Q.1 :  गोरखा प्रशासक चौतरिया बमशाह और अँग्रेज जनरल ओक्टरलोनी के बीच संधि हुई ? – अप्रैल 1875

Q.2 : टिहरी रियासत का प्रथम राजा  – सुदर्शन शाह

Q.3 : सुदर्शन शाह का शासन काल – 1815 – 1859 ई0

Q.4 : अँग्रेजी सरकार का एक एजेंट नियुक्त होता था – टिहरी रियासत मे

Q.5 : टिहरी रियासत को पंजाब हिल स्टेट एजेंसी के साथ सयुंक्त कर दिया गया – 1937 ई0 मे

Q.6 : उत्तराखंड को सर्वप्रथम किस प्रेसीडेंसी के अधीन किया गया था – बंगाल प्रेसीडेंसी

Q.7 : गढ़वाल जिले का गठन किया गया – 1839 ई0

Q.8 : श्रीनगर से पौड़ी मुखयालय स्थानातरित किया गया – 1840 ई0

Q.9 : उत्तराखंड तीन प्रांत टिहरी रियासत, कुमाऊँ  तथा गढ़वाल जिलों मे विभक्त हुआ ? – 1839 ई0

Q.10 : तराई जिला का गठन हुआ – 1842 ई0

Q.11 : नैनीताल जिला का गठन हुआ – 1891 ई0

Q.12 : ब्रिटिश कुमाऊँ का प्रथम कमिशनर – एडवर्ड गार्डनेर

Q.13 : प्रथम ब्रिटिश कुमाऊँ कमिश्नर नियुक्त हुये – मई 1815 मे

Q.14 : एडवर्ड का कार्यकाल रहा – 9 महीने

Q.15 : ब्रिटिश कुमाऊँ के दूसरे कमिश्नर थे – विलियम ट्रेल

Q.16 : विलियम ट्रेल का कार्यकाल था – 1817 से 1835 तक

Q.17 : ट्रेल ने अस्सीसाला बंदोबस्त शुरू किया – समवत 1888 या 1823 ई0 मे

Q.18 : ट्रेल ने 1819 मे कितने पटवारी के पद सृजित किए – 9

Q.19 : ट्रेल ने नदियों के ऊपर सस्पेंशन पुलो का निर्माण करवाया – 1829 -1830 मे

Q.20 : ट्रेल के कार्यकाल मे अल्मोड़ा जेल का निर्माण हुआ – 1816 मे

Q.21 : ट्रेल के कार्यकाल मे पौड़ी जेल का निर्माण हुआ – 1821 मे

Q.22 : ट्रेल ने डबल लॉक व्यवस्था लागू की – 1824 मे

Q.23 : ब्रिटिश कुमाऊँ के तीसरे कमिश्नर कर्नल जॉर्ज गोबान नियुक्त हुये – 1836 मे

Q.24 : कर्नल जॉर्ज गोबान का कार्यकाल रहा – 1836 से 1838 तक

Q.25 : कुमाऊँ से दास प्रथा को समाप्त किया था – कर्नल जॉर्ज गोबान ने

Q.26 : कुमाऊँ के पहले कार्यवाहक कमिश्नर – कर्नल जॉर्ज गोबान

 

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कर्नल जॉर्ज गोबान के बाद कुमाऊँ कमिश्नर नियुक्त हुये – टॉम लुशिंग्टन
टॉम लुशिंग्टन का कार्यकाल रहा – 1838 से 1848 तक
टॉम लुशिंगटन कुमाऊँ कमिश्नर नियुक्त हुये – 30 नवम्बर 1838 मे
टॉम लुशिंगटन के कार्यकाल मे नैनीताल नगरपालिका गठन किया – 1842 मे
टॉम लुशिंगटन के कार्यकाल मे गढ़वाल अलग जिला बना – 1939 मे
टॉम लुशिंगटन के कार्यकाल मे ब्रिटिश मुख्यालय श्रीनगर से पौड़ी स्थानांतरित हुआ – 1840 मे
टॉम लुशिंगटन ने गोमती नदी मे पुल का निर्माण करवाया – 1848 मे
टॉम लुशिंगटन ने अल्मोड़ा मे डिस्पेन्सरी कमेटी गठित की – 1848 मे
टॉम लुशिंगटन ने अल्मोड़ा मे औषधालय का निर्माण करवाया ।
टॉम लुशिंगटन ने खैरना-नैनीताल मार्ग पर कार्य आरंभ किया – 1845 मेटॉम लुशिंगटन के बाद कुमाऊँ कमिश्नर नियुक्त हुये – जॉन हेलिट बेटन
जॉन हेलिट बेटन नियुक्त हुये – 1848 मे
जॉन हेलिट बेटन का कार्यकाल रहा – 1848 से 1856 तक
जॉन हेलिट बेटन कितने साल का भूमि बंदोबस्त करवाया – 20
जॉन हेलिट बेटन के भूमि बंदोबस्त की मुख्य विशेषता थी – खसरा सर्वेक्षण
जॉन हेलिट बेटन के कार्यकाल मे श्रीनगर मे लोहे का प्रथम संस्पेंशन पुल का निर्माण किसने करवाया – कमिश्नर स्ट्रेची ने
श्रीनगर मे प्रथम लोहे के सस्पेंशन पुल की लागत कितनी आई – 17078 रुपए
श्रीनगर मे प्रथम लोहे के सस्पेंशन पुल का निर्माण कब पूरा हुआ – 1853 मेजॉन हेलिट बेटन के बाद कुमाऊँ कमिश्नर कौन नियुक्त हुये – सर हेनरी रेमजे
सर हेनरी रेमजे कुमाऊँ कमिश्नर कब नियुक्त हुये – 1856 मे
सर हेनरी रेमजे का कार्यकाल रहा – 1856 से 1884 तक
सर हेनरी रेमजे ने ठेकेदारी प्रथा समाप्त करके वन प्रबंधन का कार्य शुरू किया – 1858 मे
सर हेनरी रेमजे किसके चचेरे भाई थे – लॉर्ड डलहौजी के
सर हेनरी रेमजे कहाँ के मूल निवासी थे – स्कॉटलेंड के
सर हेनरी रेमजे ने तराई भाबर के विकास हेतु गठन किया – तराई इंप्रूवमेंट फंड का
सर हेनरी रेमजे ने तराई इमप्रूवमेंट फंड का गठन किया – 1883 मे
सर हेनरी रेमजे ने स्कूली शिक्षा के केंद्र के रूप मे विकसित किया – नैनीताल को
नैनीताल मे शेरवुड कॉलेज की स्थापना – 1869
नैनीताल मे वेलेजली हाईस्कूल की स्थापना – 1884 मे
नैनीताल मे सेंट जोजफ कॉलेज की स्थापना – 1888 मे
भारत का प्रथम मेथोडिस्ट चर्च की स्थापना कब हुई – 1858 मे
मेथोडिस्ट चर्च की स्थापना किसने की – पादरी विलियम बटलर ने
उत्तराखंड मे आपदा प्रबंधन का कार्य किसने किया – हेनरी रेमजे ने
नैनीताल मे हिल साइट सेफ़्टी कमेटी का गठन किया गया – 1867 मे
कुमाऊँ का बेताज बादशाह कहा जाता है – सर हेनरी रेमजे को
पहली बार वैज्ञानिक तरीके से बंदोबस्त कब हुआ – 1863-1873 मे
विकेट बंदोबस्त कौन सा भूमि बंदोबस्त था – 9 वां
विकेट भूमि बंदोबस्त की मुख्य विशेषता थी – पर्वतीय भूमि को पाँच भागों मे बांटा गया
1. तलाऊ 2. उपराऊ अव्वल 3. उपराऊ दोयम 4. इजरान 5 कंटीली
सर रेमजे के कार्यकाल मे अधिसूचित जिला अधिनियम पारित किया गया – 1874 मेब्रिटिश वन प्रबंधन
वन विभाग का प्रथम महानिरीक्षक – डिटरिच ब्रेंडिस
सर हेनरी रेमजे ने वन बंदोबस्त किया – 1861 मे
बेंड्रिस किस सालह पर वन अधिनियम पारित किया गया – 1865 मे
कुमाऊँ मे एक अलग वन विभाग की स्थापना हुई – 1868 मे
गढ़वाल मे वन विभाग की स्थापना हुई – 1869 ई0 मे
भारतीय वन अधिनियम पारित किया गया – 1878 मे
चीड़ वृक्षों से लीसा टिपान शुरू किया गया – 1890 ई0 मे
1921 सोमेश्वर मे आग लगाने के जुर्म किस महिला को एक माह की कैद हुई – दुर्गा देवी

टिहरी रियासत मे अंग्रेज़ सरकार का एजेंट के रूप मे कार्य करता था – कुमाऊँ कमिश्नर
देहारादून के कमिश्नर ने टिहरी रियासत मे अंग्रेज़ सरकार के एजेंट के रूप मे कार्य किया – 1825 से 1842 तक
1885 मे राष्ट्रिय कांग्रेस कि स्थापना के समय कुमाऊँ कमिश्नर कौन था – जी0 रौस
असहयोग आंदोलन के समय कुमाऊँ कमिश्नर था – कमिश्नर केम्पवेल
कमिश्नर केम्पवेल का कार्यकाल था – 1906 से 1914 तक

अंतिम कुमाऊँ कमिशनर था – के0 एल0 मेहता
वास्तविक रूप से कुमाऊँ कमिश्नर माना जाता है – G.W. ट्रेल (1816 – 1835)

गढ़वाल एक स्वतंत्र जिला बनाया गया – सन् 1839 ई० में
गढ़वाल जिले का उत्तरदायित्व दिया गया – वरीयतम सहायक कमिश्नर को जोकि कुमायूँ कमिश्नर के अन्तर्गत होता था।
प्रशासन की सुविधा एवं आसानी से संचालन के लिए गढ़वाल जिले को बाँटा गया – ग्यारह परगनों तथा 86 पट्टियों में ।
गढ़वाल जिले में लगान वसूल करने वाला वरिष्टतम् अधिकारी था – सहायक कमिशनर
सहायक कमिशनर
डिप्टी कलैक्टर
तहसीलदार
कानूनगों
पटवारी

