4 अप्रैल 2016 को राज्यपाल के हस्ताक्षर के साथ ही उत्तराखंड में अपना पंचायतीराज अधिनियम लागू हो गया ।

भारत के संविधान के अनुच्छेद 200 के अंतर्गत “उत्तराखंड पंचायतीराज विधेयक-2016” को राज्य सरकार की ओर से विधानसभा में

प्रस्तुत किया गया । विधानसभा ने इस विधेयक को स्वीकृति के लिए राज्यपाल के पास भेज दिया था ।

इससे पहले उत्तराखंड में पंचायतीराज व्यवस्था उत्तर प्रदेश के कानून के अधीन चल रही थी ।

उत्तराखंड सरकार ने संविधान के 73वें संशोधन के आलोक में अपने पंचायतीराज अधिनियम में उत्तर प्रदेश के अधिनियमो को एकीकृत

त्रिस्तरीय पंचायतीराज व्यवस्था को इस नए अधिनियम के अंतर्गत किया है ।

इस अधिनियम के 6 भागों में 25 अध्याय और 194 धाराएँ शामिल की गई हैं ।

जिनमें जिला पंचायत, क्षेत्र पंचायत और ग्राम पंचायत के कार्यों एवं अधिकारों का विस्तार के वर्णन किया गया है ।

अध्याय I में अधिनियम के नाम के साथ अधिनियम से संबन्धित विभिन्न परिभाषाएँ दी गई है । अध्याय II से अध्याय 8 तक

ग्राम पंचायतों के गठन, निर्वाचन, कर्तव्य, अधिकार, निधि, संपति, आय के स्रोत आदि के बारे में है ।

अध्याय 9 से 15 तक में क्षेत्र पंचायतों की व्याख्या की गई है । जबकि अध्याय 16 से 23 तक में जिला पंचायतों की व्याख्या की गई है ।

अध्याय 24 में प्रकीर्ण उपबंध तथा अध्याय 25 में प्रकीर्ण प्रस्तुत किए गए हैं ।

अधिनियम के अनुसार पर्वतीय क्षेत्रों में कम से कम 500 की जनसंख्या और

मैदानी क्षेत्रों में 1000 की जनसंख्या पर ग्राम पंचायत का गठन किया जाएगा ।

पर्वतीय क्षेत्रों में ग्राम पंचायतों की अधिकतम जनसंख्या 2000 और मैदानी क्षेत्रों में 10,000 होगी, लेकिन यह भी निर्दिष्ट किया

गया है कि इस अधिनियम जनसंख्या की शर्त शामिल नहीं होगी और एसी ग्राम सभाएं यथावत बनी रहेगी ।

तीनों तरह की पंचायतों में चुनाव प्रत्यक्ष मतदान के तहत गोपनीय मताधिकार के अधीन होगा और प्रत्येक

वयस्क को मत देने का अधिकार प्राप्त होगा ।

तीनों पंचायतों को अपने-अपने अधिकार क्षेत्र में विकास के लिए अपने अधिकार क्षेत्र के तहत आय अर्जित करने का

अधिकार होगा । इस आय से अपने-अपने क्षेत्र में विकास कार्य करने होंगे ।