हिन्दी के शब्दो के वर्गीकरण के चार आधार हैं –
1) उत्पति / स्रोत / इतिहास
2) व्युत्पति / रचना / बनावट
3) रूप / प्रयोग / व्याकरणिक विवेचन
4) अर्थ
1) उत्पति / स्रोत / इतिहास के आधार पर
उत्पति / स्रोत / इतिहास के आधार पर शब्द पाँच प्रकार के होते हैं –
i) तत्सम = तत्सम (तत + सम) शब्द का अर्थ है – उसके समान अर्थात संस्कृत के समान
ii) तत्भव = तदभव (तत + भव) शब्द का अर्थ है – “उससे होना” अर्थात संस्कृत शब्दो से विकृत होकर (परिवर्तित होकर) बने शब्द ।
iii) देशज/देशी = देशज (देश + ज) शब्द का अर्थ है – “देश मे जन्मा” एसे शब्द जो आवश्यकतानुसार बनकर प्रचलित हो गए हो ।
iv) विदेशज/ विदेशी/ आगत = विदेशज (विदेश + ज) शब्द का अर्थ है – “विदेश मे जन्मा” | आगत का अर्थ है – आया हुआ ।
v) संकर = दो भिन्न स्रोतों से आए शब्दों के मेल से बने नए शब्दो को संकर शब्द कहते हैं ।
तत्सम शब्द और उनके उदाहरण :
हिन्दी मे अनेक शब्द संस्कृत से सीधे आए हैं और आज भी उसी रूप मे प्रयोग किए जा रहे हैं ।
जैसे : अग्नि , वायु, माता, पिता, प्रकाश, पत्र, सूर्य, तीर्थ , दंड, ज्येष्ठ, दु:ख, दक्षिण, तिलक आदि
तत्भव शब्द और उनके उदाहरण :
हिन्दी मे अनेक शब्द एसे निकले हैं जो निकले तो संस्कृत से ही है , पर प्राकृत, अपभ्रंश, पुरानी हिन्दी से गुजरने के कारण बहुत बदल गए हैं ।
उदाहरण :
संस्कृत प्राकृत हिन्दी
उज्ज्वल उज्जल उजला
कर्पूर कपूर कपूर
संध्या संझा साँझ
हस्त हत्थ हाथ
देशज / देशी शब्द
जो शब्द क्षेत्रीय प्रभाव के कारण परिस्थिति व आवश्यकतानुसार बनकर उन क्षेत्र के लोगों द्वारा प्रचलित कर दिये गए हैं , देशज या देशी शब्द कहलाते हैं इन शब्दों के मूल स्थान का पता नहीं चलता ।
जैसे : थैला, गड़बड़, पेट, खिड़की, अंटा, चसक, चिड़िया, जूता, ठेठ, ठुमरी, तेंदुआ, फुनगी, कलाई, पगड़ी, लोटा, टांग, ठेठ आदि ।
विदेशज / विदेशी / आगत शब्द
नाम से ही जाहिर है ये शब्द विदेशी मूल के होते हैं अरथा अन्य देश की भाषा से आए शब्द विदेशज कहलाते हैं ।
जैसे ज्यों का त्यों अपनाये गए शब्द : कंपनी , ऑर्डर, लेट, कैंप, प्लेट, क्रिकेट आदि
हिंदीकरण करके अपनाए गए शब्द : ऑफिसर > अफसर , लैनटर्न > लालटेन, हॉस्पिटल > अस्पताल, कैपटैन > कप्तान आदि
भाषा और उनके प्रचलित शब्द
| भाषा | प्रचलित शब्द |
|---|---|
| अरबी | अजीब, अक्ल, आदमी, औरत , अदालत, तारीख, मुकदमा, जिक्र, दुकान, जवाब, शराब, इनाम, कब्र, आखिर, असर, मुसाफिर, दुनिया, तकदीर, जूलूस, किस्मत, यतीम, फैसला, इज्जत आदि |
| फारसी | चालाक, सरकार, उस्ताद, गिरफ्तार, जिंदगी, जादू, कमीना, सरदार, हफ्ता, हजार, खाक, नापाक, लेकिन, मजदूर, कमीना, गवाह, तेज, जागीर, बुखार, तबाह, कारीगर, शादी, खामोश, दरबार आदि |