लगान विभाग में बहुत ही महत्वपूर्ण अधिकारी था – तहसीलदार
विगत वर्षों का लेखा-जोखा का पूर्ण निरीक्षण कर लगान की राशि नियत करता था – तहसीलदार
तहसीलदार के कार्यों को सुचारू रूप से चलाने के लिए की नियुक्ति की गई थी – कानूनगो
गढ़वाल में कितने कानूनगो नियुक्त किए गए थे – चार
पौ ने दो अतिरिक्त कानूनगो और नियुक्त किए ताकि पटवारियों के कार्यों पर पैनी निगाह रखते हुये उनका उचित तथा पूरा विश्लेषण हो सके – सन् 1896 ई० में
पटवारी की नियुक्ति कमिश्नर ट्रेल द्वारा की गई थी – सन् 1819 ई० में
पटवारी का अहम कार्य – लगान इकट्ठा करना, भूमि का लेखा जोखा रखना, भूमि की माप, लगान के विवादों का निस्तारण,
अनसुलझे विवादों पर डिक्री करवाना, सड़कों की मरम्मत करवाना, यात्रियों के सामान की पूर्ति करना,
‘खसरा’- ऐसा बही खाता रखना जिसमें खेतों की संख्या का पूर्ण लेखा जोखा होता था।
प्रधान तथा थोकदार – पटवारी के नीचे काम करते हैं तथा उन्ही कार्यों की सम्पन्नता हेतु नियुक्त किए जाते थे
‘हक पधान-प्रधान तथा थोकदार को भुगतान के लिए दी जाने वाली पधानरवानगी या पधानचारी धन
मुख्तियार – पधान का पद पैत्रिक होता था, यदि दुर्भाग्यवश पिता की मृत्यु के कारण पधान उस समय नाबालिग होता था तो उसके बालिग होने तक की नियुक्ति की जाती थी।

सयाना, कामिन या थोकदार – पधान तथा सरकार के मध्य लगान उगाहने वाला एक पदाधिकारी

अस्सी साल बन्दोबस्त के नाम से प्रसिद्ध इस व्यवस्था का बीजारोपण किया गया – 1880 अर्थात् सन् 1823 ई. में किया गया था
अस्सी साला बंदोबस्त से लगान की धनराशि नियत की गई – 64900 रूपया

कैसर-ए-हिन्द लैण्ड – बेकार भूमि को सरकारी सम्पत्ति माना गया।

सन् 1869 में कुमाऊँ वन प्रबन्धन का उत्तरदायित्व दिया गया – मेजर पियरसन

सन् 1869 मे ही गढ़वाल के वन विभाग की भी स्थापना हुई।

गढ़वाल के वन मुख्य चार विभागों में बाँटे गये ।

1. चण्डी के वन 2. उदयपुर के वन 3. कोट्री दून के जंगल 4. पाटली दून के वन।

गढ़वाल तथा कुमाऊँ जिलों की अदालतों का सर्वोच्च अधिकारी होता था – कुमाऊँ कमिशनर

किस अनुसार कानूनगो को पुलिस इंन्सपैक्टर तथा पटवारी को सब-इंसपैक्टर का अधिकार दिया गया था – कोर्ट ऑफ क्रिमिनल प्रोसीजर 1898 के

सर्वप्रथम जेल अल्मोड़ा में स्थापित की गई – 1816 में
पौड़ी में जेल स्थापित की गई – 1821 में

श्रीनगर में एलिमेंटरी वर्नाक्यूलर स्कूल की स्थापना की गई – सन् 1840

श्रीनगर में एक कोढ़ीखाना खोला गया जिसका खर्च टिहरी राज्य ने उठाना स्वीकारा – सन् 1901 में

सन् 1885 में सर फ्रेडरिक रौबर्ट्स ने जब भारतीय कमान सम्भाली तो सन् 1890 में तुरन्त ही निर्माण हुआ – सैकिन्ड गढ़वाल राइफल्स का

कुली उतार – . ब्रिटिश अधिकारी व उनके कारिन्दे जब भी किसी यात्रा पर जाते थे तो उस स्थान में रहने वालों को उन सबका सामान ढोकर ले जाना पड़ता था चाहे वह किसी भी जाति या वर्ग के हों।

कुली बेगार :- पहाड़ के लोगों को ब्रिटिश अधिकारियों की यात्रा में सामान ढोने के लिए पारिश्रमिक के रूप में एक पैसा तक नहीं मिलता था निःशुल्क उन्हें यह काम बलात् करना पड़ता था।

कुली बर्दायश :- ब्रिटिश अधिकारी जहाँ भी जाए वहाँ के लोगों के लिए सबसे जरूरी बात यह थी कि स्थानीय लोग उन लोगों के लिए निःशुल्क भोजन की व्यवस्था करें। न करने पर हेनरी रैमजे जैसा कुमाऊँ कमिश्नर जो कि अपने गुण, अपने सदव्यवहार के कारण लोगों को अत्यधिक प्रिय था उसने तक सोमेश्वर पट्टी के लोगों को निःशुल्क भोजन का प्रबन्ध न करने पर उनसे 500 रूपया जुर्माने के रूप में वसूला।

सन् 1850 में कुमायूँ का असिस्टेंट कमिश्नर था – सर हेनरी राम्जे ।
कोसी नदी से नहर निकालकर भाभर में सिंचाई सुविधा सुलभ कराने का विचार किया – सर हेनरी राम्जे

सर हेनरी राम्जे को कुमायूँ डिविजन का जूनियर एसिस्टेन्ट कमिश्नर नियुक्त किया – अगस्त 1840 में

सर हेनरी राम्जे को कमिश्नर बनाया गया – फरवरी 10, 1856 को
कमिश्नर पद पर सर हेनरी राम्जे सन बना रहा – 1884 तक
राम्जे ने तराई इम्प्रूवमेंट फण्ड की स्थापना की – सन् 1883 में
तराई इम्प्रूवमेंट फण्ड स्थापित कर इस फण्ड से इस इलाके में सड़कों, पुलों और अन्य विकास के कार्यों को करने के लिए धन उपलब्ध किया जाता था।

17 सितम्बर 1857 स्वतन्त्रता आंदोलन मे उत्तराखंड मे 1000 क्रांतिकारियों की सैनिक टुकड़ी भेजी थी – खान बहादुर खान
खान बहादुर खान नवाब था – रूहेलखण्ड का
नैनीताल, हल्द्वानी मे किसके नेत्रत्व मे 3000 पैदल सेनिक रूहेलखण्ड के नवाब खान बहादुर खान ने भेजी – काले खान के नेत्रत्व मे
इन क्रांतिकारियों को भगाने के लिए अंग्रेज़ सेना ने किसके नेत्रत्व मे गोरखा फौज तथा मिस्टर बैचर के नेत्रत्व मे घुड़सवार सेना भेजी थी –  मेक्सवेल और ले0 चेपमैन के
हलद्वानी मे हुये युद्ध मे कितने क्रांतिकारी मारे गये – 114
खान बहादुर खान ने पुनः किसके नेत्रत्व मे अपनी सेना हल्द्वानी भेज कर अधिकार किया – फजल हक
स्वतन्त्रता संग्राम के पहले कर्मचारी कालू मेहरा को स्वतन्त्रता क्रान्ति मे भाग लेने के लिए  किस नवाब ने आग्रह किया  – नवाब बाजिद अली शाह
चंपावत जिले के कालू सिंह मेहरा का गाँव था – बिसुड़ गाँव
कालु सिंह मेहरा ने कौन सा गुप्त संगठन बनाया था – क्रांतिवीर
उत्तराखंड का पहला क्रांतिकारी किसे कहा जाता है – कालू सिंह मेहरा को

प्रसिद्ध रुड़की कॉलेज की नीव रखी गई – 1847 ई0
रुड़की कॉलेज का प्रारम्भिक नाम था – थॉमस कॉलेज ऑफ सिविल इंजीनियरिंग
काठगोदाम से नैनीताल तक सड़क मार्ग बनाया गया – 1882 ई0
बरेली से काठगोदाम तक रेल मार्ग बिछाया गया – 1882 – 1884 ई0
हल्द्वानी मे सर्वप्रथम रेल पहुंची – 1884 ई0
देहारादून मे रेलवे स्टेशन की स्थापना कब हुई – 1900 ई0
उत्तराखंड मे कांग्रेस की स्थापना हुई – 1912 ई0

उत्तराखंड मे सर्वप्रथम प्रकाशित होने वाला पत्र – समय विनोद
समय विनोद प्रकाशित होता था – नैनीताल से
समय विनोद का प्रकाशन हुआ – 1868 ई0 – 1877 ई०
समय विनोद ने मे 1 मार्च 1877 के अंक मे विरोध किया था – अंग्रेज़ो के समकक्ष पद पर कार्यरत भारतियों को कम वेतन दिये जाने का
समय विनोद का प्रकाशन बंद हुआ – 1 अप्रेल 1877 मे वर्नाकूलर प्रेस एक्ट के तहत
अल्मोड़ा अखबार का प्रकाशन – 1871 – 1918 तक
अल्मोड़ा अखबार का सर्वप्रथम सम्पादन किया – बुद्धि बल्लभ पंत द्वारा
बुद्धि बल्लभ पंत के बाद अल्मोड़ा अखबार का सम्पादन किया – मुंशी सदानंद सनवाल
अल्मोड़ा अखबार का सम्पादन बद्रीदत्त पाण्डेय द्वारा किया गया – 1913 मे
अल्मोड़ा अखबार बंद कब हुआ – 1918 (48 वर्षों तक )
अल्मोड़ा अखबार का सरकारी रजिस्टर no. था – 10
अल्मोड़ा अखबार बंद करने का कारण था – १९१८ के होली अंक मे तत्कालीन डिप्टी कमिश्नर लोमश के काले कारनामो को उजागर किया था
अल्मोड़ा अखबार के बंद होने के बाद बद्रीदत्त पाण्डेय ने किस साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन किया – शक्ति
शक्ति साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन कब हुआ – सितम्बर 1918
शक्ति साप्ताहिक पत्र का पहला अंक प्रकाशित हुआ – 15 अक्टूबर 1918 को , विजयदशमी के दिन
1921 मे शक्ति के संपादक थे – विक्टर मोहन जोशी

