कटारमल अल्मोड़ा नगर से 12 किमी दूरी पर स्थित है । यहाँ 11वीं – 12वीं सदी का सूर्य मंदिर निर्मित है ।

इस मंदिर को बड़ादित्य मंदिर के नाम से भी जाना जाता है ।

मानस खंड में इस मंदिर का उल्लेख मिलता है । जिसके अनुसार “वटाशिला मध्ये बड़ादित्येती गीयते”

यहाँ प्रमुख मंदिर के अतिरिक्त अन्य अनेक छोटे छोटे मंदिर भी हैं ।

इन मंदिरों का निर्माण 14वीं – 15वीं विक्रम संवत के आस पास माना जाता है ।

इस मंदिर के द्वार कला की दृष्टि से भी अत्यधिक सुंदर थे । जिन्हे सुरक्षा के कारण यहाँ से हटा लिया गया है ।

इन द्वारों पर शैव-वैष्णव देवों की आकृतियाँ मंगल घट आदि उत्कीर्ण हैं ।

यहाँ से एक काष्ठ स्तम्भ भी प्राप्त हुआ है । इसे 7वीं सदी का माना जाता है ।

इस स्तम्भ में पुरुष, नाग वेष्ठित, पूर्णघट उत्कीर्ण है ।

छोटे – छोटे परिवार मंदिरों के द्वारों पर द्वारपाल तथा घट धारण किए स्त्रियाँ उत्कीर्ण हैं ।

इन परिवार समूहों के मंदिरों की छत के आंतरिक भाग में चक्र भी उत्कीर्ण है ।

मंदिर के पाषाणों को जोड़ने के लिए छोटी-छोटी लौह पट्टिकाओं का भी प्रयोग किया है ।

मुख्य मंदिर का ऊपरी भाग ध्वस्त हो चुका है । मंदिर से कुछ दूरी पर नौला भी है जिसमें अभी भी जल उपलब्ध है ।

सुरक्षा की दृष्टि से परिवार मंदिरों की मूर्तियों को मुख्य मंदिर के गर्भ गृह में रखा गया है ।

मुख्य मंदिर में भूरे रंग के पाषाण से निर्मित कमलासन मुद्रा में बूटधारी सूर्य देवता की मूर्ति स्थापित है ।

कटारमल मंदिर का निर्माण कत्यूरी राजा कटारमल्ल द्वारा किया गया था ।

मंदिर का निर्माण स्थानीय चट्टान को काटकर लाये गए पाषाण से किया गया है ।

नायक जाति

कटारमल गाँव में चंद काल में नायक जाति के लोग भी निवास करते थे ।

इस जाति के लोग अपनी पुत्रियों से वेश्यावृति करवाते थे ।

20वीं सदी के प्रारम्भिक दशकों में राष्ट्रवादी जागरूक नेताओं एवं प्रगतिशील नायक जाति के लोगों के प्रत्यनों से

नायक जाति में प्रचलित वेश्यावृति समाप्त हो गयी थी ।

इस प्रकार यह मंदिर उत्तराखंड के इतिहास के संबंध मे भी सूचना प्रदान करता है ।

रोहेलों द्वारा मंदिर को क्षति पहुंचाई गई थी ।

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