वीर जसवंत सिंह रावत का जन्म 19 अगस्त 1941 को उत्तराखंड के ग्राम-बाड्यूं ,पट्टी-खाटली,ब्लाक-बीरोखाल, जिला-पौड़ी गढ़वाल में हुआ था।
पिता गुमान सिंह रावत
माता का नाम लीलावती था।
शिक्षा गोरखा मिलिट्री स्कूल देहरादून
16 अगस्त, 1960 को चौथी गढ़वाल रायफल लैन्सडाउन में भर्ती हुए ।
उनकी ट्रेनिंग के समय ही चीन ने भारत के उत्तरी सीमा पर घुसपैठ कर दी ।
ट्रेनिग पूरी होते ही चीनी आक्रमण के समय अरुणाचल प्रदेश में पोस्टिंग ।
नूरानाग युद्ध में 72 घंटे तक दुश्मनों का सामना करते हुए शहीद हो गए (17 nov 1962 )।
उनके नाम से नूरानांग में जसवंतगढ़ नाम का बड़ा स्मारक बनाया गया है। यहां शहीद के हर सामान को संभालकर रखा गया है।
हीरो ऑफ़ नेफ़ा जसवंत सिंह रावत को मरणोपरान्त ‘महावीर चक्र’ प्रदान किया गया. सेना द्वारा उनकी याद में हर वर्ष 17 नवम्बर को ‘नूरानांग दिवस’ मनाकर अमर शहीद को याद करती है ।
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
जसवंत सिंह अपने फौजी साथियों में बाबा के नाम से लोकप्रिय थे ।
मरने के बाद भी प्रमोशन और छुट्टी
उनको मृत्यु के बाद भी प्रमोशन मिलता है। राइफलमैन के पद से वह प्रमोशन पाकर मेजर जनरल बन गए हैं।
अब भी करते हैं सीमा की रक्षा
सेना के जवानों का मानना है कि अब भी जसवंत सिंह की आत्मा चौकी की रक्षा करती है।
बायॉपिक
देश के जांबाज सैनिक जसवंत सिंह रावत के जीवन पर अविनाश ध्यानी ने एक फिल्म भी बनाई है जिसका नाम 72 आर्स मार्टियार हू नेवर डाइड (72 Hours Martyr Who Never Died) है।
पिता गुमान सिंह रावत
माता का नाम लीलावती था।
शिक्षा गोरखा मिलिट्री स्कूल देहरादून
16 अगस्त, 1960 को चौथी गढ़वाल रायफल लैन्सडाउन में भर्ती हुए ।
उनकी ट्रेनिंग के समय ही चीन ने भारत के उत्तरी सीमा पर घुसपैठ कर दी ।
ट्रेनिग पूरी होते ही चीनी आक्रमण के समय अरुणाचल प्रदेश में पोस्टिंग ।
नूरानाग युद्ध में 72 घंटे तक दुश्मनों का सामना करते हुए शहीद हो गए (17 nov 1962 )।
उनके नाम से नूरानांग में जसवंतगढ़ नाम का बड़ा स्मारक बनाया गया है। यहां शहीद के हर सामान को संभालकर रखा गया है।
हीरो ऑफ़ नेफ़ा जसवंत सिंह रावत को मरणोपरान्त ‘महावीर चक्र’ प्रदान किया गया. सेना द्वारा उनकी याद में हर वर्ष 17 नवम्बर को ‘नूरानांग दिवस’ मनाकर अमर शहीद को याद करती है ।
अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
जसवंत सिंह अपने फौजी साथियों में बाबा के नाम से लोकप्रिय थे ।
मरने के बाद भी प्रमोशन और छुट्टी
उनको मृत्यु के बाद भी प्रमोशन मिलता है। राइफलमैन के पद से वह प्रमोशन पाकर मेजर जनरल बन गए हैं।
अब भी करते हैं सीमा की रक्षा
सेना के जवानों का मानना है कि अब भी जसवंत सिंह की आत्मा चौकी की रक्षा करती है।
बायॉपिक
देश के जांबाज सैनिक जसवंत सिंह रावत के जीवन पर अविनाश ध्यानी ने एक फिल्म भी बनाई है जिसका नाम 72 आर्स मार्टियार हू नेवर डाइड (72 Hours Martyr Who Never Died) है।