“गढ़वाल समाचार” का प्रकाशन – 1902 से 1942 ई0
“गढ़वाल समाचार” पत्र का सम्पादन किया था – गिरिजा प्रसाद नैथानी
“गढ़वाल समाचार” पत्र का सम्पादन कहाँ से होता था – लेन्सडाउन से
देहारादून मे “अभय” नामक पत्रिका का प्रकाशन किया गया – 1922 मे
देहारादून मे “अभय” नामक पत्रिका का प्रकाशन किया – स्वामी विचारानंद द्वारा
स्वामी विचारानंद ने देहारादून मे होमरूल लीग की एक शाखा स्थापित की थी – 1918 मे
देहारादून से गढ़वाली मासिक पत्रिका का प्रकाशन –  1905 – 1942 ई0 तक
गढ़वाली मासिक पत्रिका का सम्पादन किया – गिरिजादत्त नैथानी , देहारादून से
पुरुषार्थ नामक पत्रिका का सम्पादन किया – गिरिजादत्त नैथानी ने, 1918 से 1923 तक
अल्मोड़ा अखबार के बंद होने पर पुरुषार्थ पर लिखा गया – “एक फायर से तीन शिकार कुली, मुर्गी और अल्मोड़ा अखबार ”
कर्मभूमि का संपादक थे – भैरव दत्त धूलिया और भक्तदर्शन
कर्मभूमि का प्रकाशन किया गया – 1939, लेन्सडाउन से
कर्मभूमि का विमोचन किया था – गोविंद बल्लभ पंत ने
युगवाणी का प्रकाशन किया गया – 1947, देहारादून से
युगवाणी का सम्पादन किया – भगवती प्रसाद पांथरी और गोपेश्वर कोठियाल
हिमाचल साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन कहाँ से हुआ – मसूरी से
हिमाचल साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन कब हुआ – 1948 से
हिमाचल साप्ताहिक पत्र के संपादक का नाम – सत्यप्रसाद रतुड़ी
समता नामक साप्ताहिक पत्र कहाँ से प्रकाशित होता था – अल्मोड़ा से
समता नामक साप्ताहिक पत्र कब प्रकाशित हुआ – 1934 मे
समता नामक साप्ताहिक पत्र के संपादक थे – हरीप्रसाद टमटा
समता नामक साप्ताहिक पत्र का मुख्य उद्देश्य था – दलितो का उत्थान करना
समता नामक साप्ताहिक पत्र का पहला अंक कब प्रकाशित हुआ – 1 जून 1934 मे
कुमाऊँ राजपूत अखबार का प्रकाशन कब हुआ – 1948 को
कुमाऊँ राजपूत अखबार का प्रकाशन कहाँ से हुआ – अल्मोड़ा से
उत्तराखंड का पहला समाचार पत्र कहाँ से प्रकाशित हुआ – मसूरी से
उत्तराखंड का पहला समाचार पत्र का नाम क्या था – the hills
उत्तराखंड का पहला समाचार पत्र का the hills किस भाषा मे छपता था – अँग्रेजी
उत्तराखंड का पहला समाचार पत्र the hills के संपादक कौन थे – जॉन मेकेनिन
पताका साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन कब हुआ – 1939 मे
पताका साप्ताहिक पत्र का सम्पादक कौन था – सोबन सिंह जीना
पताका साप्ताहिक पत्र कहाँ से प्रकाशित होता था – अल्मोड़ा से
उत्तरांचल उत्थान परिषद का गठन किसने किया – सोबन सिंह जीना
उत्तरांचल उत्थान परिषद का गठन कब किया गया – 1988
गढ़वाल भाषा का पहला साप्ताहिक पत्र था – विशाल कीर्ति
विशालकिर्ति का प्रकाशन किया गया – 1913 मे
विशालकीर्ति का प्रकाशन कहाँ से होता था – पौड़ी से
विशालकीर्ति के सम्पादक थे – सदानंद कुकरेती
विशालकिर्ति का प्रसिद्ध लेख – गढ़वाल ठाठ
उत्तराखंड का पहला दैनिक पत्र कौन सा था – पर्वतीय
तरुण कुमाऊँ के संपादक थे – बेरिस्टर मुकुंदीलाल
तरूण कुमाऊँ का प्रकाशन कब किया गया – 1922 में
तरुण कुमाऊँ का प्रकाशन कहाँ से होता था – लैंसडाउन से
गढ़वाल पत्रकारिता का पितामाह कहा जाता है – विशंभर दत्त चंदोला
“उठो गढ़वालियों” नामक कविता के रचयिता थे – सत्य शरण रतुड़ी
गढ़वाली का सम्पादन किया – गिरिजादत्त नैथानी, तारादत्त गैरोला, विशंभर दत्त चंदोला
डिबेटिंग क्लब की स्थापना – 1870 ई0
बुद्दिबल्लभ पंत की अध्यक्षता मे इलबर्ट बिल का समर्थन हुआ – 1883 मे
इल्बर्ट बिल किस वाइसराय के कार्यकाल मे लाया गया था – वायसराय लॉर्ड रिपन
इल्बर्ट बिल का उद्देश्य था – भारतीय न्यायाधीशों को उन मामलों की सुनवाई करने का भी अधिकार प्रदान कर दिया गया जिनमें यूरोपीय नागरिक भी शामिल होते थे
इल्बर्ट बिल पारित हुआ – 1883 मे
1878 का वर्नाकुलर प्रेस अधिनियम पारित किया था – लॉर्ड लिट्टन ने
वर्नाकुलर प्रेस अधिनियम का उद्देश्य था – भारतीय भाषाओं में प्रकाशित होने वाले सभी समाचार पत्रों पर नियंत्रण
लिटन के वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट से बचने के लिए कौन सी बंगला भाषा की समाचार पत्र अंग्रेज़ी साप्ताहिक में परिवर्तित हो गयी- ‘अमृत बाज़ार पत्रिका’
अमृत बाजार पत्रिका मे उत्तराखंड की किस महिला स्वतन्त्रता सेनानी को कुमाऊँ स्वतन्त्रता संग्राम मे अग्रणी भूमिका वाला कहा गया – बिशनी देवी शाह को
वर्नाक्यूलर प्रेस एक्ट को कहा गया है – ‘मुंह बन्द करने वाला अधिनियम’
वर्नाकुलर प्रेस अधिनियम को निरस्त किया – 1881 में लॉर्ड रिपन ने

1896 मे हुये कलकत्ता मे हुये कांग्रेस अधिवेशन मे उत्तराखंड से किस नेता ने भाग लिया था – ज्वाला दत्त जोशी
गढ़वाल यूनियन की स्थापना – 1901 ई0
गढ़वाल यूनियन की स्थापना कहाँ हुई – देहारादून मे
हैप्पी क्लब की स्थापना हुई – 1903
हैप्पी क्लब की स्थापना की – गोविंद बल्लभ पंत
सर्वप्रथम किस गांव के ग्रामीणों ने कुली बेगार बनने से मना कर दिया – खत्याडी गाँव, अल्मोड़ा, 21 जुलाई 1903
गढ़वाली समाचार पत्र का सम्पादन किया – तरादत्त गैरोला
कुमाऊँ यूनियन की स्थापना – 1914 ई0 मे
तिलक और एनीबेसेंट द्वारा होंमरूल लीग की स्थापना की गई – 1916 ई0
कुमाऊँ परिषद की स्थापना की गई – 1916 ई0 मे
कुमाऊँ परिषद की स्थापना किसके अध्यक्षता मे हुई थी – नारायण दत्त सेमवाल
कुमाऊँ परिषद की स्थापना किनके प्रयासों से हुआ – गोविंद बल्लभ पंत, हरगोविंद पंत, बद्रीदत पाण्डेय

कुमाऊँ परिषद का प्रथम अधिवेशन – 1917 ई0
कुमाऊँ परिषद का प्रथम अधिवेशन की अध्यक्षता किसने की – जयदत्त जोशी
कुमाऊँ परिषद का प्रथम अधिवेशन कहाँ हुआ था – अल्मोड़ा
कुमाऊँ परिषद के प्रथम अधिवेशन मे प्रस्ताव रखा गया – कुमाऊँ परिषद का प्रचार – प्रसार
कुमाऊँ परिषद का प्रचार प्रसार करने के लिए नियुक्त किया गया – लक्ष्मीदत्त शास्त्री

कुमाऊँ परिषद का द्वितीय अधिवेशन – 1918 ई0
कुमाऊँ परिषद का द्वितीय अधिवेशन की अध्यक्षता किसने की – तारा दत्त गैरोला
कुमाऊँ परिषद का द्वितीय अधिवेशन कहाँ हुआ = हल्द्वानी
कुमाऊँ परिषद का द्वितीय अधिवेशन प्रस्ताव = दो वर्ष के भीतर कुली उतार प्रथा को समाप्त करना ।

कुमाऊँ परिषद का तृतीय अधिवेशन कब हुआ – 1919 ई0
कुमाऊँ परिषद का तृतीय अधिवेशन की अध्यक्षता किसने की – बद्रीदत्त जोशी
कुमाऊँ परिषद का तृतीय अधिवेशन कहाँ हुआ – कोटद्वार
कुमाऊँ परिषद का तृतीय अधिवेशन का प्रस्ताव – जंगलात और कुली उतार संबंधी
कुमाऊँ परिषद के तीसरे अधिवेशन मे जंगलात संबंधी और कुली उतार संबंधी प्रस्ताव क्रमश: रखा – प्रेम बल्लभ पांडे और मथुरा दत्त नैथानी

कुमाऊँ परिषद का चौथा अधिवेशन कब हुआ – 1920 ई0
कुमाऊँ परिषद का चौथा अधिवेशन की अध्यक्षता किसने की – हरगोविंद पंत
कुमाऊँ परिषद का चौथा अधिवेशन कहाँ पर हुआ – काशीपुर
कुमाऊँ परिषद का चौथा अधिवेशन का प्रस्ताव – असहयोग और कुली बेगार आंदोलन को जोड़ा गया

कुमाऊँ परिषद का पांचवा अधिवेशन – 1923 ई0
कुमाऊँ परिषद का पांचवा अधिवेशन की अध्यक्षता किसने की – बदरीदत्त पाण्डेय
कुमाऊँ परिषद का पांचवा अधिवेशन कहाँ पर हुआ – टनकपुर

कुमाऊँ परिषद का छ्ठा अधिवेशन कब हुआ – 1926 ई0
कुमाऊँ परिषद का छ्ठा अधिवेशन की अध्यक्षता किसने की – बेरिस्टर मुकुंदीलाल
कुमाऊँ परिषद का छ्ठा अधिवेशन कहाँ पर हुआ – गनिया धौला , रानीखेत
कुमाऊँ परिषद का विलय कांग्रेस मे कब हुआ – 1926 मे

