िले में लैंसडाउन के निकट पाली नामक ग्राम में हुआ था। उनके पिता का नाम पण्डित गौरी दत्त था वे हिंदी में डी.लिट. की उपाधि प्राप्त करने वाले पहले शोधार्थी थे।

पुरस्कार

डॉ. पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल स्वन्त्रत भारत के प्रथम शोध छात्र थे। उन्हें उनके शोध कार्य “हिन्दी काव्य में निर्गुणवाद” के लिए वर्ष 1933 के दीक्षांत समारोह में ‘डी.लिट.’ (हिन्दी) से नवाज़ा गया।
आचार्य रामचंद्र शुक्ल और बाबू श्यामसुंदर दास की परंपरा को आगे बढा़ते हुए हिन्दी आलोचना को मजबूती प्रदान की। बड़थ्वाल जी का जन्म तथा मृत्यु दोनों ही उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र में लैंस डाउन अंचल के समीप “पाली” गाँव में हुए।

प्रमुख कृतियाँ

‘रामानन्द की हिन्दी रचनायें (वाराणसी, विक्रम संवत 2012)
‘डॉ. बड़थ्वाल के श्रेष्ठ निबंध’ (स. श्री गोबिंद चातक)
‘गोरखवाणी’ (कवि गोरखनाथ की रचनाओं का संकलन व सम्पादन)
‘सूरदास जीवन सामग्री’
‘मकरंद’ (स. डॉ. भगीरथ मिश्र)
‘किंग आर्थर एंड नाइट्स आव द राउड टेबल’ का हिन्दी अनुवाद (बच्चों के लिये)
‘कणेरीपाव’
‘गंगाबाई’
‘हिन्दी साहित्य में उपासना का स्वरूप’
‘कवि केशवदास’

पीताम्बर दत्त बड़थ्वाल की मृत्यु 27 जुलाई, 1944 को उनकी जन्म भूमि पाली ग्राम, गढ़वाल, उत्तराखण्ड में ही हुई।

 सूरदास

सूरदास हिन्दी के भक्तिकाल के महान कवि थे। हिन्दी साहित्य में भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य उपासक और ब्रजभाषा के श्रेष्ठ कवि महात्मा सूरदास हिंदी साहित्य के [सूर्य] माने जाते हैं। सूरदास का जन्म 1478ई० में रुनकता नामक गाँव में हुआ। यह गाँव मथुरा-आगरा मार्ग के किनारे स्थित है।

सूरदास की आयु सूरसारावली के अनुसार उस समय 67 वर्ष थी । आईने अकबरी मे तथा “मुतखबुत-तवारीख” के अनुसार सूरदास को अकबर के दरबारी संगीतज्ञों मे माना है । वह बहुत विद्वान थे, उनकी लोग आज भी चर्चा करते है।

उनकी रचनाए : सूरसागर, सूरसारावली, साहित्य-लहरी, नल-दमयन्ती, ब्याहलो
सूरदास की मृत्यु अनेक प्रमाणो के आधार पर संवत 1620 से 1648 के मध्य स्वीकार किया जाता हैं

तुलसीदास

गोस्वामी तुलसीदास (1511 – 1623) हिंदी साहित्य के महान कवि थे। इन्हें आदि काव्य रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि का अवतार भी माना जाता है। उनके द्वारा रचित महाकाव्य श्रीरामचरितमानस को विश्व के 100 सर्वश्रेष्ठ लोकप्रिय काव्यों में 46वाँ स्थान दिया गया

कुछ लोग मानते हैं की इनका जन्म सोरों शूकरक्षेत्र, वर्तमान में कासगंज (एटा) उत्तर प्रदेश में हुआ था। श्रीनरहर्यानन्द जी (नरहरि बाबा) ने इस रामबोला के नाम से बहुचर्चित हो चुके इस बालक को ढूँढ निकाला और विधिवत उसका नाम तुलसीराम रखा ।

अपने 123 वर्ष के दीर्घ जीवन-काल में तुलसीदास ने कालक्रमानुसार निम्नलिखित कालजयी ग्रन्थों की रचनाएँ कीं –

रामललानहछू (1582), वैराग्यसंदीपनी (1612), रामाज्ञाप्रश्न (1612), जानकी-मंगल (1582), रामचरितमानस (1574), सतसई, पार्वती-मंगल (1582), गीतावली (1571), विनय-पत्रिका (1582), कृष्ण-गीतावली (1571), बरवै रामायण (1612), दोहावली (1583) और कवितावली (1612)।

