इनका जन्म फरवरी 1790 को काशीपुर ( उधमसिंह नगर ) में हुआ था ।
इनका मूल नाम लोकनाथ पन्त था ।
कहते हैं कि काशीपुर के महाराजा गुमान सिंह की सभा में राजकवि रहने के कारण
इनका नाम लोकरत्न “गुमानी” पड़ा और कालान्तर में ये इसी नाम से प्रसिद्ध हुये।
गुमानी जी ने अपनी प्रारम्भिक शिक्षा अपने चाचा श्री राधाकृष्ण पन्त तथा बाद में कल्यूं(धौलछीना)
अल्मोड़ा के सुप्रसिद्ध ज्योतिषी पण्डित हरिदत्त पन्त से शिक्षा ग्रहण की ।
कुछ समय तक यह टिहरी नरेश सुदर्शन शाह के दरबार में भी रहे थे ।
ज्ञान की खोज में आप वर्षों तक देवप्रयाग और हरिद्वार सहित हिमालयी क्षेत्रों में भ्रमण करते रहे, इस दौरान आपने साधु वेश में गुफाओं में वास किया ।
गुमानी जी मुख्यतः संस्कृत के कवि और रचनाकार थे ।
फिर भी कुमाऊनी , हिंदी तथा नेपाली में भी इनकी रचनाएं मिलती है जो कि “गुमानी नीति” में संग्रहित है ।
सर जॉर्ज ग्रियर्सन इन कुमाऊ का सबसे प्राचीन कवि मानते हैं ।
सर जार्ज ग्रियर्सन ने ‘लिंग्विस्टिक सर्वे ऑफ इंडिया’ में गुमानी जी की दो रचनाओं – गुमानी नीति और गुमानी काव्य-संग्रह का उल्लेख किया है ।