कुली बेगार आंदोलन कब शुरू हुआ – 1921
गढ़वाल परिषद का गठन कब हुआ – 1918
गढ़वाल परिषद की स्थापना किसके प्रयासों से हुआ – बेरिस्टर मुकुंदीलाल और अनुसूया प्रसाद बहुगुणा
गढ़वाल परिषद का विशाल अधिवेशन हुआ – अक्टूबर, 1919 को
1919 मे कलकत्ता मे हुये कांग्रेस अधिवेशन मे किस गढ़वाल के नेताओं ने भाग लिया था – बेरिस्टर मुकुंदीलाल, बद्रीदत्त पांडे, मोहन सिंह मेहता और अनुसूया प्रसाद बहुगुणा
26 दिसम्बर 1919 मे जालियावाला बाग मे आयोजित सभा मे भाषण दिया – बद्रीदत्त पाण्डेय
कुमाऊँ परिषद ने नायक सुधार समिति की स्थापना कब की – 1919 मे
बेरिस्टर मुकुंदीलाल ने बैलगाड़ी से सेनिकों के लिए सामान ढोने पर प्रतिबंध लगाया – 1921 ई0 मे
मुकुंदी लाल किस पार्टी के अग्रणी नेता थे – स्वराज पार्टी के
मुकुंदी लाल ने 1929 मे किस कांग्रेस अधिवेशन मे भाग लिया – लाहौर अधिवेशन
गढ़वाल परिषद का प्रथम अधिवेशन – कोटद्वार, नवम्बर 1920 को
गढ़वाल में बैरिस्टर मुकुन्दी लाल की अध्यक्षता में चमेठा खाल में को कुली बेगार के विरोध मे सभा की गई – 30 जनवरी 1921
कुली एजेंसी का निर्माण किसने किया – जोध सिंह नेगी
कुली एजेंसी का मुख्यालय कहाँ था – पौड़ी मे
स्वतन्त्रता सेनानियों मे प्रथम राजनीतिक गिरफ्तारी हुई – मोहन सिंह मेहता, मार्च 1921

बद्रीदत्त पांडे और गांधी जी की मुलाक़ात हुई थी – कलकत्ता मे 1918 ई0 मे
असहयोग आंदोलन से कुली बेगार आंदोलन जोड़ा गया – 1920 मे कुमाऊँ परिषद के चौथे अधिवेशन मे
हजारों क्रांतिकारियों ने कुली बेगार के रेजिस्टर सरयू नदी मे बहा दिये गए – 13 जनवरी 1921 मे
कुली बेगार आंदोलन को असहयोग की पहली ईंट किसने कहा था – स्वामी सत्यदेव
स्वामी सत्यदेव द्वारा अल्मोड़ा में ‘शुद्ध साहित्य समिति’ की स्थापना – 1913 में
कुली बेगार आंदोलन को रक्तहीन क्रान्ति किसने कहा था – महात्मा गांधी

1937 ई0 मे सयुंक्त प्रांत के मुख्यमंत्री पद पर आसीन हुये – गोविंद बल्लभ पंत
असहयोग आंदोलन के पश्चात गांधी जी ने उत्तराखंड भ्रमण किया – 14 जून 1929
“अनाशक्ति योग” गीता पर टीका लिखी – कौसानी मे

गांधी जी की प्रथम यात्रा उत्तराखंड की – 5 अप्रैल 1915 मे (हरिद्वार कुम्भ मेला )
गांधी जी की दूसरी यात्रा उत्तराखंड मे – मार्च 1916
गांधी जी और इरविन मे सम्झौता – 5 मार्च 1931
गांधी जी की विदेशी शिष्या थी – सरला बहन और मीरा बहन
सरला बहन का वास्तविक नाम – हाइलामन (इंगलेंड से)
सरला बहन ने कौसानी मे स्थापना की – लक्ष्मी आश्रम की
लक्ष्मी आश्रम से जुड़ी किन दो महिलाओं ने सर्वोदय के लिए प्रचार प्रसार किया – कमला और बसंती
गांधी जी की किस अन्य शिष्या ने ऋषिकेश मे पशुलोक की स्थापना की – मीरा बहन
गांधी आश्रम की स्थापना किसने की – शांतिलाल त्रिवेदी ने
गांधी आश्रम की स्थापना हुई – 1937, चनौदा मे, सोमेश्वर
गांधी आश्रम मे ताला लगा दिया गया – 2 सितम्बर 1942 को
भारत छोड़ो आंदोलन के समय कुमाऊँ कमिश्नर था – एक्टन
गांधी जी ने दांडी यात्रा की – 12 मार्च 1930 को
गांधी जी के साथ उत्तराखंड से शामिल क्रांतिकारी जिन्होने दांडी मार्च मे भाग लिया – ज्योतिरम कांडपाल , गोरखवीर खड़गबहादुर, भैरवदत्त जोशी

अल्मोड़ा में एक ‘यूथ क्लब’ की स्थापना की – सन् 1903 में
जिसका उद्देश्य जनता में राजनैतिक जागृति जगाना था।
डिबेटिंग क्लब की स्थापना हुई – 1870 ई0 मे
डिबेटिंग क्लब की स्थापना किसके अध्यक्षता मे हुई – बुद्धिबल्लभ पन्त ने
डिबेटिंग क्लब की की स्थापना कहाँ हुई ? – अल्मोड़ा मे
गढ़वाल डिबेटिंग क्लब की स्थापना कब हुई – 1885 मे
गढ़वाल डिबेटिंग क्लब की स्थापना किसके अध्यक्षता मे हुई – खड़क सिंह नेगी
प्रचारिणी सभा की शाखा ‘प्रेम सभा’ की स्थापना – 1914 ई. में, काशीपुर में स्थापना
प्रथम विश्व युद्ध हुआ – 1914 मे
प्रथम विश्व युद्ध मे भारतीय सैनिको को मिले – 5 विक्टोरिया क्रॉस
प्रथम विश्व युद्ध मे गढ़वाली सैनिको को कितने विक्टोरिया क्रोस मिले – 2
प्रथम विश्व युद्ध मे किन गढ़वाली सैनिको विक्टोरिया क्रोस मिला – दरबान सिंह और गब्बर सिंह नेगी
प्रथम विश्व युद्ध मे 10 मिलिट्री क्रॉस भारतीय सैनिको मे कितने गढ़वाली सैनिक थे – 4

अमन सभा की स्थापना हुई थी – नवम्बर, 1930 को
अमन सभा का उद्देश्य था – छावनी को राष्ट्रिय आन्दोलन से बचाना था ।
टिहरी में बाल सभा की स्थापना – 1935 में
टिहरी राज्य प्रजा मण्डल की स्थापना – 23 जनवरी 1939, देहरादून मे
देवप्रयाग, लाइब्रेरी, सरस्वती विद्यालय तथा हिमालय विद्यापीठ की स्थापना – 1940 में
1942 में रॉयल गढ़वाल राइफल्स की दो टुकड़ियाँ ‘आजाद हिन्द फौज’ में शामिल हो गई – 2/18 तथा 6/18
जिनकी संख्या 2500 थी जिनमें से 600 सैनिकों ने आजादी के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिये।
लेफ्टीनेन्ट कर्नल चन्द्रसिंह नेगी – ऑफीसर्स ट्रेनिग स्कूल सिंगापुर के कमान्डर
मेजर देवसिंह दानू – नेताजी बोस की व्यक्तिगत गार्ड्स बटेलियन के कमान्डर
लेफ्टीनैन्ट कर्नल बुद्धि सिंह रावत – नेता जी सुभाष चन्द्र के पर्सनल एडजुटैन्ट,
मेजर पदमसिंह गोंसाई – सुभाष रैजीमेन्ट की तीसरी बटेलियन
लैफ्टीनैन्ट कर्नल रतूड़ी – पहली बटेलियन का नेतृत्व कर रहे थे।

सन् 1944 में अराकन फ्रन्ट पर रात्रि के अंधेरे में बिजली जैसी फूर्ती से सफलता प्राप्त कर, वृहद मात्रा में अनाज तथा हथियारों का जखीरा प्राप्त किया।
इसलिए नेता जी ने प्रसन्न होकर किसे सरदार ए-जंग उपाधि से स्वयं नवाजा – कमान्डर रतूड़ी को

हरगोविंद को जननयक
सन् 1919 में कांग्रेस के अमृतसर सम्मेलन में भाग लेकर गढ़वाल में रोलेट एक्ट के खिलाफत की – मुकुन्दीलाल तथा अनुसूया प्रसाद बहुगुणा ने
5 मार्च 1931 को गांधी इरविन पैक्ट के तहत – अनेक आन्दोलनकारियों को रिहा कर दिया गया था

सम्पूर्ण भारत मे स्वतन्त्रता दिवस मनाया गया – 26 जनवरी 1930 को
सविनय अवज्ञा आंदोलन कब शुरू हुआ था – 6 अप्रैल 1930 को
6 अप्रैल 1930 को ही देशभर मे नमक तोड़ने का आंदोलन चला था ।

उत्तराखंड मे नमक तोड़ने के आंदोलन के विकल्प मे कौन सा आंदोलन चला – जंगलात कानून का विरोध – 1930 मे
जंगलात कानून के विरोध का नेत्रत्व किसने किया – पं0 गोविंद बल्लभ पंत
अल्मोड़ा मे नगरपालिका की घटना – 26 मई 1930
अल्मोड़ा के नगरपालिका भवन मे राष्ट्रिय ध्वज फहराने का नेत्रत्व किसने किया – मोहन जोशी

पेशावर कांड कब हुआ था – 23 अप्रैल 1930
पेशावर मे किसके नेत्रत्व मे सविनय अवज्ञा आंदोलन चा रहा था – सीमांत गांधी खान अब्दुल गफ्फार खान
पेशावर मे किस जगह मे क्रांतिकारी सत्याग्रह करने हेतु एकत्रित हुये थे – किस्साखानी बाजार
पेशावर कांड के समय पेशावर मे कौन सी बटालियन सरकार द्वारा तैनात की गई थी ? – 2/18 गढ़वाल राइफल्स
2/18 बटालियन का नेत्रत्व कौन कर रहा था – चन्द्र सिंह भण्डारी
चन्द्र सिंह भण्डारी को “गढ़वाली” नाम दिया गया था – महात्मा गांधी
पेशावर कांड के बारे मे मुंशी प्रेमचंद ने किस पत्रिका मे लिखा – हंस, 30 जुलाई 1930
पेशावर कांड के बाद किसने सम्पूर्ण भारत मे गढ़वाल दिवस मनाने का निर्णय लिया – मोतीलाल नेहरू
1930 में चन्द्रसिंह गढ़वाली को 14 साल के कारावास के लिये जेल में भेज दिया गया – ऐबटाबाद की
वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली का जन्म – 25 दिसम्बर, 1891 और मृत्यु – 1 अक्टूबर 1979
चंद्र सिंह गढ़वाली के नाम पर भारत सरकार द्वारा डाक टिकट जारी किया गया था – 1994 मे
चन्द्रसिंह गढ़वाली की पत्नी का नाम – श्रीमती भागीरथी देवी था ।

