उत्तराखंड को पृथक राज्य बनाने की मांग सर्वप्रथम सन् 1938 में श्रीनगर में आयोजित राष्ट्रीय कांग्रेस के विशेष अधिवेशन में उठाई गयी। स्थानीय नेताओं की इस मांग को अधिवेशन की अध्यक्षता कर रहे जवाहर लाल नेहरू ने समर्थन दिया था।
सन् 1946 में हल्द्वानी में बद्रीदत्त पांडे की अध्यक्षता में हुये कांग्रेस के एक सम्मेलन में उत्तरांचल के पर्वतीय भू-भाग को एक विशेष वर्ग में रखने की मांग उठाई।
सन् 1950 में हिमांचल व उत्तरांचल को मिलाकर एक वृहद हिमालयी राज्य बनाने के उद्येश्य से पर्वतीय विकास जन समिति नामक संगठन का विकास नयी दिल्ली में किया गया था ।
1950 में पर्वतीय राज्य परिषद की स्थापना की गयी।
पृथक उत्तराखंड राज्य की मांग सर्वप्रथम सन् 1952 में भारत के कम्युनिस्ट पार्टी के तत्कालीन महासचिव पी सी जोशी नेभारत सरकार को ज्ञापन सौपकर उठाई।
सन् 1955 में फजल अली आयोग ने उ प्र के पुनर्गठन की बात इस क्षेत्र को पृथक राज्य बनाने के दृष्टिकोण से की थी। लेकिन उ प्र के नेताओं ने इसे स्वीकार नहीं किया।
सन् 1956 में राज्य पुनर्गठन प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्र के लिये अलग राज्य के विषय में विचार किया था।
सन् 1957 में टिहरी के पूर्व नरेश मानवेंद्र शाह ने पृथक राज्य के लिये आंदोलन छेड़ा था। जिसे 1962 में चीनी आक्रमण के कारण राष्ट्रीय हित के लिये वापस ले लिया गया।
सन् 1957 में योजना आयोग के उपाध्यक्ष टी टी कृष्णाचारी ने पहाड़ी क्षेत्रों की समस्याओं पर विशेष ध्यान देने का सुझाव दिया था।
सन् 1957 में उत्तराखंड राज्य परिषद् की स्थापना हुयी जो कुछ समय बाद टूट गयी।
24 व 25 जून 1967 में रामनगर में आयोजित सम्मेलन में पर्वतीय राज्य परिषद का गठन किया गया इसके अध्यक्ष दयाकृष्ण पांडे, उपाध्यक्ष गोविंद सिंह मेहरा और महासचिव नारायण दत्त सुंदरियाल थे।
सन् 1968 में ऋषि बल्लभ सुंदरियाल के नेतृत्व में दिल्ली में पृथक राज्य की मांग के लिये प्रदर्शन हुआ।
1969 में तत्कालीन प्रदेश सरकार ने इस क्षेत्र के विकास को ध्यान में रखते हुये पर्वतीय विकास परिषद गठन किया गया।
12 मई 1970 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने पहाड़ी जिलों के पिछड़ेपन व गरीबी को देखते हुये इस क्षेत्रों की पृथक प्रशासनिक ईकाई का सुझाव दिया था।
30 अक्टूबर 1970 को भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव पी सी जोशी ने कुमांऊ राष्ट्रीय मोर्चा का गठन किया और पृथक उत्तराखंड की मांग दुहराई।
सन् 1972 में नैनीताल में उत्तरांचल परिषद् का भी गठन किया गया।
सन् 1972 में उत्तरांचल परिषद् के कार्यकर्ताओं ने नई दिल्ली स्थित वोट क्लब पर धरना दिया।
सन् 1973 ई में इस परिषद ने दिल्ली चलो का नारा दिया। चमोली के विधायक प्रताप सिंह नेगी के नेतृत्व में बद्रीनाथ से वोट क्लब तक की पदयात्रा
की गयी।
1973 में पृथक पर्वतीय राज्य परिषद की स्थापना की गयी।
सन् 1976 में उत्तराखंड युवा परिषद का गठन किया गया।
सन् 1979 में जनता पार्टी की सरकार के सांसद त्रेपन सिंह नेगी के नेतृत्व में उत्तरांचल राज्य परिषद की स्थापना की गयी और प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई को अलग राज्य की मांग के लिए एक ज्ञापन दिया गया।
