गढ़ केसरी नाम से विख्यात अनुसूया प्रसाद बहुगुणा का जन्म 18 फरवरी 1894 को नंदप्रयाग , चमोली ।
शिक्षा – लॉ , इलाहबाद विवी कानून की पढ़ाई खत्म करने के पश्चात नायब तहसीलदार पद पर चयन हुआ ।
गढ़वाल कांग्रेश ( 1918 ) की स्थापना ।
1919 में अमृतसर कांग्रेस के सम्मेलन में “बैरिस्टर मुकुंदी लाल और अनुसूया प्रसाद ने भाग लिया था । और अनुसूया प्रसाद ने भाग लिया था ।
1921 में उन्हें “गढ़वाल युवा सम्मेलन” श्रीनगर का अध्यक्ष चुना गया ।
1919 – 20 में कुली बेगार प्रथा के खिलाफ ब्रिटिश गढ़वाल में इस आंदोलन का नेतृत्व किया है ।
1921 में अंग्रेज कमिश्नर जब चमोली के गांव पहुंचा उसका खाना बनाने सामान उठाने और दूसरे काम के लिए कोई भी तैयार नहीं हुआ हार कर कमिश्नर ने उनसे प्रसाद को बातचीत के लिए बुलाया ।
इस घटना के बाद जनता ने उन्हें “गढ़ केसरी” कहना शुरू किया ।अनुसूया प्रसाद के प्रयासों के फलस्वरूप 1924 में बद्रीनाथ मंदिर प्रबंध समिति का गठन हुआ । व इसके पहले अध्यक्ष डॉ सीताराम बनाए गए ।
1930 में सत्याग्रह आंदोलन में हिस्सा लेने की वजह से जेल गए ।
1931 में हुए जिला बोर्ड के चेयरमैन नियुक्त हुए ।
1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान घर में नजरबंद कर दिया गया ।
23 मार्च 1943 को पंचतत्व में विलीन।
शिक्षा – लॉ , इलाहबाद विवी कानून की पढ़ाई खत्म करने के पश्चात नायब तहसीलदार पद पर चयन हुआ ।
गढ़वाल कांग्रेश ( 1918 ) की स्थापना ।
1919 में अमृतसर कांग्रेस के सम्मेलन में “बैरिस्टर मुकुंदी लाल और अनुसूया प्रसाद ने भाग लिया था । और अनुसूया प्रसाद ने भाग लिया था ।
1921 में उन्हें “गढ़वाल युवा सम्मेलन” श्रीनगर का अध्यक्ष चुना गया ।
1919 – 20 में कुली बेगार प्रथा के खिलाफ ब्रिटिश गढ़वाल में इस आंदोलन का नेतृत्व किया है ।
1921 में अंग्रेज कमिश्नर जब चमोली के गांव पहुंचा उसका खाना बनाने सामान उठाने और दूसरे काम के लिए कोई भी तैयार नहीं हुआ हार कर कमिश्नर ने उनसे प्रसाद को बातचीत के लिए बुलाया ।
इस घटना के बाद जनता ने उन्हें “गढ़ केसरी” कहना शुरू किया ।अनुसूया प्रसाद के प्रयासों के फलस्वरूप 1924 में बद्रीनाथ मंदिर प्रबंध समिति का गठन हुआ । व इसके पहले अध्यक्ष डॉ सीताराम बनाए गए ।
1930 में सत्याग्रह आंदोलन में हिस्सा लेने की वजह से जेल गए ।
1931 में हुए जिला बोर्ड के चेयरमैन नियुक्त हुए ।
1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान घर में नजरबंद कर दिया गया ।
23 मार्च 1943 को पंचतत्व में विलीन।