गाड़ोडिया स्टोर डकैती कब हुई थी – 1930
गड़ोडिया स्टोर डकैती मे शामिल थे – क्रांतिकारी भवानी सिंह रावत
कौमी सेवा दल का गठन कब किया गया – 1937 मे
कोमी सेवा दल का गठन किया – हरगोविंद पंत ने

श्रीनगर मे विशाल राजनीतिक सम्मेलन हुआ – 5-6 मई 1938 मे
श्रीनगर के राजनीति सममेलन मे भाग लेने पहुंचे – विजय लक्ष्मी और पंडित जवाहर लाल नेहरू
श्रीनगर सम्मेलन मे मांग रखी गई –
i) राजशाही समाप्त ii) वीर चन्द्र सिंह गढ़वाली की रिहाई की मांग iii) टिहरी को पंजाब हिल स्टेट से सयुंक्त प्रांत मे मिलाना
iv) गाड़ी सड़क आंदोलन

गढ़वाल कांग्रेस कमेटी की बैठक पौड़ी मे हुई – 1938 मे
गढ़वाल कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष – विधादत्त बहुखंडी
जाग्रत गढ़वाल संघ की स्थापना – 1938 मे
जाग्रत गढ़वाल संघ की स्थापना किसने की – गढ़वाल कांग्रेस कमेटी के गरम दल के नेताओं ने
जाग्रत गढ़वाल संघ का अध्यक्ष बनाया गया – प्रताप सिंह नेगी
गढ़वाल के अंदर नमक आंदोलन का नेत्रत्व किया – प्रताप सिंह नेगी
जाग्रत गढ़वाल संघ का मंत्री पद दिया गया – उमानंद बड़थ्वाल
जाग्रत गढ़वाल संघ ने आंदोलन किया – गाड़ी सड़क आंदोलन
गाड़ी सड़क आंदोलन का उद्देश्य था – गरुड से कर्णप्रयाग तक और लेन्सडाउन से पौड़ी तक सड़क निर्माण करवाना ।
गाड़ी सड़क आंदोलन की शुरूआत हुई – 1938 से
जाग्रत गढ़वाल संघ की स्थापना किसने की ? – विधादत्त बहुखंडी

कांग्रेस ने 11 प्रांतो से सामूहिक त्याग पत्र दिया – 22 दिसम्बर, 1939
कांग्रेस के सामूहिक त्याग पत्र किस विरोध मे दिया – लिनलिथगो ने बिना कांग्रेस से विचार किए द्वितीय विश्व युद्ध मे शामिल होने का ऐलान कर दिया
22 दिसम्बर, 1939 को मुस्लिम लीग ने किस दिवस के रूप मे मनाया – मुक्ति दिवस के रूप मे
पहली बार 1940 ई. में पाकिस्तान की मांग की गई – लिनलिथगो के समय में
लिनलिथगो ने कांग्रेस के समक्ष अगस्त प्रस्ताव रखा – 8 अगस्त 1940 को
अगस्त प्रस्ताव को ठुकराने के बाद महात्मा गांधी ने कौन सा आंदोलन चलाया – व्यक्तिगत सत्याग्रह
समस्त भारत मे व्यक्तिगत सत्याग्रह चलाया गया – 17 अक्टूबर 1940 ई0
प्रथम सत्याग्रही चुने गए – विनोबा भावे
द्वितीय सत्याग्रही चुने गए – जवाहर लाल नेहरू
महात्मा गांधी ने उत्तराखंड मे व्यक्तिगत सत्याग्रह को बंद करने के पीछे कारण था – डोलपालकी प्रथा

अल्मोड़ा मे भारत छोडो आंदोलन के दौरान छात्रों ने किस कुमाऊँ कमिश्नर को पत्थरों से घायल कर दिया – एक्टन
5 सितम्बर 1942 मे अल्मोड़ा के खुमाड़, सल्ट क्षेत्र मे हुये गोलीबारी मे शहीद हुये – खीमादेव और गंगाराम दो सगे भाई, बहादुर सिंह और गंगा सिंह चूड़ामणि
5 सितम्बर 1942 को किस अंग्रेज़ अफसर ने खुमाड़ के क्रांतिकारियों पर गोली चलाने का आदेश दिया ? – जॉनसन ने
5 सितम्बर को शहीद दिवस किस गाँव मे मनाया जाता है – खुमाड़, सल्ट क्षेत्र
स्वतन्त्रता आंदोलन के समय ताड़ीखेत मे प्रेम विधालय की स्थापना की – देवकी नन्दन पाण्डेय और भागीरथ पाण्डेय
स्वतन्त्रता आंदोलन के समय राष्ट्रीय विधालय की स्थापना की – सदानंद कुकरेती (सलांगी, गढ़वाल मे)
सालम की क्रान्ति – 25 अगस्त 1942 को हुई थी ।
सालम का शेर कहा जाता है – राम सिंह आजाद

नमक सत्याग्रह के दौरान अल्मोड़ा के नगरपालिका भवन पर कुंती वर्मा, जीवन्ती, मंगला आदि महिलाओं ने किसके नेत्रत्व मे अल्मोड़ा नगरपालिका मे तिरंगा फहराया – विशनी देवी शाह
किस महिला को जिंदा या मुर्दा पकड़ने का आदेश दिया गया – कुंती वर्मा
1932 मे 8 महिलाओं को किस जेल मे भेजा गया – फतेहगढ़ जेल
कुर्मांचल महिला सुधार सम्मेलन कहाँ हुआ – अल्मोड़ा मे
कुर्मांचल महिला सुधार सम्मेलन कब हुआ – 20 नवम्बर 1932 मे
कुर्मांचल महिला सुधार सम्मेलन का अध्यक्ष बनाया गया – दुर्गा देवी पंत
भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान किस संघठन ने रेलवे संपति को क्षति पहुंचाई – देश सेवा संगठन ने
भारत छोड़ो आंदोलन ने दौरान देश सेवा संगठन ने किसके नेत्रत्व मे रेलवे संपति क्षति पहुंचाई – मालती देवी
तुलसी रावत का जन्म कब हुआ – 1904 मे
तुलसी रावत किस संगठन की मंत्री रही – जोहार महिला संगठन की
तुलसी रावत कब से कब था जोहार महिला संगठन की मंत्री रही – 1948 से 1960 तक
तुलसी रावत ने किस पत्रिका का सम्पादन किया – महिला जागृति
तुलसी रावत ने महिला जागृति पत्रिका का सम्पादन कब किया – 1948 मे ।
किस महिला स्वतन्त्रता सेनानी को शौकान्चल का भूषण कहा गया – रूपा देवी को

भारत छोड़ो आंदोलन मे सल्ट क्षेत्र के लोगों के योगदान से प्रभावित गांधीजी ने इस क्षेत्र के लिए क्या कहा ? – भारत का दूसरा बारदोली
नेहरू ने अपनी प्रसिद्ध एतिहासिक कृति “डिस्कवरी ऑफ इंडिया” के पृष्ठ किस जेल मे लिखे – अल्मोड़ा जेल
नेहरू की पत्नी कमला नेहरू टी0 बी0 उपचार हेतु भर्ती थी – भवाली सेनेटोरियम

आजाद हिन्द फौज की स्थापना हुई – 1942 ई0 मे
आजाद हिन्द फौज की स्थापना की – कैप्टेन मोहन सिंह
नेताजी के प्रमुख अंगरक्षक – मेजर देव सिंह दानू

टिहरी राज्य आंदोलन

टिहरी में बाल सभा की स्थापना – 1935 में
टिहरी मे बाल सभा की स्थापना किसने की – सत्य प्रसाद रतुड़ी
सत्य प्रसाद रतुड़ी ने टिहरी मे बाल सभा की स्थापना कहाँ की – सकलाना पट्टी के उनियाल गाँव मे
हिमाचल साप्ताहिक पत्र के संपादक का नाम – सत्य प्रसाद रतुड़ी , 1948 मे मसूरी से
टिहरी राज्य प्रजा मण्डल की स्थापना – 23 जनवरी 1939,
टिहरि राज्य प्रजामण्डल की स्थापना कहाँ हुई – चक्कूवाला, देहारादून मे
टिहरी राज्य प्रजामंडल की स्थापना देहारादून मे किसके आवास मे हुई – श्याम चंद्र नेगी
टिहरी राज्य प्रजामण्डल मे किसे मंत्री बनाया गया – श्रीदेव सुमन को

टिहरी राज्य प्रजामंडल की मांगे थी –

1 पौण टूटी कर बंद की जाये (2) बरा-बेगार बंद की जाये (3) राज्य मे उत्तरदायी शासन स्थापित किया जाये ।

पौण टूटी कर – यह आयात निर्यात कर था । राज्य पर आने वाली तथा जाने वाली सभी वस्तुओं पर लिया जाता था ।

बरा कर – भू-व्यवस्था की देख-रेख करने वाले समस्त कर्मचारियों के लिए सुविधा शुल्क की भांति था ।

टिहरी राज्य प्रजामण्डल का वार्षिक अधिवेशन हुआ ? – 1947 मे, टिहरी नगर मे
टिहरी राज्य प्रजामण्डल के वार्षिक अधिवेशन का लक्ष्य – देशी राजा से स्वतन्त्रता
टिहरी राज्य प्रजामण्डल के वार्षिक अधिवेशन की अध्यक्षता  – रामस्वरूप
टिहरी राज्य प्रजामण्डल को टिहरी रियासत ने वैधानिक मान्यता कब दी – 21 अगस्त 1946 को

टिहरी मे सरकार की वन नीति ने विरोध मे किसका गठन किया गया – आजाद पंचायत

“आजाद पंचायत” की बैठक मे रियासत की सेना द्वारा गोलीकांड किया गया – तिलाड़ी के मैदान मे, 30 मई, 1930 (रंवाई कांड)