कबीरदास
(सन् 1440-1518 ई.) :

भारत के महान संत और आध्यात्मिक कवि कबीर दास का जन्म वर्ष 1440 में हुआ था। इस्लाम के अनुसार ‘कबीर’ का अर्थ महान होता है। इस बात का कोई साक्ष्य नहीं है कि उनके असली माता-पिता कौन थे लेकिन ऐसा माना जाता है कि उनका लालन-पालन एक गरीब मुस्लिम परिवार में हुआ था।

कबीर पन्थियों की मान्यता है कि कबीर का जन्म काशी में लहरतारा तालाब में उत्पन्न कमल के मनोहर पुष्प के ऊपर बालक के रूप में हुआ। अपने बचपन में उन्होंने अपनी सारी धार्मिक शिक्षा रामानंद नामक गुरु से ली। और एक दिन वो गुरु रामानंद के अच्छे शिष्य के रुप में जाने गये।

कबीर दास जी की मुख्य रचनाएं :
साखी– इसमें ज्यादातर कबीर दास जी की शिक्षाओं और सिद्धांतों का उल्लेख मिलता है।
सबद – कबीर दास जी की यह सर्वोत्तम रचनाओं में से एक है, इसमें उन्होंने अपने प्रेम और अंतरंग साधाना का वर्णन खूबसूरती से किया है।
रमैनी- इसमें कबीरदास जी ने अपने कुछ दार्शनिक एवं रहस्यवादी विचारों की व्याख्या की है। वहीं उन्होंने अपनी इस रचना को चौपाई छंद में लिखा है।

सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’

सूर्यकान्त त्रिपाठीसूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ (21 फरवरी, 1899 – 15 अक्टूबर, 1961) हिन्दी कविता के छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक माने जाते हैं। वे जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत और महादेवी वर्मा के साथ हिन्दी साहित्य में छायावाद के प्रमुख स्तंभ माने जाते हैं।

सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ का जन्म बंगाल की महिषादल रियासत (जिला मेदिनीपुर) में 21 फ़रवरी, सन् 1899 में हुआ था। निराला की शिक्षा हाई स्कूल तक हुई। बाद में हिन्दी संस्कृत और बाङ्ला का स्वतंत्र अध्ययन किया। निराला ने 1920 ई० के आसपास से लेखन कार्य आरंभ किया।

उनकी पहली रचना ‘जन्मभूमि’ पर लिखा गया एक गीत था। लंबे समय तक निराला की प्रथम रचना के रूप में प्रसिद्ध ‘जूही की कली’ शीर्षक कविता, जिसका रचनाकाल निराला ने स्वयं 1916 ई० बतलाया था, वस्तुतः 1921 ई० के आसपास लिखी गयी थी तथा 1922 ई० में पहली बार प्रकाशित हुई थी।

काव्य रचनाएँ : अनामिका (1923), परिमल (1930), गीतिका (1936), आराधना (1953), गीत कुंज (1954), सांध्य काकली, अपरा (संचयन) उपन्यास
उपन्यास : अप्सरा (1931), अलका (1933), प्रभावती (1936), निरुपमा (1936), कुल्ली भाट (1938-39)

सुमित्रानन्दन पन्त

सुमित्रानन्दन पन्तसुमित्रानंदन पंत (20 मई 1900 – 28 दिसम्बर 1977) हिंदी साहित्य में छायावादी युग के चार प्रमुख स्तंभों में से एक हैं। इस युग को जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ और रामकुमार वर्मा जैसे कवियों का युग कहा जाता है।

उनका जन्म कौसानी बागेश्वर 20 मई 1900 ई॰ में हुआ था। उनका नाम गोसाईं दत्त रखा गया। वह गंगादत्त पंत की आठवीं संतान थे। 1910 में शिक्षा प्राप्त करने गवर्नमेंट हाईस्कूल अल्मोड़ा गये। यहीं उन्होंने अपना नाम गोसाईं दत्त से बदलकर सुमित्रनंदन पंत रख लिया

पुरस्कार

हिंदी साहित्य सेवा के लिए उन्हें पद्मभूषण (1961), चिंदम्बरा के लिए ज्ञानपीठ(1968), साहित्य अकादमी, तथा लोकायतन के लिए सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार जैसे उच्च श्रेणी के सम्मानों से अलंकृत किया गया।

रचनाएँ

युगवाणी (1938), वीणा, (1919), लोकायतन, (1964), पल्लव (1926) , गुंजन (1932), युगांत (1937), युगपथ, (1949), मुक्ति यज्ञ, स्वर्णकिरण,(1947), ‘स्वर्ण-धूलि’ (1947), ‘उत्तरा’ (1949), तारापथ, ‘अतिमा’, ‘रजत-रश्मि’

