समुद्रतल से 2048 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस स्थान का सर्वप्रथम विवरण सन 1839 से मिलता है ।उस वर्ष सबसे पहले अंग्रेज़ व्यापारी पीटर बैरन पहुंचा था । उसके बाद 1841 में नैनी झील के आस-पास अंग्रेज़ो के बंगले व मनोरंजन स्थल बनने लगे ।

नैनी झील के दोनों ओर सड़के बनी हैं, ताल का ऊपरी भाग मल्लीताल और निचला भाग तल्लीताल कहलाता है ।

काठगोदाम तक रेल लाइन बन जाने के कारण इस झील नगरी का तेजी से विकास हुआ ।

सन 1854 में नैनीताल को कुमाऊँ कमिश्नरी का मुख्यालय बनाया गया ।

गढ़वाल कमिश्नरी का 1969 मे गठन होने से पूर्व ब्रिटिश गढ़वाल भी कुमाऊँ कमिश्नरी में शामिल था ।

सन 1862 में यह उत्तर पश्चिम प्रांत का ग्रीष्म कालीन मुख्यालय बना । यह संयुक्त प्रांत के समय से ग्रीष्मकालीन राजधानी भी रही ।

नैनीताल स्थित राजभवन का निर्माण 1899 में हुआ । नगर में सांस्कृतिक भू-दृश्य का तीव्र विकास 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में प्रारम्भ हुआ ।

1973 में यहाँ पर कुमाऊँ विश्वविधालय स्थापित किया गया ।

राज्य निर्माण के पश्चात राज्य के उच्च् न्यायालय की स्थापना भी यहीं की गयी है ।

18 सितम्बर, 1882 को यहाँ भयंकर भूस्खलन हुआ जिसमें बड़ी संख्या में अंग्रेजों सहित 151 लोग मारे गए ।

यहाँ पर्यटकों के लिए नौकायन, घुड़सवारी, स्केटिंग आदि की सुविधाएं उपलब्ध हैं ।

नैनीताल के सीमावर्ती भाग मे ही भवाली, नौकुचियाताल, भीमताल आदि आकर्षक स्थल हैं ।

नैनीताल मण्डल और जनपद मुख्यालय भी है ।

अक्टूबर 1850 में नैनीताल म्युनिसिपल बोर्ड की स्थापना हुई ।

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