श्री देव सुमन को राजद्रोह के जुर्म मे जेल मे डाला गया – 24 फरवरी 1944 को
श्री देव सुमन कितने दिन जेल मे रहे – 209 दिन
श्री देव सुमन ने भूख हड़ताल कब प्रारम्भ की – 3 मई 1944 को
श्रीदेव सुमन की मृत्यु हुई – 25 जुलाई 1944
श्रीदेव सुमन दिवस सर्वप्रथम कब मनाया गया – 25 जुलाई 1946 को
श्री देव सुमन की पत्नी का नाम – श्रीमती विनय लक्ष्मी सकलानी
श्रीदेव सुमन जी का जन्म कहाँ हुआ था – टिहरी गढ़वाल जिले की बमुण्ड पट्टी के ग्राम जौल में
श्रीदेव सुमन जी का जन्म कब हुआ था – 12 मई, 1915 को हुआ था।
श्रीदेव सुमन जी के पिता का नाम – श्री हरिराम बड़ोनी
श्रीदेव सुमन जी के माता जी का नाम – श्रीमती तारा देवी

सकलाना विद्रोह कब फूटा – 15 अगस्त 1947 को
सकलाना आंदोलन का नेत्रत्व किसने किया – दौलत राम, नागेंद्र सकलानी, मौलूराम नौटीयाल
टिहरी दरबार मे शांति व्यवस्था कायम करने के लिए किस अधिनियम को पारित किया गया – शांति रक्षा अधिनियम
टिहरी दरबार मे शांति रक्षा अधिनियम पारित किया गया – 28 अप्रैल 1947 को
टिहरी की जनता ने किसके नेत्रत्व मे टिहरी की अदालत पर अधिकार कर लिया – नागेंद्र सकलानी
10 जनवरी 1948 कीर्तिनगर आंदोलन के शहीद हो गए – मौलूराम और नागेंद्र सकलानी
टिहरी राज्य की आदालत थी – कीर्तिनगर मे
किसकी अध्यक्षता मे टिहरी मे आजाद पंचायत बनाई गई – वीरेंद्र दत्त सकलानी
टिहरी रियासत के खिलाफ चला ढाड़क आंदोलन किससे संबन्धित था – किसान और मजदूरों से
टिहरी रियासत को उत्तर प्रदेश राज्य मे मिलाया गया – 1 अगस्त 1949

टिहरी रियासत

1815 ई0 के बाद टिहरी रियासत

टिहरी राज्य में ब्रिटिश सरकार का राजनैतिक प्रतिनिधित्व कुमाऊँ के कमिश्नर को सौंप गया – 26 दिसम्बर 1842 ई० को

सुदर्शन शाह ने टिहरी को अपनी राजधानी बनाई – 28 दिसम्बर 1815 मे
सुदर्शन शाह का कार्यकाल था – 1815 से 1859 तक
महाराजा सुदर्शनशाह ने अपने लिए एक राजप्रासाद पुराना दरबार बनवाया – सन् 1848 ई० में
टिहरी का पहला भूमि बंदोबस्त हुआ – 1823 मे
सूदर्शन शाह पँवार वंश का शासक था – 55वां
कालविदों का शिरोमणि किसे कहा गया है – सूदर्शन शाह को
चेतु तथा माणकू कलाकारों को किसने आश्रय दिया – सूदर्शन शाह ने
सूदर्शन शाह ने सभागार कितने खंडो मे लिखा है – 7
सूदर्शन शाह ने स्वयं को क्या कहकर संबोधित किया है – सूरत कवि
सूदर्शन शाह की मृत्यु कब हुई – 1859 ई0
टिहरी की जनता ने सूदर्शन शाह को किस नाम से पुकारा – बोलादा बद्रीश
सूदर्शन शाह ने किस अंग्रेज़ अधिकारी की रक्षा बाघ से की थी – फ्राइडन की

सूदर्शन शाह का उतराधिकारी था – भवानी शाह
भवानी शाह का कार्यकाल था – 1857 से 1871 तक
देवप्रयाग मे संस्कृत पाठशाला बनवाई थी – भवानी शाह ने
भवानी शाह की मृत्यु हुई – 1871 को

प्रताप शाह का कार्यकाल रहा – 1871 से 1886
भूव्यवस्था ज्यूला पैमाइश किसके कार्यकाल मे हुई थी – प्रताप शाह
टिहरी, मसूरी, श्रीनगर राजमार्ग का निर्माण करवाया – प्रताप शाह ने
टिहरी मे अँग्रेजी शिक्षा की शुरुआत की – प्रताप शाह ने
टिहरी मे प्रताप नगर की स्थापना किसने की – प्रताप शाह ने
टिहरी मे सर्वप्रथम पुलिस विभाग की स्थापना किसने की – प्रताप शाह ने

कीर्तिशाह की सरंक्षिका थी – महारानी गुलेरिया
कीर्तिशाह ने शासन किया – 1886 से 1913 तक
कीर्तिशाह ने ‘नया दरबार’ नामक प्रासाद का निर्माण करवाया – सन् 1880 से 1881
‘पुराना दरबार’ कीर्तिशाह के किसके हिस्से में आया – अनुज कुँवर ‘विचित्रशाह’
कीर्तिशाह को अंग्रेज़ो ने 1889 मे कौन सी उपाधि दी – कंपेनियन ऑफ इंडिया
कीर्तिशाह को इंगलेंड मे 11 तोपों की सलामी दी – 1900 मे
कीर्तिशाह को नाइट कमांडर की उपाधि दी – 1901 मे
टिहरी मे प्रताप हाईस्कूल व हीवेट संस्कृत पाठशाला की स्थापना की – 1901 मे
टिहरी मे वेधशाला का निर्माण करवाया – कीर्तिशाह ने
टिहरी में नगर में नगरपालिका की स्थापना की – कीर्तिशाह ने
जंगलात व कचहरी की कार्य प्रणाली में सुधार किया – कीर्तिशाह ने
टिहरी की जनता को पहली बार बिजली की सुविधा से अवगत करवाया – कीर्तिशाह ने
कीर्तिनगर की स्थापना कीर्तिशाह ने कब की – 1896 मे
उत्तरकाशी मे एक कुष्ठ आश्रम खोला – कीर्तिशाह ने
टिहरी मे प्रेस खोला – कीर्तिशाह ने
टिहरी मे कृषकों के कल्याण के लिए कृषि बैंक की स्थापना की – कीर्तिशाह ने
हिन्दी टाइपराइटर का आविष्कार किया – कीर्तिशाह ने
कीर्तिशाह की विलक्षण प्रतिभाओं को देखकर ही सम्भवतः लॉर्ड लैन्सडाउन ने सन् 1892
के ‘वायसराय दरबार’ में यह घोषणा की – भारतीय राज्यों के प्रत्येक नरेश को कीर्तिशाह को अपना आदर्श बनाना चाहिए एवं उनका अनुकरण करना चाहिए।
टिहरी मे घंटाघर का निर्माण करवाया – कीर्तिशाह ने , 1897 मे
टिहरी मे घंटाघर की ऊंचाई थी – 110 मीटर
कीर्तिशाह की मृत्यु हुई – 25 अप्रैल 1913

नरेन्द्र शाह ने शासन किया – 1913 से 1946 तक
नरेंद्रशाह ने नरेंद्रनगर की स्थापना की – 1921 मे
नरेंद्रशाह ने टिहरी से नरेन्द्रनगर राजधानी स्थानांतरित कब की – 1925 मे
नरेंद्र शाह की सरंक्षिका थी – राजमाता नेपालिया
प्रताप हाई स्कूल को इंटर कॉलेज किया – नरेंद्र शाह ने
नरेंद्र शाह को उपाधि दी गई – सर व केएसएसआई की
नरेंद्र शाह ने हिन्दू लॉ को विधिवत करवाया – 1919 मे
नरेंद्रशाह ने निम्न सड़कों का निर्माण करवाया –
नरेन्द्रनगर से मुनि की रेती तक, मुनि की रेती से देवप्रयाग तक तथा गंगा के किनारे-किनारे होता हुआ कीर्तिनगर तक, तीसरा नरेन्द्रनगर से टिहरी तक
1937 मे नरेद्रशाह को एलएलडी की उपाधि दी – बनारस विश्वविधालय ने
टिहरी मे प्रथम बार जनगणना करवाई गई – 1921 मे
प्रथम सांसद चुनी गई – राजमाता कल्मेन्दुमतिशाह
राजमाता कल्मेन्दुमतिशाह को पदम विभूषण दिया गया – 1958 मे समाज सेवा के लिए

गढ़नरेशों का प्रशासन

विलियम्स के अनुसार गढ़नरेशों के मंत्रिमण्डल में होते थे – दीवान, दफ्तरी, वजीर, फौजदार और नेगी
राज्य का सर्वोच्च मंत्री होता था – मुख्तार या बजीर
प्रत्येक परगने के सैनिक शासक कहलाते थे – फौजदार
फौजदार का कार्य था – अपने परगने में सुव्यवस्था रखना, सीमान्त की रक्षा करना, राजस्व की वसूली तथा आदेशानुसार आवश्यकता
पड़ने पर सेना सहित रण क्षेत्र में पहूँचना होता था।
दीवान – आय व्यय का कार्य करने वाला
सेना को वेतन देने वाले थे – बख्शी

राजधानी के सुरक्षाधिकारी कहलाते थे – गोलदार
प्राचीन सम्भ्रान्त परिवारों के प्रतिनिधियों के रूप में मंत्रिमण्डल में स्थान दिया जाता था – ‘नेगी’ को

तीव्रगामी सन्देशवाहक कहलाते थे – ‘चणु’
राजसभा तथा राजप्रासाद में अर्दली का कार्य करने वाले को कहते थे – ‘चाकर’
राजा के साथ चांदी का दण्ड लेकर चलने वाले को कहते थे – ‘चोपदार’

राज्य के विभिन्न परगानों में राजस्व की वसूली किसके द्वारा होती – थोकदार
थोकदार को अन्य किस नाम से जाना जाता था – कमीण या सयाणा
थोकदार परगने में प्रत्येक गांव के प्रभावशाली व्यक्तियों में से किसी एक को नियुक्त करता था – ‘प्रधान’
उक्त ग्राम से राजस्व वसूली का काम सौंपता था – ‘प्रधान’
‘प्रधान’ का पद अस्थायी होता था। उसे थोकदार हटा सकता था। प्रधान थोकदार को विभिन्न वस्तुयें नजराने के रूप में देता था।
औताली था – एक प्रकार का राजस्व कर
नापतौल की पद्धति धूलिपाथा का प्रचलन किसने किया – अजयपाल ने

राजा निम्नलिखित तीन परिस्थितियों में भू स्वामित्व दूसरे को दे सकता था-
(अ) संकल्प या विष्णु प्रीति में – विद्वान ब्राह्मणों को।
(ब) रौत में – विशिष्ट साहस एवं वीरता प्रदर्शित करने वाले सैनिक को।
(स) जागीर में – राज्याधिकारियों को।

