चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट-लैंडिंग करने वाला पहला मिशन बनकर चंद्रयान-3 ने इतिहास रच दिया है, दक्षिणी ध्रुव एक ऐसा क्षेत्र है जिसकी पहले कभी खोज नहीं की गई थी। इस मिशन का उद्देश्य सुरक्षित और सहज चंद्र लैंडिंग, रोवर गतिशीलता और अंतःस्थाने वैज्ञानिक प्रयोगों का प्रदर्शन करना था।

भारत अब संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस और चीन के साथ चंद्रमा पर सफलतापूर्वक लैंडिंग करने वाले कुछ देशों में शामिल हो गया है।

    चंद्रयान-3 की लैंडिंग के बाद के अपेक्षित कदम:

    चंद्रयान-3 के चंद्रमा की सतह पर कम-से-कम एक चंद्र दिवस (पृथ्वी के 14 दिन) तक संचालित होने की अपेक्षा है।

    प्रज्ञान रोवर लैंडिंग स्थल के चारों ओर 500 मीटर के दायरे में घूमेगा, परीक्षण करेगा और लैंडर को डेटा एवं छवियाँ भेजेगा।

    विक्रम लैंडर डेटा और छवियों को ऑर्बिटर तक प्रसारित करेगा, जो फिर उन्हें पृथ्वी पर भेज देगा।

    लैंडर और रोवर मॉड्यूल सामूहिक रूप से उन्नत वैज्ञानिक पेलोड से सुसज्जित हैं।

    इन उपकरणों को चंद्रमा की  विशेषताओं के विभिन्न पहलुओं की व्यापक जाँच करने के लिये डिज़ाइन किया गया है, जिसमें उस क्षेत्र का विश्लेषण, खनिज संरचना, सतह रसायन विज्ञान, वायुमंडलीय गुण और महत्त्वपूर्ण रूप से पानी एवं संभावित संसाधन जलाशयों की खोज शामिल है।

    प्रणोदन मॉड्यूल जो लैंडर और रोवर कॉन्फिगरेशन को 100 किमी. चंद्रमा की कक्षा तक ले गया, उसमें चंद्रमा की कक्षा से पृथ्वी के वर्णक्रमीय और पोलरिमेट्री माप का अध्ययन करने के लिये स्पेक्ट्रो-पोलरिमेट्री ऑफ हैबिटेबल प्लैनेट अर्थ (SHAPE) पेलोड भी है।