| अँग्रेजी | अपील, मजिस्ट्रेट, पुलिस, औपरेशन, मलेरिया, स्वेटर, हैट, कोट, कालर, लारी, पोस्टकार्ड, क्लर्क, पेपर, प्लेग, कोलरा, होर्निया, जम्पर, कलक्टर, टोफ़्फ़ी, पतलून, कप, टोस्ट, स्कूटर, पार्सल, रेल आदि |
| तुर्की | उर्दू, बहादुर, कुर्ता, गलीचा, तोप, ताश, लाश, खच्चर, चेचक, गनीमत, बारूद, तोपची, चम्मच, चकमक, सौगात, बीबी, चेचक, सुराग बावर्ची, बेगम, कुली, काबू, चाकू, दारोगा, तमगा आदि |
| पश्तो | पठान, मटरगश्ती, गुंडा, तड़ाक, पटाखा, अटकल, बाड़, भड़ास, टसमस, चख-चख, डेरा, नहस, खर्राटा |
| पुर्तगाली | अनन्नास, तौलिया, काज, काफी, गमला, पादरी, फीता, बाल्टी, मिस्त्री, संतरा, चाबी, कमरा, इस्पात, कमीज, कर्नल, आलमारी, आलपीन, काफी, काज, गोदाम, बोतल आदि |
| फ्रांसीसी | काजू, कूपन, बिगुल, कारतूस, कर्फ़्यू, अंग्रेज़ |
| डच | तूरूप (ताश मे), बम (तांगे का), आदि । |
| रूसी | रूबल, जार, स्पूतनिक, वोड्का, मिग |
| चीनी | चाय, लीची, चीकू, चीनी आदि |
| जापानी | रिक्शा, सायोनारा आदि । |
संकर शब्द
दो भिन्न स्रोतों से आए शब्दो के मेल से बने शब्द संकर शब्द कहलाते हैं –
उदाहरण :
छाया (संस्कृत) + दार (फारसी) = छायादार
पान (हिन्दी) + दान (फारसी) = पानदान
रेल (अँग्रेजी) + गाड़ी (हिन्दी) = रेलगाड़ी
सील (अँग्रेजी) + बंद (फारसी) = सीलबंद
2. रचना/बनावट के आधार पर
रचना के आधार पर शब्द तीन प्रकार के होते हैं –
i) रूढ = रूढ़ियों से चले आ रहे शब्द जिन शब्दों के सार्थक खंड न हो सके और जो अन्य शब्दों के मेल से न बने हों उन्हे रूढ कहते हैं
ii) यौगिक = यौगिक का अर्थ है – योग से बना हुआ । दो शब्दो के मेल से बने शब्द यौगिक कहलाते हैं ।
iii) योगरूढ़ = ये शब्द भी यौगिक होते हैं लेकिन इनका अलग सा अर्थ हो जाता है ।
रूढ शब्द के उदाहरण :
इन्हे मौलिक या अयौगिक शब्द भी कहते हैं
उदाहरण : चावल, चावल शब्द के खंड नहीं हो सकते इसलिए यह रूढ शब्द है ।
दिन, घर, मुंह, घोड़ा, खाना, पीना, पान, पैर, हाथ, सिर, कल, चल, कुर्सी, मेज, रोटी, किताब, घास, पशु, देश, लम्बा, छोटा, मोटा, नमक, पल, पेड़, तीर आदि ।
यौगिक शब्द के उदाहरण :
यौगिक का अर्थ है : मेल से बना हुआ , जो शब्द दो या दो से अधिक शब्दो के मेल से बनता है , उसे यौगिक शब्द कहते हैं ।
उदाहरण : विज्ञान (वि + ज्ञान), सामाजिक (समाज + इक), विधालय (विधा का आलय), राजपुत्र (राजा का पुत्र) आदि ।
यौगिक शब्दों की रचना तीन प्रकार से होती है – उपसर्ग से, प्रत्यय से और समास से
योगरूढ़
वे शब्द जो यौगिक तो होते हैं, परंतु जिनका अर्थ रूढ (विशेष अर्थ) हो जाता है । योगरूढ़ शब्द कहलाते हैं । यौगिक होते हुये भी ये शब्द एक इकाई हो जाते हैं अर्थात ये सामान्य अर्थ को प्रकट न कर विशेष अर्थ को प्रकट करते हैं ।
उदाहरण
पीताम्बर (श्रीकृष्ण के लिए), जलज (कमल के लिए), लंबोदर (गणेश जी के लिए), दशानन (रावण के लिए), नीलकंठ (शिव के लिए), गिरधारी, दशरथ, हनुमान, लालफ़ीताशाही, चारपाई3) रूप और प्रयोग के आधार परप्रयोग के आधार पर शब्द दो प्रकार के होते हैं –