जिस व्यक्ति या मन्दिर को संकल्प, रौत या जागीर में कोई ‘थात’ (भूमि) दी जाती थी वह कहलाता था – ‘थातवान्’
थातवान् उस भूमि पर पहले से बसे कृषकों को हटा नहीं सकता था।

थातवान् की भूमि पर बसे किसान ‘थातवान्’ के कहलाते थे – ‘खायकर’

‘कैनी’ – थातवान् थात में मिली भूमि के जिस अंश पर स्वय काश्त करने लगता था,
उस पर वह नये परिवारों को बसा सकता था, ऐसे परिवार थातवान् के ‘कैनी’ कहलाते थे।
‘सिरतान’ – कभी-कभी थातवान् अपनी भूमि पर कृषकों को स्वेच्छानुसार अस्थायी, रूप से बसा देते थे और आवश्यकता पड़ने पर हटा देते थे, ऐसे कृषकों को
‘सिरतान’ कहते थे।

राजधानी में सारे राज्य की कृषि भूमि का लेखा रखा जाता था – दफ्तरी के कार्यालय में
राज्य की आय का प्रमुख साधन था – ‘सिरती’ या ‘भूमिकर’

गढ़नरेश आश्रयदाता थे – संस्कृत तथा हिन्दी के विद्वानों, कवियों और ज्योतिषियों के

गढ़नरेश की राजभाषा थी – गढ़वाली

गढ़नरेशों की सबसे अधिक ख्याति किन्हे आश्रय देने से हुई – चित्रकारों को

श्यामदास तोमर और उनके वंशजों ने राजपूत चित्रकला की पहाड़ी शाखा में एक नई तूलिका का विकास किया वह किस नाम से प्रसिद्ध है – ‘गढ़वाली कलम’
गढ़राज्य में मुगल शैली की चित्रकला आरम्भ करने का श्रेय किसे है – श्यामदास और उनके पुत्र केहरदास

मोलाराम ने मुगल शैली की शिक्षा प्राप्त की थी – अपने पिता मंगतराम
मोलाराम ने अपने किस उस्ताद का उल्लेख किया है – रामसिंहजो मुंशी विलोचन का पुत्र था।

प्रारम्भ में गढ़ सेना किन पलटनों में विभक्त होती थी – ‘लोहबा’, ‘बधाण’ तथा ‘सलाण’

गढ़नरेश अपने सैनिकों की नियुक्ति स्वयं न करके किससे करवाते थे – फौजदारों तथा गोलदारों से
प्रत्येक परगने के सैनिक शासक कहलाते थे – फौजदार
राजधानी की रक्षा करने वाले – गोलकार

टिहरी नरेशों का प्रशासन

सुदर्शनशाह के राज्य काल में प्रशासनिक सुविधा के लिये राज्य को कितने ‘ठाणौं’ में बांटा गया था – चार
ठाणौं के हाकिम कहलाते थे – ठाणदार (थानेदार)
। ठाणे किनमे बांटा गया था – परगनों व पट्टियों में
परगने की व्यवस्था करने वाले अधिकारी को ‘’ कहते थे – सुपरवाइजर
सुपरवाइजर का पद ब्रिटिश गढ़वाल के किस पद के समान था – कानूनगो
राजस्व विभाग का अधिकारी होने के साथ-साथ पुलिस अधिकारी के रूप में भी कार्य करता था – पटवारी
पटवारी का आवश्यक कार्य था – अपनी पट्टी के पधानों से निर्धारित राजस्व की राशियाँ तहसील में जमा करावे।
प्रत्येक गांव से राजस्व वसूलने के लिये होते थे – पधान
पधान गांव के किन मे से नियुक्त किया जाता था – मौरूसीदारों में

राज्य के गांवों में राजा की आज्ञा से जो व्यक्ति किसी कृषि भूमि में कृषि करता था वह कहलाता था – असामी

असामी तीन प्रकार के होते थे – मौरूसीदार, खायकर, सिरतान
मौरूसीदार – जो राजाज्ञा से भूमि को बिना किसी दूसरे की आधीनता के कमाता था और टिहरी नरेश को राजस्व देता था,
खायकर – जो मौरूसीदार के अधीन उसकी भूमि से कमाता था तथा मौरूसीदार को निर्धारित रकम देता था
सिरतान – जो मौरूसीदार या खायकर को उसकी भूमि के लिए ‘सिरती’ या नकद रकम दिया करता था।

गढ़नरेशों तथा गोरखालियों के शासनकाल में ‘घीकर’ के नाम पर राशि किनसे लिया जाता था – पशु चराने वालों से

नये ढंग के विद्यालयों की स्थापना किसके राज्य काल से हुई, – कीर्तिशाह
प्रताप पाठशाला को हाईस्कूल बनाया – कीर्तिशाह ने
टिहरी में कैम्बैल बोर्डिंग हाउस, हिबेट संस्कृत पाठशाला, मुहम्मद मदरसा तथा कन्या पाठशाला की स्थापना की – कीर्तिशाह ने

1876 में राजधानी में पहला ‘खैराती शफाखाना’ स्थापित किया – प्रतापशाह ने
‘खैराती शफाखाना’ में किस पद्धति से चिकित्सा होती थी – भारतीय तथा योरोपीय

तीर्थ यात्रा मार्गों पर छोटे-छोटे औषधालयों की स्थापना की तथा चेचक को रोकने हेतु टीकाकरण प्रारम्भ करवाया – कीर्ति शाह ने
1925 में नरेन्द्रनगर में एक वर्तमान ढंग के चिकित्सालय की स्थापना की – नरेन्द्रशाह ने
देवप्रयाग तथा उत्तरकाषी में भी चिकित्सालयों की स्थापना की गई – नरेन्द्रशाह ने
टिहरी मे रेड क्रोस सोसायटी की स्थापना की गई – 1934 मे
टिहरी राज्य कुष्ठ विधान पारित किया गया – 1939 में
1941-42 तक राज्य में कुल मिलाकर कितने ग्रामीण आर्युवेदिकऔषधालयों स्थापना की जा चुकी थी – 16

छोटी दीवानी, बड़ी दीवानी, सरसरी और कलक्टरी नामक न्यायालयों की स्थापना की थी – सुदर्शनशाह ने
नरेन्द्रशाह ने हाइकोर्ट की स्थापना की जिसमें एक चीफ जस्टिस तथा एक या एक से अधिक पुइसन जजों की नियुक्ति का प्राविधान किया गया – सन् 1938 में

फौजदारी के विवादों के लिये स्थापना की गई – सैशन कोर्ट की
सैशन कोर्ट का उच्चाधिकारी होता था – सैशन जज
सैशन जज के अधीन थे – प्रथम, द्वितीय तथा तृतीय श्रेणी के मजिस्ट्रेट

राज्य की आय के प्रमुख स्त्रोत थे – भूमिकर, वन, न्यायालय, यातायात, आयात-निर्यात कर, मादक द्रव्य उत्पादन तथा विक्रय कर, आयकर
भूमिकर या लगान का कितना भाग नकद राशि के रूप में लिया जाता था – 7/8
भूमिकर या लगान का 7/8 भाग नकद राशि को कहते थे – मामला या रकम
जागीरदार एवं मुआफीदार अपनी जागीर तथा मुआफी के लिए गांवों से लिया करते थे – ‘मामला’, ‘बरा’ और लकड़ी
बरा’ कर – राज्य में पटवारी, उसका चाकर, फॉरेस्ट गार्ड आदि कम वेतन वाले कर्मचारियों को गांवों से ‘दिये जाने की प्रथा थी।
भू-व्यवस्था की देख-रेख करने वाले समस्त कर्मचारियों के लिए सुविधा शुल्क की भांति था – बरा कर
टिहरी प्रजामण्डल ने बरा कर को खत्म करने की मांग रखी थी

पँवार वंश के प्रमुख साहित्य

फतेह प्रकाश – रत्नकवि
रामायण प्रदीप – मेधाकर शर्मा
वृत कौमुदी – मतिराम
गढ़राजवंश – मौलाराम
प्रेम पथिक – तोतराम गैरोला
मनोदय काव्य – भरत कवि
फतेहशाह कर्ण – जटाशंकर मिश्र
सभा भूषण – हरिदत्त शर्मा
कीर्ति विलास – सदानंद डबराल
सर्वसंग्रह शास्त्र – सुदर्शन शाह
जहांगीर विनोद – भरत कवि
गोरखवाणी – सुदर्शन शाह द्वारा लिखित गढ़वाली भाषा की प्रथम रचना
गढ़वाल जाति प्रकाश – बालकृष्ण शांति भट्ट
वृत विचार ग्रंथ – कवि राज सुखदेव
फतेह प्रकाश ग्रंथ – भूषण कवि
गढ़वाल राज्ञा वंशावली – देवराज कृत
भारतीय लोक साहित्य – श्याम परमार
गढ़वाल की दिवंगत विभूतियाँ – भक्त दर्शन
diglori that was gurjar – कन्हैया लाल
गोरखनाथ एंड कनफटा योगीज – जार्ज फ्रेज़र
खुड्बुड़ा युद्ध की जानकारी मिलती है – वैली ऑफ दून से
किस पुस्तक से ज्ञात होता है कि फतेहशाह ने गुरु राम राय को गुरुद्वारा के लिए तीन गाँव दान दिये – मेमवायर्स ऑफ देहारादून पुस्तक

पृथक राज्य आंदोलन

गढ़वाल और कुमाऊँ का मिलाकर एक पृथक राज्य बनाने संबंधी मांग सर्वप्रथम उठाई गई – 5-6 मई 1938 मे , श्रीनगर सम्मेलन मे

