युनेस्को द्वारा अब तक उत्तराखंड मे नंदादेवी बायोस्फियर और विश्व प्रसिद्ध ‘फूलों की घाटी’ को प्राकृतिक विरासत , जबकि चमोली जनपद के सलूड़ और डूंगरा गावों के लोक उत्सव राममाण को विश्व की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर की श्रेणी मे रखा गया है । इसके अलावा वर्ष 2014 मे युनेस्को द्वारा देहारादून स्थित वन्य जीव संस्थान मे विश्व का प्रथम ‘प्राकृतिक विरासत केद्र’ स्थापित किया है जबकि वर्ष 2017 मे कुम्भ पर्व को ‘मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर’ की श्रेणी मे शामिल किया है ।

नंदादेवी बायोस्फियर रिजर्व

वनस्पति और जैव विविधता के लिए प्रसिद्ध नंदादेवी बायोस्फियर रिजर्व का अधिकांश भाग चमोली जनपद मे स्थित है । यह बायोस्फियर रिजर्व हिम तेंदुआ, कस्तुरी मृग , भरल , मोनाल , और इसी तरह के अनेक दुर्लभ पशु पक्षियों के साथ ही हजारों प्रकार की वनस्पति के लिए प्रसिद्ध है । 6 नवम्बर 1982 को सरकार ने इसे राष्ट्रिय पार्क घोषित किया था, जबकि 2005 मे युनेस्को ने इस पार्क को विश्व विरासत की सूची मे शामिल किया ।

फूलों की घाटी

चमोली जपद मे हेमकुंड साहिब के निकट सेकड़ों प्रजाति के फूलों की यह विस्तृत घाटी यहाँ आने वालों को सम्मोहित कर देती है । 1931 मे सबसे पहले एक अंग्रेज़ पर्वतारोही फ्रेंक एस0 स्माइथ अपने भटके हुये साथियों की तलाश मे यहाँ पाहुचा तो खूबसूरत जंगली फूलों के सागर को देखकर दंग रह गया । स्माइथ कुछ दिन इस घाटी मे रहने के बाद वापस इंग्लैंड लौटा, लेकिन 6 वर्ष बाद अपने सहयोगी वनस्पतिशास्त्री आर0 एल0 हाल्ड्स्वर्थ के साथ वापस लौटकर उसने यहाँ विलक्षण पादप विविधता पर “वैली ऑफ फ्लावर्स” नामक पुस्तक लिखी ।
घाटी की वनस्पति विविधता के सरंक्षण के उद्देश्य से सरकार ने वर्ष 1982 मे इसे राष्ट्रिय पार्क घोषीत किया । 1988 मे युनेस्को ने इसे विश्व विरासत की श्रेणी मे शामिल कर दिया ।

रम्माण

“रम्माण” उत्सव चमोली जनपद के विकासखंड जोशीमठ मे पेनखंडा पट्टी के सलूड़, डूंगरा, तथा सेलंग आदि गांवों मे हर वर्ष अप्रैल (बैशाक) के महीने मे आयोजित किया जाता है । रामायण से जुड़े प्रसंगों के कारण इस आयोजन को राममाण के नाम से जाना जाता है । राम से जुड़े प्रसंगो को लोक शैली मे प्रस्तुतीकरण, लोकनाट्य, स्वांग , देवयात्रा, परंपरागत पूजा-अनुष्ठान आदि आयोजन इस उत्सव मे होते रहते हैं ।
वर्ष 2008 मे इन्दिरा गांधी नेशनल सेंटर फॉर आर्ट्स ने दिल्ली मे रामायण अंकन , मंचन और वाचन विषय पर एक सम्मेलन आयोजित किया ।
इसमे राममाण को भी शामिल होने का अवसर मिला और इसकी प्रस्तुति को काफी सराहना मिली । 2 अक्टूबर 2009 को युनेस्को ने आबूधाबी मे हुई बैठक मे इस उत्सव को विश्व की अमूर्त सांस्कृतिक धरोहर घोषित कर दिया ।

देहारादून मे विश्व का प्रथम प्राकृतिक धरोहर केंद्र

देहारादून स्थित भारतीय वन्य जीव संस्थान मे युनेस्को की स्वीकृति के बाद विश्व प्राकृतिक धरोहर केंद्र की स्थापना की गई है । 29 अगस्त 2014 को तत्कालीन केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण राज्यमंत्री प्रकाश जावडेकर ने इस केंद्र का उदघाटन किया । इस केंद्र के माध्यम से विश्व के 50 देशों को प्राकृतिक धरोहरों के चिन्हिकरण , सरंक्षण आदि प्रशिक्षण दिया जाएगा । जिससे धरोहरों के सरंक्षण का कार्य सही तरीके से हो सकेगा । युनेस्को अभी तक विश्वभर मे 1007 स्थलों को प्राकृतिक विश्व धरोहर घोषित कर चुका है ।

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