i) विकारी शब्द
वे शब्द जिनमे लिंग, वचन व कारक के आधार पर मूल शब्द का रूपान्तरण हो जाता हैं उन्हे विकारी शब्द कहते हैं ।
जैसे –
लड़का पढ़ रहा है । (लिंग परिवर्तन) लड़की पढ़ रही है ।
लड़का दौड़ रहा है । (वचन परिवर्तन) लड़के दौड़ रहे हैं ।
लड़के के लिए आम लाओ । (कारक परिवर्तन) लड़को के लिए आम लाओ ।
संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, एवं क्रिया शब्द विकारी शब्द हैं ।
संज्ञा = ब्राह्मण, जयचंद, पटना, हाथ, पाँव, लड़का, लड़की, किताब, पुलिस, सफाई
सर्वनाम = मैं, तू, वह, यह, इसे, उसे, जो, जिसे, कौन, क्या
विशेषण = अच्छा, बुरा, नीला, पीला, भारी, मीठा
क्रिया = खेलना, कूदना, सोना, जागना, लेना, देना, खाना, पीना, जाना
ii) अविकारी शब्द
जिन शब्दों का प्रयोग मूल रूप मे होता है , और लिंग, वचन व कारक के आधार पर उनमे कोई परिवर्तन नहीं होता
अर्थात जो शब्द हमेशा एक से रहते हैं, वे अविकारी शब्द कहलाते हैं ।
उदाहरण : आज, मे, और, कल, परंतु, राम राम , कैसे , क्यों
सभी प्रकार के अव्यय शब्द अविकारी शब्द होते हैं ।
क्रिया विशेषण अव्यय = आज, कल, अब, परसों, यहाँ, वहाँ, उधर
संबंध बोधक अव्यय = में, से, पर, के ऊपर, के नीचे, से आगे
समुच्चयबोधक अव्यय = और, परंतु, या, इसलिए, तो, यदि, क्योंकि
विस्मयादिबोधक = आहा !, हा !, हाय !, ओह !
4. अर्थ के आधार पर
अर्थ के आधार पर शब्द चार प्रकार के होते हैं –
i) एकार्थी शब्द :
जिन शब्दों का केवल एक ही अर्थ होता है, एकार्थी शब्द कहलाते हैं ।
जैसे = गंगा, पटना, जर्मन, राधा आदिएसे शब्द मुख्यतः व्यक्तिवाचक संज्ञा के ही होते हैं
ii) अनेकार्थी शब्द
जिन शब्दों के एक से अधिक अर्थ होते हैं अनेकार्थी शब्द कहलाते हैं
जैसे
हार = गले की माला, पराजय
कनक = सोना, धतूरा
कर = हाथ, टैक्स
iii) समानार्थी / पर्यावाची शब्द :
हिन्दी भाषा मे अनेक शब्द एसे हैं जो समान अर्थ देते हैं, उन्हे समानार्थी या पर्यायवाची शब्द कहते हैं।जैसे :
आकाश = नभ, गगन, आसमान
सूर्य = रवि, भानु, भास्कर
बादल = मेघ, जलद, वारिद,
फूल = पुष्प, सुमन, प्रसून
iv) विपरीतार्थी/विलोम शब्द :
जो शब्द विपरीत अर्थ का बोध कराते है, विपरीतार्थी या विलोम शब्द कहलाते हैं ;जैसे –
| शब्द | विलोम शब्द |
|---|---|
| जय | पराजय |
| सच | झूठ |
| पाप | पुण्य |
| दिन | रात |
तत्सम तथा तद्भव शब्द
| तत्सम | ततभव |
|---|---|
| अज्ञान | अजान |
| अनार्य | अनाड़ी |
| अगणित | अनगिनत |
| अंधकार | अँधियारा |
| एला | इलायची |
| कर्पूर | कपूर |
| कदली | केला |
| गोधूम | गेंहू |
| घोटक | घोड़ा |
| क्षत्रिय | खत्री |
| जीर्ण | जीरन |
| ज्येष्ठ | जेठ |
| तिलक | टीका |
| दीपावली | दिवाली |
| धरित्रि | धरती |
