उत्तरकाशी जनपद में स्थित यमुनोत्री हिंदुओं का एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है ।
केदारनाथ॰ बद्रीनाथ की यात्रा का यह प्रथम चरण माना जाता है ।
गंगोत्री, केदारनाथ एवं बद्रीनाथ की यात्रा का प्रारम्भ सर्वप्रथम यमुनोत्री के दर्शन करके ही किया जाता है ।
यमुनोत्री को पावन नदी यमुना का उद्गम स्थल माना जाता है ।
वास्तविक रूप से यमुना का उद्गम स्थल यमुनोत्री से 10 किमी दूर कालिन्द पर्वत पर स्थित सप्तऋषि कुंड है ।
जिस कुंड में चंपासर हिमनद से पिघला जल एकत्रित होता रहता है ।
इस कुंड का जल गहरा नीला है । यहाँ ब्रह्म कमल भी खिलते हैं ।
यमुनोत्री यमुना नदी के बाएँ किनारे पर लगभग 3235 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है ।
यहाँ स्थित वर्तमान मंदिर का निर्माण जयपुर की महारानी गुलेरिया ने किया था ।
भूकंप एवं भूस्खलन के कारण यह दो बार क्षतिग्रस्त हो गया था ।
1919 ईस्वी में टिहरी नरेश प्रताप शाह ने इसका जीर्णोद्धार किया था ।
यमुनोत्री मंदिर में यमुना की मूर्ति काले संगमरमर से निर्मित है ।
यह मंदिर ग्रीष्मकाल में ही दर्शनार्थियों के लिए खुला रहता है ।
शीतकाल में यह अन्य उच्च हिमलायी क्षेत्र में स्थित मंदिरों की तरह बंद हो जाता है ।
यमुना जी की शीतकाल में पूजा खरसाली गाँव में की जाती है ।
यमुनोत्री में सूर्यकुण्ड नामक तप्त कुंड भी है ।
जिसमें यमुना जी के जल के विपरीत इतना गर्म पाया जाता है कि
कपड़े मे चावल या आलू कुछ क्षण के लिए डालने पर वह पक जाते हैं ।
यहाँ स्थित दिव्य शीला नामक शीला को भी अति पवित्र माना जाता है ।
यमुनोत्री की यात्रा न केवल धार्मिक यात्रा है वरन यह पर्यटन हेतु भी अति सुंदर यात्रा है ।