रसखान

रसखानपूरा नाम –  सैय्यद इब्राहीम “रसखान”
जन्म – सन 1573 ई. हरदोई ज़िले के अंतर्गत पिहानी ग्राम (1548 ई. विकिपीडिया के अनुसार)
मृत्यु – मृत्यु के बारे में कोई प्रामाणिक तथ्य नहीं (1628, वृंदावन विकिपीडिया के अनुसार)
पिता – एक संपन्न जागीरदार (नाम ज्ञात नहीं)
कार्यक्षेत्र – कवि, कृष्णभक्त
कर्मभूमि – ब्रज
गुरु – गोसाई विट्ठलदास जी
धर्म – जन्म से मुसलमान, बाद में वैष्णव
काल – भक्ति काल
विधा – कविता, सवैया
विषय – गुण भक्ति
भाषा – ब्रज, फारसी, हिंदी
प्रमुख रचनाएं – सुजान रसखान’ और ‘प्रेमवाटिका’

माखनलाल चतुर्वेदी :

माखनलाल चतुर्वेदीश्री माखनलाल चतुर्वेदी का जन्म 4 अप्रैल 1889 मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले में बाबई नामक स्थान पर हुआ था। इनके पिता का नाम नन्दलाल चतुर्वेदी था जो गाँव के प्राइमरी स्कूल में अध्यापक थे।

पुष्प की अभिलाषा’ और ‘अमर राष्ट्र’ जैसी ओजस्वी रचनाओं के रचयिता इस महाकवि के कृतित्व को सागर विश्वविद्यालय ने 1941 में डी.लिट्. की मानद उपाधि से विभूषित किया।

पुरुस्कार :

1963 में भारत सरकार ने ‘पद्मभूषण’ से अलंकृत किया। माखनलाल चतुर्वेदी जी ने ‘प्रभा’, ‘कर्मवीर’ और ‘प्रताप’ का संपादन’ भी किया । 1943 ई0 मे देव पुरुस्कार (उस दौर का हिन्दी साहित्य का सबसे बड़ा पुरुस्कार) 1963 मे भारत सरकार द्वारा पद्मभूषण (10 सितम्बर 1967 को राष्ट्र भाषा हिन्दी पर आघात करने वाले राजभाषा संविधान संशोधन विधेयक के विरोध मे माखन लाल ने यह पुरुस्कार लौटा दिया । )

माखनलाल चतुर्वेदी की प्रमुख रचनाओं का वर्णन निम्नलिखित हैं – हिमकिरीटनी ,हिमतरंगिनी ,माता ,समर्पण ,मरण ज्वर ,बिजुरी काजल आज रही और वेणु लो गूंजे धरा,कला का अनुवाद कहानी संग्रह है।

समय के पाँव ,चिन्तक की लाचारी ,अमीर इरादे गरीब इरादे  इनके निबंध संग्रह है। कृष्णार्जुन युद्ध नाटक और साहित्य देवता में गद्य गीत संकलित हैं।

इनकी मृत्यु 30 जनवरी 1968 को हुई ।

मंगलेश डबराल

इनका जन्म 16 मई 1948 को टिहरी गढ़वाल, उत्तराखण्ड के काफलपानी गाँव में हुआ था, मंगलेश डबराल के पाँच काव्य संग्रह प्रकाशित हुए हैं।- पहाड़ पर लालटेन, घर का रास्ता, हम जो देखते हैं, आवाज भी एक जगह है और नये युग में शत्रु

इसके अतिरिक्त इनके दो गद्य संग्रह लेखक की रोटी और कवि का अकेलापन के साथ ही एक यात्रावृत्त एक बार आयोवा भी प्रकाशित हो चुके हैं।

दिल्ली हिन्दी अकादमी के साहित्यकार सम्मान, कुमार विकल स्मृति पुरस्कार और अपनी सर्वश्रेष्ठ रचना हम जो देखते हैं के लिए साहित्य अकादमी द्वारा सन् २००० में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित मंगलेश डबराल की ख्याति अनुवादक के रूप में भी है।

मंगलेश जी की कविताओं में भारतीय भाषाओं के अतिरिक्त अग्रेजी, रूसी, जर्मन, स्पानी, पोल्स्की और बल्गारी भाषाओं में भी अनुवाद प्रकाशित हो चुवेफ हैं।

