बैजनाथ | Baijnath
बैजनाथ को प्राचीन काल में बैजनाथ-कार्तिकेयपुर भी कहा जाता था । कत्यूरी घाटी में स्थित, कौसानी से 19 किमी दूर और बागेश्वर से 26 किलोमीटर दूर, यह छोटा लेकिन प्राचीन
बैजनाथ को प्राचीन काल में बैजनाथ-कार्तिकेयपुर भी कहा जाता था । कत्यूरी घाटी में स्थित, कौसानी से 19 किमी दूर और बागेश्वर से 26 किलोमीटर दूर, यह छोटा लेकिन प्राचीन
कैंची धाम उत्तराखंड के पर्यटन मानचित्र में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है । यह स्थान उत्तराखंड के सुरम्य पर्वतों की तलहटी पर बसा एक मनोरम्य धार्मिक स्थल है । यह
उत्तरकाशी जनपद में स्थित यमुनोत्री हिंदुओं का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है । केदारनाथ॰ बद्रीनाथ की यात्रा का यह प्रथम चरण माना जाता है । गंगोत्री, केदारनाथ एवं बद्रीनाथ की
मसूरी की स्थापना सन 1823 में एक अंग्रेज़ द्वारा कैमल्स बैक पर एक छोटी-सी झोपड़ी बनाने से की गई थी । समुद्र तल से औसतन 1880 मीटर की ऊंचाई पर
कटारमल अल्मोड़ा नगर से 12 किमी दूरी पर स्थित है । यहाँ 11वीं – 12वीं सदी का सूर्य मंदिर निर्मित है । इस मंदिर को बड़ादित्य मंदिर के नाम से भी
रुड़की का विकास सन 1850 में हुआ, जब यहाँ से उत्तरी भारत में सिंचाई के लिए ब्रिटिश शासकों ने गंगनहर निर्माण की अति महत्वपूर्ण योजना आरंभ की । इस नहर
लाखामंडल, देहरादून से 126 किमी. दूरी पर यमुना के किनारे स्थित है । इस स्थान का पुराना नाम मढ़ था । किवंदन्ति है कि असंख्य मंदिरों के कारण यह लाखामंडल
कालसी उत्तराखंड में देहरादून जनपद के चकराता के पास स्थित अति महत्वपूर्ण एतिहासिक एवं पुरातात्विक स्थल है । यहाँ से प्राप्त शिलालेख एवं अन्य पुरातात्विक सामग्री का न केवल उत्तराखंड
समुद्रतल से 2048 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस स्थान का सर्वप्रथम विवरण सन 1839 से मिलता है ।उस वर्ष सबसे पहले अंग्रेज़ व्यापारी पीटर बैरन पहुंचा था । उसके
हल्द्वानी उत्तराखंड का सबसे बड़ा व्यापारिक नगर है । 15वीं शताब्दी से पहले आज का हल्द्वानी हल्दु पेड़ों के अलावा बेर, शीशम, कंजू, तुन, खैर, बेल तथा लैटाना जैंसी झाड़ियों