कालसी उत्तराखंड में देहरादून जनपद के चकराता के पास स्थित अति महत्वपूर्ण एतिहासिक एवं पुरातात्विक स्थल है ।

यहाँ से प्राप्त शिलालेख एवं अन्य पुरातात्विक सामग्री का न केवल उत्तराखंड के इतिहास वरन भारत के प्राचीन इतिहास को समझने हेतु विशेष महत्व है ।

यह स्थान यमुना और टोंस नदी के संगम पर स्थित है ।

इस स्थल से बुद्धोंत्तर युग से ईस्वी सदी तक के साक्ष्य प्राप्त हुये हैं ।

कालसी मे मौर्यकालीन प्रतापी शासक अशोक के शिलालेख प्राप्त हुये हैं ।

यह शिलालेख 14 विभिन्न लेखों का एक समूह है ।

इनमे अशोक की धम्म नीति, उसके द्वारा किए गए जन उपयोगी कार्यों, धम्म महामात्रों की नियुक्ति

एवं उनको उसके द्वारा दिये गए निर्देश, कलिंग युद्ध का उल्लेख , प्रजा को धार्मिक एवं सचरित्र जीवन व्यतीत करने के प्रवचन अशोक की सहिष्णुता की नीति इत्यादि को उत्कीर्ण किया गया है ।

अशोक ने अपने शिलालेखों मे पशुहत्या तथा उत्सव, समारोहों पर स्पष्ट रूप से प्रतिबंध लगाया है ।

अपने शिलालेखों के द्वारा अशोक अपने प्रजा को सांप्रदायिकता छोड़ परस्पर सौहाद्रयता बनाए रखने का भी निवेदन करता है ।

अशोक के शिलालेख के अतिरिक्त इस स्थल के एक ईंट निर्मित वेदी भी मिली है जिसमे संस्कृत के पद उत्कीर्ण है ।

यह वेदी 300 ईस्वी के शासक शीलवर्मन के चौथे अश्वमेघ के स्थल की ओर संकेत करती हैं ।

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