सन् 1979 में ही 25 जुलाई को मसूरी में आयोजित पर्वतीय जन विकास सम्मेलन में उत्तराखंड क्रांति दल का गठन किया गया। इसके प्रथम अध्यक्ष कुमाऊ विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति डा देवीदत्त पंत बनाये गये।
सन् 1984 में ऑल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन ने राज्य की मांग को लेकर गढ़वाल में 900 किमी की साइकिल यात्रा के माध्यम से जन जागरूकता फैलाया।
1987 में उत्तराखंड क्रांति दल का विभाजन हो गया और दल की बागडोर युवा नेता काशी सिंह ऐरी के हाथ में आ गयी।
सन् 1987 में यू के डी उपाध्यक्ष त्रिवेंद्र पंवार ने राज्य की मांग को लेकर संसद में एक पत्र बम फेंका था।
सन् 1987 में ही भाजपा ने लालकृष्ण आडवाणी की अध्यक्षता में अल्मोंड़ा के पार्टी सम्मेलन में उ प्र के पर्वतीय क्षेत्र को अलग राज्य का दर्जा देने की मांग को स्वीकार किया गया और प्रस्तावित राज्य का नाम उत्तराखंड बजाए उत्तरांचल स्वीकार किया गया था।
30-31 मई 1988 को भाजपा के सोबन सिंह जीना की अध्यक्षता में उत्तरांचल उत्थान परिषद का गठन किया गया।
फरवरी 1989 में सभी संगठनों ने संयुक्त आंदोलन चलाने लिए उत्तरांचल संयुक्त संघर्ष समिति का गठन किया । इसके अध्यक्ष द्वारिका प्रसाद उनियाल चुने गये थे।
25 मई 1989 को उत्तराखंड संघर्ष वाहिनी व उत्तराखंड प्रगतिशील युवा मंच द्वारा देहरादून व हल्द्वानी में रेत रोको आंदोलन आयोजित किया गया था।
1990 में जसवंत सिंह बिष्ट ने उत्तराखंड कांति दल के विधायक के रूप में उ प्र विधानसभा में पृथक राज्य की पहला प्रस्ताव रखा।
वामपंथी लोगों द्वारा 1991 में उत्तराखंड मुक्ति मोर्चा का गठन किया गया था।
1991 के चुनावों में भाजपा ने पृथक राज्य की स्थापना को अपने घोषणा पत्र में शामिल किया।
जुलाई 1992 में उत्तराखंड कांति दल ने पृथक राज्य के संबंध में एक महत्वपूर्ण दस्तावेज जारी किया तथा गैरसैंड़ को प्रस्तावित राज्य की राजधानी घोषित कर दिया था।
इस दस्तावेज को यू के डी का पहला ब्लू प्रिंट माना गया।
1992 में काशी सिंह ऐरी ने गैरसैंण में प्रस्तावित राजधानी की नींव डाली और उसका नाम चंद्रनगर घोषित किया गया था।
सिंह यादव ने रमाशंकर कौशिक की अध्यक्षता में उत्तराखंड राज्य की संरचना व राजधानी पर विचार करने के लिए कौशिक समिति का गठन किया ।
कौशिक समिति ने मई 1994 में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की।
मुलायम सिंह यादव सरकार ने कौशिक समिति की सिफारिशों को 21 जून 1994 को स्वीकार कर लिया और 8 पहाड़ी जिलों को मिलाकर पृथक
उत्तराखंड राज्य के गठन से संबंधित प्रस्ताव को विधानसभा में सर्वसम्मति से पास कर केंद्र के पास भेज दिया।
1994 के जून माह में मुलायम सिंह यादव सरकार ने सरकारी नौकरियों में एवं शिक्षण संस्थाओं में आरक्षण की नयी व्यवस्था लागू की जिसमें कुल सीटों के 50 प्रतिशत सीट ( 27% OBC,21% SC, 2%ST) आरक्षित होने की व्यवस्था थी।
इस आरक्षण नीति के खिलाफ पौड़ी के वयोवृद्व नेता इंद्रमणि बड़ौनी ने आमरण अनशन किया था।
नोट:- इंद्रमणि बड़ौनी को उत्तराखंड का गांधी कहा जाता है।
8 अगस्त 1994 को पौड़ी में जीत बहादुर गुरंग शहीद हुये ।
1 सितंबर 1994 को पृथक राज्य की मांग हेतु शांतिपूर्वक रैली में शामिल आंदोलनकारियों पर खटीमा में पुलिस ने गोलियां चलाई जिसमें 8 लोग मारे गये।