पृथक राज्य आंदोलन के लिए श्रीदेव सुमन ने सर्वप्रथम किस संघ की स्थापना की – गढ़देश सेवा संघ
गढ़देश सेवा संघ की स्थापना कहा हुई – दिल्ली मे
गढ़देश सेवा संघ की स्थापना कब हुई – 1938 मे
गढ़देश सेवा संघ का नाम बदलकर रखा गया – हिमालय सेवा संघ
बद्रीदत्त पाण्डेय ने उत्तरांचल के पर्वतीय भूभाग को विशेष वर्ग मे रखने की मांग उठाई – 1946 मे, हल्द्वानी कांग्रेस सम्मेलन मे
1946 मे, हल्द्वानी कांग्रेस सम्मेलन मे किसने गढ़वाल और कुमाऊँ के भू-भाग को अलग क्षेत्रीय भाग बनाने की मांग की – अनुसूया प्रसाद बहुगुणा
हिमाचल और उत्तरांचल को मिलाकर एक अलग हिमालयी राज्य बनाने के लिए किस समिति का गठन किया गया – पर्वतीय विकास जन समिति
पर्वतीय विकास जन समिति का गठन कब किया गया – 1950 मे
सर्वप्रथम भारत सरकार को किसने उत्तराखंड पृथक राज्य के संबंध मे ज्ञापन भेजा – कामरेड पी0 सी0 जोशी ने
कामरेड पी0 सी0 जोशी ने भारत सरकार को उत्तराखंड पृथक राज्य के संबंध मे ज्ञापन भेजा – सन 1952 मे
फजल अली आयोग का गठन किया गया था – भाषाओं के आधार पर पृथक राज्यों के पुनर्गठन के लिए
फजल अली आयोग का गठन किया गया – 1955 मे
भाषा के आधार पर पृथक राज्य बनने वाला पहला राज्य था – आंध्र प्रदेश
आंध्र प्रदेश भाषा के आधार पर पृथक राज्य कब बना – 1 अक्टूबर, 1953 को
फजल अली आयोग ने उत्तर प्रदेश पुनर्गठन की बात की थी उत्तराखंड पृथक राज्य के संबंध मे जिसे उत्तर प्रदेश सरकार ने ठुकरा दिया – 1955 मे
उत्तराखंड परिषद का गठन कब हुआ – 1956 मे
उत्तराखंड परिषद का गठन किसके नेत्रत्व मे हुआ – मानवेंद्र शाह के
पर्वतीय राज्य परिषद का गठन कब किया गया – 24 व 25 जून, 1967 को
पर्वतीय राज्य परिषद का गठन कहाँ किया गया – रामनगर, नैनीताल
पर्वतीय राज्य परिषद का अध्यक्ष बनाया गया – दया कृष्ण पाण्डेय
उत्तर प्रदेश सरकार ने क्षेत्र विकास के लिए गठन किया – पर्वतीय विकास परिषद का
पर्वतीय विकास परिषद का गठन कब हुआ – 1969 मे
कुमाऊँ राष्ट्रीय मोर्चा का गठन कब हुआ – 3 अक्टूबर 1970 मे
कुमाऊँ राष्ट्रीय मोर्चा का गठन किसने किया – कामरेड पी0 सी0 जोशी ने
पी0 सी0 जोशी किस पार्टी के महासचिव थे – कम्युनिस्ट पार्टी के
उत्तरांचल परिषद का गठन कब हुआ – 1972 मे
उत्तरांचल परिषद का गठन कहाँ हुआ – नैनीताल मे
उत्तरांचल परिषद ने दिल्ली चलो का नारा दिया – 1973 मे
पृथक पर्वतीय राज्य परिषद का पुनर्गठन कब हुआ – 1973 मे
पृथक पर्वतीय राज्य परिषद मे किन दो सांसदों को शामिल किया गया – प्रताप सिंह नेगी और नरेंद्र सिंह बिष्ट
उत्तराखंड युवा परिषद का गठन हुआ – 1976 मे
उत्तराखंड युवा परिषद के सदस्यों ने संसद का घेराव किया – 1978 मे
उत्तरांचल राज्य परिषद का गठन कब हुआ – 1979 मे
उत्तरांचल राज्य परिषद का गठन किसके नेत्रत्व मे हुआ – त्रेपन सिंह रावत
उत्तराखंड क्रांति दल का गठन कब हुआ – 24-25 जुलाई 1979
उत्तराखंड क्रांति दल का गठन कहाँ हुआ – मसूरी मे
ऑल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन ने 900 किमी की साइकिल यात्रा करके जन जागरूकता फैलाई – 1984 मे

उत्तराखंड क्रान्ति दल का गठन किस सम्मेलन मे हुआ – पर्वतीय जन विकास सम्मेलन मे
उत्तराखंड क्रान्ति दल के प्रथम अध्यक्ष थे – कुमाऊँ विवि के पहले कुलपति डॉ0 देविदत्त पंत
उत्तराखंड क्रान्ति दल का विभाजन कब हुआ – 1987 मे
उत्तराखंड क्रान्ति दल का विभाजन के बाद बागडोर संभाली – काशी सिंह एरी
पहली बार हरिद्वार को उत्तराखंड मे शामिल करने की मांग किसने की – उत्तराखंड क्रान्ति दल ने , 1987 मे
उत्तराखंड क्रान्ति दल के किस उपाध्यक्ष ने संसद पर पत्र बम फेंका – त्रिपेन्द्र सिंह पँवार
उत्तराखंड क्रानदी दल के उपाध्यक्ष त्रिपेन्द्र सिंह पँवार ने संसद पर बम कब फेंका – 23 अप्रैल 1987 मे
उत्तरांचल उत्थान परिषद का गठन कब हुआ – 1988 मे
उत्तरांचल उत्थान परिषद का गठन किसकी अध्यक्षता मे हुआ – शोबन सिंह जीना
राज्य के सभी संगठनो को मिलाकर एक संगठन बनाया गया – उत्तराखंड सयुक्त समिति
उत्तराखंड सयुंक्त समिति का गठन कब हुआ – 1989 मे
पृथक राज्य का पहला प्रस्ताव उत्तर प्रदेश विधानसभा परिषद मे रखा – जसवंत सिंह बिष्ट ने
पृथक राज्य का प्रस्ताव उत्तर प्रदेश विधानसभा मे जसवंत सिंह बिष्ट ने कब रखा – 1990 मे
जसवंत सिंह बिष्ट किस दल के विधायक थे – उत्तराखंड क्रान्ति दल के
उत्तराखंड क्रान्ति दल ने पहला ब्लूप्रिंट कब रखा – जुलाई 1992 मे
उत्तराखंड क्रान्ति दल के किस नेता ने पहला ब्लूप्रिंट पेश किया – काशी सिंह एरी
काशी सिंह एरी ने किस प्रस्तावित राजधानी की नीव डाली – गैरसेण
काशी सिंग हेरी ने गैरसेण का नाम रखा – चन्द्रनगर
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह ने पृथक राज्य की सरंचना व राजधानी हेतु किस समिति का गठन किया – रमाशंकर कौशिक समिति
कौशिक समिति गठित की गई – 1993 मे
कौशिक समिति ने अपनी रिपोर्ट दी – 1994 मे
कौशिक समिति ने सिफ़ारिश की – 8 पर्वतीय जिलों को मिलाकर उत्तराखंड बनाने की और राजधानी गैरसेण बनाने की ।
कौशिक समिति की सिफ़ारिशें स्वीकार कर राज्य विधानसभा मे पास कर दिया का कर दिया गया – जून 1994 मे
उधम सिंह नगर मे खटीमा मे आंदोलनकारियों मे गोलीबारी कब चलाई गई जिसमे 25 लोग मारे गए – 1 सितम्बर 1994
मसूरी मे आंदोलनकारियों पर गोली कब चलवाई गई जिसमे 7 आंदोलनकारी शहीद हो गए – 2 सितम्बर 1994 मे
2 सितम्बर 1994 मसूरी आंदोलन मे कौन पुलिस अधीक्षक शहीद हुये – उमाकांत त्रिपाठी
मसूरी आंदोलन मे दो महिलाएं जो शहीद हुई – हंसा धनाई और बेलमती चौहान

मुजफ्फर नगर रामपुर तिराहा कांड कब हुआ – 2 अक्टूबर 1994 मे
रामपुर तिराहा कांड मे कितने आंदोलनकारी शहीद हुये – 6
उत्तराखंड आंदोलनकारियों ने संविधान बचाओ रैली कब निकाली – 25 जनवरी 1995 मे
10 दिस्म्बर 1995 मे श्रीनगर स्थित श्रीयंत्र टापू मे अनशन पर बैठे आंदोलनकारियों पर लाठीचार्ज से किन आन्दोलकारियों की मौत हो गई – राजेश रावत और यशोधर बेंजवाल
किस प्रधानमंत्री ने 15 अगस्त 1996 को उत्तराखंड राज्य निर्माण की घोषणा की – एच डी देवगौड़ा
उत्तर प्रदेश पुनर्गठन विधेयक लोकसभा मे कब प्रस्तुत हुआ – 27 जुलाई 2000
उधम सिंह नगर को उत्तराखंड राज्य मे शामिल करने का निर्णय लिया गया – 29 जुलाई 2000
उधम सिंह नगर को उत्तराखंड राज्य मे शामिल करने की किस समिति ने सिफ़ारिश की – जॉर्ज कमेटी
राष्ट्रपति आर के नारायण ने उत्तरप्रदेश पुनर्गठन विधेयक पर कब हस्ताक्षर किए – 28 अगस्त 2000
इसे सरकारी गज़ट मे कानून नंबर – 28 के रूप मे इंगित किया गया ।
उत्तराखंड राज्य का गठन हुआ – 9 नवम्बर 2000 को
उत्तराखंड राज्य कौन से क्रम का राज्य था – 27वां
9 नवम्बर 2000 को उत्तराखंड के पहले अन्तरिम मुख्यमंत्री बनाए गए – श्री नित्यानन्द स्वामी
उत्तराखंड मे पहला विधानसभा चुनाव हुआ – 2002 मे
उत्तराखंड स्थायी राजधानी चयन आयोग – दीक्षित आयोग
दीक्षित आयोग का गठन किसके अध्यक्षता मे किया गया – जस्टिस वीरेंद्र दीक्षित
दीक्षित आयोग का गठन कब किया गया – 1 फरवरी 2003
दीक्षित आयोग ने सिफ़ारिश की – गैरसेण को स्थायी राजधानी बनाने के लिए
गैरसेण स्थायी राजधानी बनाने के लिए कौन आमरण अनशन के बाद शहीद हो गए – बाबा मोहन उत्तराखंडी
बाबा मोहन उत्तराखंडी कब शहीद हुये – 2004 मे
उत्तराचल (नाम परिवर्तन) विधेयक संसद मे पेश हुआ – दिसम्बर 2006 को
उत्तराचल (नाम परिवर्तन) विधेयक संसद मे पास हुआ – 29 दिसम्बर 2006 को
उत्तरांचल का नाम उत्तराखंड हो गया – 1 जनवरी 2007 को
गैरसेण मे विधानसभा भवन बनाने का निर्णय कब लिया गया – 3 नवम्बर 2012 को
गैरसेण मे विधानसभा बनाने के लिए भूमि पूजन हुआ – 9 नवम्बर 2013 को
गैरसेण को उत्तराखंड की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाई गई – 8 जून 2020 को

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