चंद्र सिंह गढ़वाली का जन्म- 25 दिसंबर 1891 में हुआ ।

वास्तविक नाम- चंद्र सिंह भंडारी (Nayak of peshawar kand)

जन्म स्थान- मासी गांव, पौड़ी गढ़वाल

पिता का नाम- जालोथ सिंह भंडारी

3 सितंबर 1914 को सेना मे भर्ती हुए ।

प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान अंग्रेजों की तरफ से मेसोपोटामिया युद्ध में भाग लिया था ।

1920 में गांधी के संपर्क में आए ।

2/18 गढ़वाल राइफल्स में मेजर हवलदार थे ।

23 अप्रैल 1930 को पेशावर में सीमांत गांधी के नेतृत्व में हो रहे आंदोलन पर गोली चलाने से इनकार कर दिया था । इस घटना के बाद सम्पूर्ण देश में ‘पेशावर काण्ड के नायक‘ के रूप में विख्यात हो गये,लेकिन सेना से बर्खास्त कर दिए गये ।

बैरिस्टर मुकुंदी लाल ने इनका मुक़दमा लड़ा था और इनके प्रयासों से मृत्युदंड से बचकर गढ़वाली जी को 14 साल के कारावास (काला पानी) की सजा हुई ।

एबडाबाद जेल मैं ले जाया गया उसके बाद इनको अलग-अलग जेलों में ले जाया गया ।

पेशावर कांड से प्रभावित होकर गांधी जी ने गढ़वाली की उपाधि दी ।

मोतीलाल नेहरू ने पूरे देश में गढ़वाल दिवस मनाने की घोषणा की ।

26 दिसंबर 1941 को जेल से रिहा हुए ।

1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया और जेल यात्रा की ।

1 अक्टूबर 1979 को पंचतत्व में विलीन ।

इनकी स्मृति में 23 अप्रैल को क्रांति दिवस व 12 जून को कोदियाबगढ़ मे मुक्ति दिवस व मेला लगता है ।

भारत सरकार द्वारा इनकी नाम पर 1994 मे ₹1 का डाक टिकट जारी ।

वीर चंद्र सिंह गढ़वाली नामक आत्मकथा- राहुल सांकृत्यायन द्वारा लिखी गई  ।

गांधीजी ने पेशावर घटना के बाद कहा था-

यदि मुझे एक चंद्र सिंह और मिलता तो देश कब का आजाद हो जाता’ । 

चन्द्र सिंह साम्यवादी विचारधारा से जुड़े थे ।

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