हल्द्वानी उत्तराखंड का सबसे बड़ा व्यापारिक नगर है ।
15वीं शताब्दी से पहले आज का हल्द्वानी हल्दु पेड़ों के अलावा बेर, शीशम, कंजू, तुन, खैर, बेल तथा लैटाना जैंसी
झाड़ियों व घास का मैदान था ।
16वीं सदी मे राजा रूपचन्द के शासनकाल में पहाड़ से लोग यहाँ शीत प्रवास पर आने लगे ।
ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा गोरखों को परास्त करने के बाद सिंगोली संधि के तहत कुमाऊँ का शासन बनाकर भेजा गया ।
गार्डनर ने पहली बार यहाँ सरकारी बटालियन तैनात की ।
बाद में कुमाऊँ कमिश्नर जार्ज विलियम ट्रेल ने 1834 में हल्दुवानी गाँव को हल्द्वानी शहर का रूप दिया ।
1856 में हेनरी रैमजे कुमाऊँ के कमिश्नर बने । उन्होने अपने रहने के लिए हल्द्वानी मे भी एक बंगला बनाया ।
1857 स्वतन्त्रता संग्राम
1857 के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम की ज्वाला यहाँ भी धधकी और
17 सितम्बर, 1857 को स्वतंत्रता सेनानियों ने हल्द्वानी शहर पर अधिकार कर लिया लेकिन
अगले ही दिन अंग्रेज़ो ने इसे फिर अपने अधिकार मे ले लिया ।
1882 में रैमजे ने काठगोदाम से नैनीताल तक सड़क बनवाई ।
1883 – 1884 में बरेली से काठगोदाम तक रेल लाइन बिछाई गई ।
24 अप्रैल, 1884 को लखनऊ से रेल हल्द्वानी पहुंची ।
वर्ष 1901 मे यहाँ आर्य समाज भवन का निर्माण हुआ तथा अगले वर्ष 1902 में यहाँ सनातन धर्म सभा की स्थापना हुई ।
नगर का पहला अस्तपताल 1912 में खुला ।
1907 में हल्द्वानी टाउन एरिया बना । इससे पहले यह फ्री सैंपल स्टेट थी ।
1929 में यहाँ महात्मा गांधी आए ।
1931 मे इस शहर की जनसंख्या 11,288 थी ।
21 सितम्बर, 1942 को हल्द्वानी – काठगोदाम नगर पालिका परिषद का गठन कर चतुर्थ श्रेणी का दर्जा दिया गया ।
1 दिसम्बर, 1966 में इसे प्रथम श्रेणी की नगर पालिका घोषित किया गया ।
अब इसे नगर निगम का दर्जा दिया गया है ।
