नॉर्मल गिल ने बैलोडोना की खेती 1903 से ही शुरू कर दी थी । उस समय बैलाडोना का (एटारोपा बैलाडोना), की खेती स्थानीय हकीम औषधि हेतु करते थे । इसके बीज को मई मे बोने से जुलाई मे 12 फीट ऊंचा पौधा मिलता था । आशा थी कि यह प्रजाति 8000 से 9000 फीट कि ऊंचाई वाले क्षेत्रों मे अच्छी पनपेगी । गिल ने कुमाऊँ मे बोने हेतु एटरोपा बैलाडोना का बीज विदेशों से मंगा कर नैनीताल तथा चौबटिया मे बोया

1911-1912 की वार्षिक रिपोर्ट मे नैनीताल कचहरी गार्डन मे एक साल वाली जड़ का उत्पादन 3570 पौंड प्रति एकड़ था और इसमे एल्क्लोयड की मात्रा 0.4 थी  दो वर्ष की जड़ों का उत्पादन 3545 पौंड प्रति एकड़ था और एल्क्लोयड की मात्रा 0.45 थी ।  गिल ने बड़ी मात्रा मे बैलाडोना की खेती की थी ।

1918-19 की रिपोर्ट से ज्ञात होता है की चौबटिया मे छ: एकड़ भूमि से बैलाडोना की 11 टन सूखी पातियाँ तथा 2 टन जड़ों का उत्पादन हुआ और यहाँ के बैलाडोना मे एल्कोलोयड की मात्रा 0.59 थी । लंदन के क्रोफोर्ड को मार्केट मे चौबटिया की अन्य देशों से आए बैलाडोना की अपेक्षा दोगुनी कीमत मिली ।

नॉर्मन गिल ने चौबटिया गार्डन मे ही बैलाडोना की पतियों को सुखाने के लिए एक प्लांट भी लगाया। 1918 -19 मे All India Exhibition कलकत्ता मे इस बगीचे को जड़ी -बूटियों तथा जैम-जैली को दो गोल्ड मेडल मिले ।

गिल की मृत्यु के बाद चौबटिया उधान संकटों से घिर गया । समुचित देखरेख न होने के कारण उधान अनिश्चितता के कगार पर आ गया । उधान घाटे मे चलने लगा । सरकार ने पहले जैम factory को बंद किया । इसका असर बैलाडोना की लाभकारी खेती पर भी पड़ा ।

बेलाडोना ( एट्रोपा बेलाडोना ) सोलानासी परिवार का एक पौधा है। यह फार्माकोलॉजी में सबसे अधिक उपयोग की जाने वाली जड़ी-बूटियों में से एक है और इसमें एक एंटीस्पास्मोडिक और ब्रोन्कोडायलेटर क्रिया है ।

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