यह सिद्धान्त वेगनर के महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त का विकास माना जाता है ।
पुराचुम्बकत्व व सागर-नितल-प्रसरण के प्रमाणों से यह स्पष्ट हो गया था कि महाद्वीप ही नहीं वरन महासागरीय
नितल का भी प्रसार होता है । उसके बाद यह संकल्पना विकसित हुई । इस सिद्धान्त का प्रतिपादन 1962 में हैरी हेस
ने किया किन्तु इसकी वैज्ञानिक व्याख्या का श्रेय मॉर्गन को दिया जाता है ।
मैकेंजी, पार्कर और होम्स इस सिद्धान्त के प्रमुख समर्थक थे । इस सिद्धान्त के अनुसार पृथ्वी कि भू-पर्पटी अनेक छोटी-बड़ी प्लेटों में
विभक्त है । ये प्लेटें 100 किमी कि मोटाई वाले स्थलमंडल (लिथोस्फ़ेयर) से निर्मित होती है एवं दुरबलमंडल (एस्थेनोस्फेयर)
पर तैरती रहती है जो कि पूर्णतः सीमा (SiMa) का बना है एवं अपेक्षाकृत अधिक घनत्व का होता है ।
प्लेटीय संचलन का मुख्य कारण एस्थेनोस्फेयर में रेडियोसक्रिय पदार्थों कि उपस्थिति के कारण तापीय संवहन तरंगों की
चक्रीय-संचरण की प्रक्रिया का होना है । जिसके संबंध में होम्स ने व्याख्या दी है ।
नासा के अनुसार प्लेटों की संख्या 100 तक बताई गई है परंतु अभी तक मात्र छह बड़ी तथा 20 छोटी प्लेटों को पहचाना गया है ।
छह बड़ी प्लेटे इस प्रकार हैं ।
अमेरिकी प्लेट
अफ्रीकी प्लेट
यूरेशाई प्लेट
इंडो-ऑस्ट्रेलियाई प्लेट
प्रशांत प्लेट
अंटार्कटिका प्लेट
छोटी प्लेटो में नाजका प्लेट (पूर्वी प्रशांत प्लेट), कोकोस प्लेट, अरेबियन प्लेट, फिलिपाइन प्लेट, स्कोशिया प्लेट व कैरेबियन प्लेट
जुआन-डि-फूका प्लेट, सोमाली प्लेट, बर्मी प्लेट मिश्रित प्रकार की है ।