मसूरी की स्थापना सन 1823 में एक अंग्रेज़ द्वारा कैमल्स बैक पर एक छोटी-सी झोपड़ी बनाने से की गई थी ।

समुद्र तल से औसतन 1880 मीटर की ऊंचाई पर स्थित मसूरी भारत के प्रमुख पर्वतीय नगरों तथा

पर्यटन केन्द्रों में महत्वपूर्ण स्थान रखता है ।

इसे “पहाड़ों की रानी” भी कहा जाता है ।

यहाँ की सुखद जलवायु एवं प्राकृतिक सौन्दर्य के कारण ही एक अंग्रेज़ मे. हियर्से ने

1811 ईस्वी मे एक स्थानीय जमीदार से खरीदा था ।

जिसने इसे 1812 में ईस्ट इंडिया कंपनी को बेच दिया था ।

सन 1828 को लंढ़ौर बाजार का निर्माण प्रारम्भ हुआ तथा

1832 में भारत के सर्वेयर जनरल कर्नल जॉर्ज एवरेस्ट ने यहाँ अपना कार्यालय खोला ।

1926 से 1931 के मध्य इसे देहरादून से पक्की सड़क द्वारा जोड़ा गया ।

1901 में यहाँ की कुल जनसंख्या 4471 थी जिसमे से 78 प्रतिशत अंग्रेज़ थे ।

स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय अंग्रेजों, नवाबों तथा कई राजकुमारों ने भी यह स्थान छोड़ दिया ।

1 सितम्बर 1959 को यहाँ पर आई ए एस ट्रेनिंग स्कूल दिल्ली तथा आई ए एस स्टाफ कॉलेज शिमला को मिलाकर

नेशनल एकेडेमी ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन या “राष्ट्रीय प्रशासनिक अकादमी” की स्थापना की गई ।

यहाँ कुलड़ी बाजार, लाइब्रेरी बाजार तथा लंढ़ौर बाजार प्रमुख बाजार हैं ।

यहाँ पर 150 से अधिक होटल तथा अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त शिक्षण संस्थाएं हैं ।

1970 में लाइब्रेरी बाजार से गनहिल तक रज्जु मार्ग का निर्माण किया गया ।

सर्दियों में यहाँ दिखने वाली विंटरलाइन पर्यटकों को खूब भाति है ।

यहाँ के दर्शनीय स्थल लालटिब्बा, गनहिल तथा म्युनिसिपल गार्डन हैं ।

इसे नगर पालिका का दर्जा प्राप्त है ।

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