केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा जारी सूचना के अनुसार देश मे केरल के बाद उत्तराखंड की जैव विविधता पर सबसे ज्यादा खतरा है । उत्तराखंड की 31 (15 वन्य जन्तु व 16 पादप) प्रजातियाँ विलुप्ति की कगार पर हैं । इनमे मुख्य हैं कस्तुरी मृग, बारहसिंगा, सफ़ेद पीठ वाले गिद्ध, लाल सिर वाले गिद्ध, माउंटेन क्वेल , भूरे भालू , ऊदबिलाव आदि ।

वन्य जीव बोर्ड

वन्य जीव (सरंक्षण) अधिनियम 1972 की धारा (6) मे वन्य जीव प्रबंधन के साथ-साथ जन मानस की अकाक्षाओं एवं अभिरुचि को जोड़ने के उद्देश्य से राज्य वन्य जीव बोर्ड के गठन की व्यवस्था है । मुख्यमंत्री की पदेन अध्यक्षता वाला यह बोर्ड सरंक्षित क्षेत्र स्थापित करने हेतु वन्य क्षेत्रों का चयन, वन्य जीव सुरक्षा एवं सरंक्षण की नीति का निर्धारण एवं अनुसूचियों से संबन्धित प्रकरण का निर्धारण करता है ।

कुछ वन्य जीवों के लिए विशेष प्रबंध

1972 मे केदारनाथ वन्य जीव विहार की स्थापना मुख्य रूप से कस्तूरी मृगों के सरंक्षण के लिए की गई थी ।


1977 मे महरूढ़ी मे कस्तूरी मृग अनुसंधान केंद्र की स्थापना की गई ।


1980 – 81 के कस्तूरी मृग फार्म योजना के तहत 1982 मे चमोली के कंचुला खरक मे एक कस्तूरी मृग प्रजनन एवं सरंक्षण केंद्र की स्थापना की गई ।


1986 मे कस्तूरी मृगों को विशेष रूप से ध्यान मे रखते हुये पिथोरागढ़ मे असकोट कस्तूरी मृग अभ्यारण की स्थापना की गई ।


1991-1992 मे tiger watch योजना शुरू की गई ।


हिम तेंदुओं की सुरक्षा के लिए 1990-1991 मे snow leopard योजना आरंभ की गई ।

उत्तराखंड विज्ञान एवं तकनीकी परिषद के अनुसार राज्य की जैव विविधता में 1496 सूक्ष्म जीवों, 6598 पौधों की प्रजातियां, 2575 औषधीय और 2351 जंतुओं की प्रजातियां हैं। इनमें से पौधों की 35, औषधीय पौधों की 64 और जंतुओं की 101 प्रजातियां विलुप्त या संकटग्रस्त श्रेणी में शामिल हैं।
जुलोजिकल सर्वे ऑफ इंडिया के सर्वे में कार्बेट और राजाजी नेशनल पार्कों के बीच स्थित वाणगंगा में कछुआ, उत्तरकाशी के हर्षिल में छिपकली, अल्मोड़ा के शीतलाखेत और चंपावत के बनबसा में कनखजूरा, निमेटोड्स, तितलियों की 22 नई प्रजाति, चमोली के नंदादेवी वायोस्फेयर रिजर्व में औषधीय पादपों की नई प्रजातियां खोजी गईं हैं। 

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