मनोहर श्याम जोशी

उनका जन्म 09 अगस्त 1933 को राजस्थान के अजमेर के एक प्रतिष्ठित एवं सुशिक्षित परिवार में हुआ था। लेकिन ये मूल रूप से अल्मोड़ा से निवासी हैं । उन्होंने स्नातक की शिक्षा विज्ञान में लखनऊ विश्वविद्यालय से पूरी की।

मनोहर श्याम जोशी 1935- (देहांत: मार्च 30, 2006) आधुनिक हिन्दी साहित्य के श्रेष्ट गद्यकार, उपन्यासकार, व्यंग्यकार, पत्रकार, दूरदर्शन धारावाहिक लेखक, जनवादी-विचारक, फिल्म पट-कथा लेखक, उच्च कोटि के संपादक, कुशल प्रवक्ता तथा स्तंभ-लेखक थे।

दूरदर्शन के प्रसिद्ध और लोकप्रिय धारावाहिकों- ‘ बुनियाद’ ‘नेताजी कहिन’, ‘मुंगेरी लाल के हसीं सपने’, ‘हम लोग’ आदि के कारण वे भारत के घर-घर में प्रसिद्ध हो गए थे। वे रंग-कर्म के भी अच्छे जानकार थे।

उपन्यास : कुरु कुरु स्वाहा -1980, कसप – 1982,हमज़ाद – 1996, टा टा प्रोफ़ेसर -2001, कौन हूँ मैं – 2006, कपीशजी – 2009, उत्तराधिकारिणी – 2015

हरिशंकर परसाई

हरिशंकर परसाईहरिशंकर परसाई (22 अगस्त, 1924 – 10 अगस्त, 1995) हिंदी के प्रसिद्ध लेखक और व्यंगकार थे। उनका जन्म जमानी, होशंगाबाद, मध्य प्रदेश में हुआ था।
वे हिंदी के पहले रचनाकार हैं जिन्होंने व्यंग्य को विधा का दर्जा दिलाया और उसे हल्के–फुल्के मनोरंजन की परंपरागत परिधि से उबारकर समाज के व्यापक प्रश्नों से जोड़ा।

उनकी भाषा–शैली में खास किस्म का अपनापन महसूस होता है कि लेखक उसके सामने ही बैठे हें।ठिठुरता हुआ गणतंत्र की रचना हरिशंकर परसाई ने किया जो एक व्यंग है|

प्रमुख रचनाएं
कहानी–संग्रह: हँसते हैं रोते हैं, जैसे उनके दिन फिरे, भोलाराम का जीव।
उपन्यास: रानी नागफनी की कहानी, तट की खोज, ज्वाला और जल।
संस्मरण: तिरछी रेखाएँ।
लेख संग्रह: तब की बात और थी, भूत के पाँव पीछे, बेइमानी की परत, अपनी अपनी बीमारी, प्रेमचन्द के फटे जूते,

शैलेश मटियानी

शैलेश मटियानीशैलेश मटियानी (14 अक्टूबर 1931 – 24 अप्रैल 2001) आधुनिक हिन्दी साहित्य-जगत् में नयी कहानी आन्दोलन के दौर के कहानीकार एवं प्रसिद्ध गद्यकार थे।
उन्होंने ‘बोरीवली से बोरीबन्दर’ तथा ‘मुठभेड़’, जैसे उपन्यास, चील, अर्धांगिनी जैसी कहानियों के साथ ही अनेक निबंध तथा प्रेरणादायक संस्मरण भी लिखे हैं।
शैलेश मटियानी का जन्म उत्तराखण्ड राज्य के कुमाऊँ क्षेत्र के अन्तर्गत अल्मोड़ा जिले के बाड़ेछीना नामक गाँव में 14 अक्टूबर 1931 में हुआ था। उनका मूल नाम रमेशचन्द्र सिंह मटियानी था। 1950 से ही उन्होंने कविताएँ और कहानियाँ लिखनी शुरू कर दी थीं।

शुरु में वे रमेश मटियानी ‘शैलेश’ नाम से लिखते थे। उनकी आरंभिक कहानियाँ ‘रंगमहल’ और ‘अमर कहानी’ पत्रिका में प्रकाशित हुई।
कहानी संग्रह, ‘मेरी तैंतीस कहानियाँ’ (१९६१), ‘दो दुखों का एक सुख’ (१९६६), ‘दूसरों के लिए’ (१९६७), ‘सुहागिनी तथा अन्य कहानियाँ’ (१९६८), ‘सफर पर जाने के पहले’ (१९६९), ‘हारा हुआ’ (१९७०)

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