उत्तराखंड की भाषा , जिसे प्रसिद्ध भाषाशास्त्री ,पाश्चात्य विद्वान सर जॉर्ज ग्रियर्सन ने ‘मध्य पहाड़ी भाषा’ नाम से संबोधित किया,
आदि प्राकृत , वैदिक एवं संस्कृत के अति निकट है , आदि आर्य भाषा के ध्वनि – समूह तथा संस्कृत की रूप संपति  इस ‘मध्य पहाड़ी भाषा’ मे पूर्णतः सुरक्षित है । वैदिक स्वरों की ध्वनि आज भी इस लोकभाषा के लोकगीतों मे विधमान है ।

सामवेद की श्रुति संगीत की परंपरा इसी भाषा मे पाई जाती है । प्रासंगिक रूप से हिमालय के दक्षिणी ढाल पर जम्मू सा भद्रवाह क्षेत्र से नेपाल तक बोली जाने वाली आर्य भाषा से संबन्धित सभी बोलियाँ ‘पहाड़ी’ कही गई है ।इन पहाड़ी बोलियों को तीन भागों मे विभक्त किया गया है ।

1. पश्चिमी पहाड़ी (भद्रवाह से यमुना के पश्चिमी तट तक)

2. मध्य पहाड़ी (मध्य हिमालय अर्थात गढ़वाल – कुमाऊँ क्षेत्र मे बोली जाने वाली)

3. पूर्वी पहाड़ी  (नेपाली , खसकुरा या गोरखाली) यह नेपाल देश की राजभाषा है , जिसकी लिपि देवनागरी है ।

मध्य पहाड़ी बोली की दो शाखाएँ – गढ़वाली तथा कुमाउनी है ,

जो क्रमशः गढ़वाल तथा कुमाऊँ क्षेत्रों मे बोली जाती है , इनकी लिपि देवनागरी है ।

इन दोनों बोलियों मे आर्येतर तत्वों का पर्याप्त समावेश देखने को मिलता है ।

कुमाऊनी

कुमाऊनी बोली मे दरद / खस प्राकृत प्रभाव के साथ -साथ अवधी बोली की विशेषताएँ भी विधमान हैं ।

14वीं शती के पूर्वार्द्ध मे प्राप्त शिलालेखों और ताम्रपत्रों मे इस बोली के साथ संस्कृत के शब्दों का प्रयोग मिलता है ।

‘हिन्दी मे – एक समय मे दो विख्यात योद्धा थे । ‘ (कुमाऊनी बोली की उपबोलियाँ मे रूपांतर)

अस्कोटी : पिथौरागढ़ जनपद मे सीरा क्षेत्र मे असकोट के आसपास बोली जाने वाली बोली अस्कोटी कही जाती है । इस बोली पर सिराली, नेपाली और जोहारी बोलियों का अधिक प्रभाव है । (कै बखत मा द्वि नामि पैक छि)

सिराली : सीरा क्षेत्र की बोली सिराली कहलाती है । पिथौरागढ़ जनपद मे असकोट के पश्चिम और गंगोली के पूर्व का क्षेत्र सीरा कहलाता है । (कै बखत मा द्वि नामी पैक छयो)

सोरयाली : पिथौरागढ़ जनपद के सोर परगने की बोली सोर्याली है । पूर्व मे काली नदी, दक्षिण मे सरयू , पश्चिम मे पूर्वी रामगंगा और उत्तर मे सीरा से घिरे क्षेत्र की बोली सोरयाली है । (कै बखत मा बड़ा जोधा छया । )

कुमय्या : काली कुमय्या क्षेत्र की बोली कुमय्या या कुमाई कहलाती है । यह बोली उत्तर मे पनार और सरयू, पूर्व मे काली , पश्चिम मे देविधुरा तथा दक्षिण मे टनकपुर तक बोली जाती है । (कै वक्त मे द्वि बड़ा वीर योद्धा छया । )

गंगोली : गंगोलीहाट के आसपास की बोली गंगोली या गंगोई कही जाती है । यह क्षेत्र पश्चिम मे दानपुर, दक्षिण मे सरयू , उत्तर मे रामगंगा व पूर्व मे सोर तक फैला है । (कै बखत मे द्वि बड़ा जोधा छया । )

दनपुरिया : अल्मोड़ा जनपद मे दानपुर परगने की बोली दनपुरिया कहलाती है । दनपुरिया मे महाप्राण ध्वनियों के उच्चारण का अभाव है । (पैल बखत माई दो देव्या भड़ छिलो। )

चोगरखिया : यह क्षेत्र काली कुमय्या के उत्तर-पश्चिमी से लेकर पश्चिम मे बारामण्डल परगने तक फैला है । (कै समय द्वि नामी पैक छिया । )

खसपर्जिया : अल्मोड़ा के बारामण्डल परगने मे बोली जाने वाली बोली खसपर्जिया कहलाती है । कुमाऊँ मे अतीत मे खस जाति का प्रभुत्व रहा है । उनकी बोली खसिया कही जाती है । (कै समय मे द्वि नामी पैक छि । )

पछाई : अल्मोड़ा जनपद मे पालि पछाऊँ क्षेत्र की बोली पछाई कहलाती है । फल्द्कोट, रानीखेत , द्वारहाट, मासी तथा चौखुटिया इस बोली के मुख्य केंद्र हैं । (कै दीना माँ द्वि गाहिन पैक छिया । )

रौ – चौभेंसी : उत्तर पूर्व नैनीताल जनपद के रौ और चौभेंसी क्षेत्र मे बोली जाने वाली बोली रौ-चौभेंसी है । (कै जमाना माँ जी दुई नामवर पैक छिया । )