1 प्रताप सिंह 2 भूवन सिंह 3 सलीम अहमद 4 भगवान सिंह सिरोला 5 धर्मानंद भट्ट 6 गोपीचंद 7 परमजीत सिंह 8 रामपाल
इस घटना के दूसरे दिन 2 सितंबर को मसूरी में झूलाघर पर विरोध प्रकट करने के लिए आयोजित रैली में उत्तेजित लोगों ने पुलिस पर हमला कर दिया। इस घटना में पुलिस उपाधीक्षक उमाकांत त्रिपाठी मारे गये।
इसमें 1 राम सिंह बंगारी 2 धनपत सिंह 3 मदनमोहन ममगाई 4 बलवीर सिंह नेगी 5 उमाशंकर त्रिपाठी 6 जेठ सिंह 7 बेलमती चौहान 8 हंसा धनाई मारे गये। इनमें दो महिलायें हंसा धनाई व बेलमती चौहान भी मरी थी।
27 प्रतिशत आरक्षण के विरोध में 18 सितंबर 1994 को छात्र युवा संघर्ष समिति का गठन रामनगर में हुआ। इस सम्मेलन में 1 व 2 अक्टूबर को दिल्ली में प्रदर्शन करने का निर्णय लिया गया।
2 अक्टू को दिल्ली में आयोजित रैली में भाग लेने जा रहे आंदोलनकारियों पर मुजफरनगर (रामपुर तिराहा) में गोलियां चलाई गयी। जिसमें 6 लोगों की मृत्यु हुयी। 1 रवींद्र रावत 2 गिरीश कुमार भद्री 3 सत्येंद्र सिंह चौहान 4 सूर्यप्रकाश थपलियाल 5 राजेश लखेड़ा 6 अशोक कुमार कोशिव ।
3 अक्टूबर 1994 को इस घटना का देहरादून में विरोध किया गया जिसमें 4 लोग मारे गये।
1. राजेश रावत 2. दीपक वालिया 3. बलवंत सिंह जगवाण 4. जयानंद बहुगुणा ।
3 अक्टूबर 1994 को कोटद्वार में भी पृथ्वी सिंह बिष्ट व राकेश देवरानी शहीद हुये।
3 अक्टूबर 1994 को नैनीताल में प्रताप सिंह बिष्ट शहीद हुये।
इस कृत्य की कूर शासक की क्रूर शाजिश कहकर पूरे विश्व में निंदा हुयी।
26 जनवरी 1995 को गणतंत्र दिवस की परेड में सुरक्षा घेरे को पार कर कौशल्या डबराल व सुशीला बलूनी के नेतृत्व में 45 महिला व नवयुवकों का दल सक्रिय हुआ। राष्ट्रपति के भाषण के मध्य में जय उत्तराखंड के नारे लगाये गये ।
10 नवंबर 1995 को श्रीनगर स्थित श्रीयंत्र टापू पर आमरण अनशन पर बैठे आंदोलनकारियों पर पुलिस लाठीचार्ज में यशोधर बैंजवाल व राजेश रावत की मृत्यु हुयी ।
15 अगस्त 1996 को लाल किले की प्राचीर से तत्कालीन प्रधानमंत्री एच डी देवगौड़ा ने उत्तराखंड राज्य का निर्माण करने की घोषणा की।
1998 में राष्ट्रपति के माध्यम से उत्तराखंड राज्य संबंधी विधेयक उ प्र विधानसभा में भेजा गया।
इस विधेयक में कुल 26 संशोधन करने के बाद उ प्र सरकार ने पुनः केंद्र को भेज दिया जिसे भाजपा सरकार ने 22 दिसंबर को लोकसभा में पेश किया लेकिन सरकार के गिर जाने से पेश न हो सका।
27 जुलाई 2000 को उ प्र पुनर्गठन विधेयक 2000 लोकसभा में प्रस्तुत हुआ।
29 जुलाई को जार्ज कमेटी के सदस्यों ने पंतनगर का दौरा किया व उ सिन को प्रस्तावित राज्य में शामिल करने का निर्णय लिया।
1 अगस्त 2000 को उत्तरांचल विधेयक लोकसभा में व 10 अगस्त को राज्यसभा में पारित हुआ।
28 अगस्त को राष्ट्रपति के आर नारायण ने उ प्र पुनर्गठन विधेयक को अपनी मंजूरी प्रदान की।
9 नवंबर 2000 को 27 वें राज्य के रूप में उत्तरांचल राज्य का गठन हुआ।
देहरादून को इसकी अस्थायी राजधानी बनाया गया था।
दिसंबर 2006 में उत्तरांचल नाम परिवर्तन विधेयक 2006 संसद के दोनों सदनों में पारित करने के बाद 1 जनवरी 2007 से इसका नाम उत्तराखंड हो गया।
नोट:- सबसे पहले उत्तराखंड को पृथक राज्य बनाने की मांग 1938 में श्रीदेव सुमन ने की थी।
